दिल चाहता है आसमान में ऊड़ना,
पंछियों कि तरह उन्मुक्त ऊड़ना ,
बादलों की तरह हवा में तैरना ,
विशाल आकाश को छूना ,
जहाँ ना कोई बंदिश हो ना पहरे,
बस मैं हूँ और मेरी चाहतें हों,
जहाँ मैं सुन सकूं अपने मन कि बात ,
अपनी आवाज़ को दे सकूं शब्द ,
कुछ दिल की कहूं कुछ दिल की सुनूं
और बस आस्मां में ऊड्ती फिरूं ऊड्ती फिरूं ऊड्ती फिरूं।
9 टिप्पणियां:
जहाँ मैं सुन सकूं अपने मन कि बात ,
अपनी आवाज़ को दे सकूं शब्द ,
कुछ दिल की कहूं कुछ दिल की सुनूं
और बस आस्मां में ऊड्ती फिरूं ऊड्ती फिरूं ऊड्ती फिरूं।
aap to mere sapne bhi chura leti hain...
bahut sundar...
हर मन की चाहत को आपने अभिव्यक्ति दे दी है ! काश मैं भी पंछियों की तरह उन्मुक्त आसमान में इसी तरह उड़ती फिरूँ ! बहुत प्यारी रचना !
सब यूँ ही उड़ना चाहते हैं पर कर्तव्य की डोरी ने बाँध रखा है
बेहतरीन ।
सादर
बहुत खूबसूरत आकांक्षा....
sunder chahat dil ki ...
aisee pyari se chahat to sayad har ek ki hoti hai..:)
खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
सादर,
डोरोथी.
कल 14/फरवरी /2015 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद !
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