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गुरुवार, 12 फ़रवरी 2009

प्रेम का अनोखा स्वरुप

प्रेम का जो स्वरुप आज मैंने देखा है उसे देखकर ह्रदय आंदोलित हो गया .अभी मैंने राज्नीश्क्झा जी का ब्लॉग अनकही खोला और वहां प्रेम का स्वरुप देखकर अहसास हुआ की प्रेम क्या होता है कोई उन लोगों से सीखे.सच प्रेम का सच्चा स्वरुप तो वो ही है.आज लोग प्रेम को एक दिन का खेल बनाकर खेलते हैं यह उन लोगो के लिए एक सबक है । प्रेम एक ऐसी अनुभूति है जहाँ कोई प्रतिकार नही, कोई अपेक्षा नही सिर्फ़ त्याग , समर्पण , विश्वास और निस्वार्थ प्रेम।

प्रेम करना भी एक कला है । यह होता है अलोकिक प्रेम ---------जहाँ सिर्फ़ समर्पण है । हर अपेक्षा से परे । सिर्फ़ भावनाओं से लबरेज़ । इसे कहते हैं रूह से रूह का असली मिलन जहाँ शारीरिक विकलांगता गौण हो गई है और उस विकलांगता का कोई निशान वहां नही है ,हर चेहरा खुशी से भरपूर जीवन जी रहा है ।

ज़िन्दगी जीना कोई उनसे सीखे और प्रेम करना भी ।
प्रेम की पराकाष्ठा है -----------सारी ज़िन्दगी ऐसे प्रेम की हसरत ही रहती है मगर ऐसा प्रेम हर किसी का नसीब नही होता ।
खुदा प्रेम दे तो ऐसा दे
जहाँ प्रेम के सिवा कुछ न हो
प्रेम ही खुशी हो
प्रेम ही बलिदान हो
प्रेम ही समर्पण हो
प्रेम ही संसार हो
प्रेम के महासागर में
प्रेमानंद में डूबे
प्रेमियों का वास हो
खुदा प्रेम दे तो ऐसा दे...........


मैं यहाँ रजनीश जी के ब्लॉग का पता दे रही हूँ पहले उसे देखियेगा और फिर यह पढियेगा ।

rajneeshkjha.ब्लागस्पाट.कॉम

इसमें अनकही खोलियेगा तब प्रेम का अनोखा स्वरुप देखने को मिलेगा।

www.ankahi.tk

5 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

bhut khub likha hai aapne

संगीता पुरी ने कहा…

अभी अभी रजनीश जी के ब्‍लाग को विजिट किया.......बहुत सही कहा है आपने.....आपको भी बहुत बहुत धन्‍यवाद।

बेनामी ने कहा…

आभार आपका। अब हम रजनीश जी के मौहल्‍ले में जा रहे हैं।

Ashutosh ने कहा…

bhut khub likha hai aapne, wah!

Dr. Tripat Mehta ने कहा…

bahut hi pyaare hai aapke wichaar