न तुमने मुझे देखा
न कभी हम मिले
फिर भी न जाने कैसे
दिल मिल गए
सिर्फ़ जज़्बात हमने
गढे थे पन्नो पर
और वो ही हमारी
दिल की आवाज़ बन गए
बिना देखे भी
बिना इज़हार किए भी
शायद प्यार होता है
प्यार का शायद
ये भी इक मुकाम होता है
मोहब्बत ऐसे भी की जाती है
या शायद ये ही
मोहब्बत होती है
कभी मीरा सी
कभी राधा सी
मोहब्बत हर
तरह से होती है
10 टिप्पणियां:
वंदना जी,
आप की यह रचना वाकई बहुत अच्छी है, अनदेखे प्यार का इज़हार और फ़िर मोहब्बत का यह तरीक़ा | अच्छा लगा |
मेरे ब्लॉग पर आमंत्रित हैं |
मोहब्बत होती है
कभी मीरा सी
कभी राधा सी
मोहब्बत हर
तरह से होती है
रचना बहुत अच्छी है
बिना देखे भी
बिना इज़हार किए भी
शायद प्यार होता है
प्यार का शायद
ये भी इक मुकाम होता है
सही कहा आपने ..अच्छा लिखा है आपने
वंदना जी
नमस्कार
"मोहब्बत ऐसे भी होती है शायद" रचना बहुत अच्छी लगी. हम बिना देखे ईश्वर से प्रेम करते हैं क्योंकि हमने उनके प्रति एक अवधारना बनाई है.
हम आपसे बात इस लिए कर रहे हैं कि हमने आपके साहित्य के माध्यम से, आपके विचार जान कर एक साहित्यकार की धारणा बनाई है ,
ऐसे अनेक उदाहरण हैं जब हम उन्हें देखे बिना , बात किए बगैर , और ये जानते हुए भी कि उनसे कभी मुलाक़ात नहीं होगी फ़िर भी हम उनसे प्रेम - भाईचारा कायम कर लेते हैं इसका उदाहरण आप स्वयं ही हैं .... हम आप से कितने स्नेह के साथ बात कर रहे हैं. अतः मैं भी यही कहूँगा कि प्यार कभी भी किसी से भी, मीरा , राधा, माँ, बहिन , भाई किसी भी रूप में किया जा सकता है,
( आप मेरे साहित्यिक पृष्ठों तक पहुँची, मुझे अच्छा लगा.)
- विजय
isse sunder mohabbat ki paribhasha nahi ho sakti...bahut sunder
kya kahun.......
take care
regards
vijay
कल 14/02/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
[प्यार का गुल खिलाने खतो के सिलसिले चलने लगे..हलचल का Valentine विशेषांक ]
धन्यवाद !
प्रेम कि अति सुन्दर अभिव्यक्ति....
:-)
बहुत सुन्दर....
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