कहते हैं न की जब किसी चीज़ की धुन सवार हो जाए तो फिर उससे बचना मुश्किल है और उसे पाना इंसान की पहली जरूरत बन जाता है । शायद कुछ ऐसा ही हाल हमारा है जब तक कुछ न लिखो तब तक दिमाग में लिखने का कीडा कुलबुलाता रहता है । कितना ही समझा लो मगर सुनता कौन है । फिर चाहे उसका कोई सारगर्भित अर्थ हो या न हो मगर जनाब दिमाग को तो आराम करने की फुर्सत ही नही होती न । अगर न लिखें तो शायद फट ही जाएँ किसी न किसी पर । सच कुछ दिमाग ऐसे ही होते हैं । अब देखो हमारे दिमाग को ---------कुछ और न मिला तो यही लिखने बैठ गया । है न .........दिमाग का फितूर । अब इसे और क्या कहेंगे। सच ऐसे कीडे बहुत परेशां करते हैं कभी कभी ।
अब हम कहीं किसी जरूरी काम में बैठे हैं जहाँ बहुत ध्यान से कोई लिखा पढ़ी का काम करना हो तो जनाब वहां भी शुरू हो जाते हैं । अब पुचो इनसे की उस वक्त हम तुम्हें कैसे टाइम दें और जो तुम्हारे अन्दर कुलबुला रहा है उसे कैसे शब्दों में ढलकर पन्नों पर उतर दें। मगर नही जनाब........यह कहाँ मानने वाले हैं । यह वहां भी शुरू हो जाते हैं और जहाँ हिसाब लिखा जा रहा है उसी कागज़ के पीछे चालू हो जाते हैं ।
हद तो तब होती है जब हम उनके साथ होते हैं और ये जनाब अपने काम में लग जाते हैं । अब इनसे कोई पूछे उस वक्त हम इनके बारे में कैसे सोचें। जनाब कुछ वक्त तो आराम फरमा लिया करो ।
सच यह कीडा कुछ अजीबोगरीब होता है न वक्त देखता है और न जगह और शुरू हो जाता है .मुझे जैसे न जाने कितनो का जीना दुश्वार किए रखता है । लेकिन शायद इसके बिना हम जैसों की गति भी तो नही ।
8 टिप्पणियां:
likhte rahiye. hame pasand hai.
सही कह रही हैं आप!
गुलाबी कोंपलें
ये दिमाग के कीड़े क्या चलने का , जीने का आधार नहीं बन गए हैं ?
लिखते रहिए..
jajbaar hamme chhupe hue aisa rang laate hai,
dabi hui khwahishonko kalam ki syahi bankar ujagar kar jaate hai .
kabhi kabhi kisika saath hote hue ham bhid me bhi akele ho jaate hai..
tanhaike aalam me ham yaadonke melemen ghum aate hai ...
अच्छा है.......
आपने खाली-पीली ही इतना कुछ लिख डाला
आपका दिमाग बहुत लिख्तूनी(बातूनी का लिखित स्वरुप) है
\यह कीडा बहुत काम का है ..इसको यूँ ही दिमाग में चलने दे ..हम सबके दिमाग में यही है
हूँ! तो आपको कीटनाशक दवा की ज़रूरत है!
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