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गुरुवार, 15 जनवरी 2009

ज़िन्दगी का हिसाब

आज बहुत दिनों बाद ख़ुद से रु-बी-रु हुयी
पूछा, क्या दिया ज़िन्दगी ने आज तलक
हिसाब लगाने बैठी तो पाया
कि जमा तो कुछ किया ही नही
सब कुछ खोकर भी
कुछ भी न पाया मैंने
दोनों हाथ खाली थे
जैसे आई थी दुनिया में
वैसे ही हाथों को पाया मैंने
कहने को भीड़ बहुत है साथ
मगर वो सिर्फ़ भीड़ है
उसमें सबने इक दर्द ही दिया
अब लगा चेतना होगा
कुछ अपने लिए करना होगा
हम किसी के लिए क्या करेंगे
जब अपने लिए ही न कर सके
अब ख़ुद के लिए जीना होगा
दुनिया के दिए हर गम को
एक गर्म हवा का झोंका
समझ भूल जाना होगा
ज़िन्दगी को नए सिरे से
जीने के लिए
नए रास्ते तलाशने होंगे
कुछ ऐसा कर जाना होगा
कि पीछे मुड़कर देखने पर
पांव के निशान नज़र आने लगें
जिन पर चलकर किसी को
जीवन कि डगर आसान लगे
उस पल लगेगा
जीना मुझको आ गया
ज़िन्दगी का हिसाब
अब बराबर हो गया
फिर न खोने का गम होगा
क्यूंकि
इक मुट्ठी खुशी ही काफी है
ज़िन्दगी गुजारने के लिए

4 टिप्‍पणियां:

ilesh ने कहा…

ज़िन्दगी को नए सिरे से
जीने के लिए
नए रास्ते तलाशने होंगे
कुछ ऐसा कर जाना होगा
कि पीछे मुड़कर देखने पर
पांव के निशान नज़र आने लगें
जिन पर चलकर किसी को
जीवन कि डगर आसान लगे

umda creation...

regards

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

वंदना जी
अभिवंदन
सर्वप्रथम पत्रोत्तर के लिए और आपके विचारों के लिए सहृदयता.
हर इन्सान धरा पर आकर ही सब कुछ सीखता है. बस उसकी लगन और मेहनत ही उसे वाजिब स्थान दिलाती हैं. इसलिए आप और हम एक इंसानी रिश्ता ही रखें तो निःसंदेह हम प्रगति करेंगे.
आज आपकी रचना "ज़िन्दगी का हिसाब" पढ़ी और लगा कि वाकई आपने सही लिखा है कि >>>
कुछ ऐसा कर जाना होगा
कि पीछे मुड़कर देखने पर
पांव के निशान नज़र आने लगें
जिन पर चलकर किसी को
जीवन कि डगर आसान लगे

आपके सोचने का नजरिया सकारात्मक है.
- विजय

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…


दिनांक 30/12/2012 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
धन्यवाद!

ओंकारनाथ मिश्र ने कहा…

बहुत सुन्दर भाव हैं आपकी इस कविता में.