पता नहीं कैसे
संजोते हो तुम मुझे
अपने शब्दों की लड़ियों में
तो कभी भावों की
भाव भंगिमा में
और मैं
उलझ कर रह जाती हूँ
घिर जाती हूँ
तुम्हारे बनाये
मोहब्बत के मकडजाल में
कैसे तुम मोहब्बत को
घूँट घूँट में पीते हो
जो विरह के पलों के
विष से लबरेज होती है
कैसे मुझे उसमे पाते हो
देखो तो जरा
मैं कितना कसमसाती हूँ
तुम्हारी गिरफ्त से छूटने के लिए
और तुम हो
कि अपने ख्यालों की गिरफ्त
और बढ़ाते जाते हो
जानते हो
नहीं चाहती मैं
कि तुम उस आग को पियो
जिसमे रोज मैं जली हूँ
तभी तो खुद को
तुम्हारे ख्यालों की बगिया से
मुक्त करना चाहती हूँ
ये मोहब्बत की अग्निवर्षा
जिस्मों पर नहीं
रूहों पर असर करती हैं
जला कर खाक कर देती हैं सफीना
और नज़र नहीं आता
एक निशाँ भी .........अग्नि के तांडव का
देखो मदिरा तो शरीर को जलाती है
मगर ये मोहब्बत की मदिरा
रूह को नेस्तनाबूद कर देती है
बच सको तो बच जाओ
मैं तो मिट चुकी हूँ
क्यों ख्याल के तकिये पर
मेरे बुत को ज़िन्दा रखते हो
ए तेजाबी मोहब्बत के दरवेश
मत कर दुआ
मत मांग खुदा से
मत कर कोई इल्तिजा
क्योंकि
ज़िन्दा बुतों के ताजमहल नहीं बना करते
21 टिप्पणियां:
वाह क्या बात कही है ... भावमय शब्द संयोजन ... बहुत ही अच्छी प्रस्तुति।
फिर भी .... तुम गर चाहो तो इस बुत की धड़कनों को सुनो एक बार
दिल हुआ तुम्हारे पास तो तुम भी बुत हो जाओगे
क्या है वो आग जिसमें मैं जली हूँ !
...नई सोच की कविता..
बहुत बढ़िया वंदना जी...
सुघड रचना..
अनु
भावपूर्ण अभिव्यक्ति.
बहुत गहन भाव बस एक ही बात कहूँगी लाजबाब ...मेरे भी दो शब्द ...क्यूँ बनाते हो वो ख़्वाबों के घरोंदे जब पता है की उसमे रहने वाले जिस्म ही नहीं हैं वहां
खूबसूरत भाव पूर्ण अभिव्यक्ति.
सही बात है मरना तो होगा ही
ये मोहब्बत की अग्निवर्षा
जिस्मों पर नहीं
रूहों पर असर करती हैं जला कर खाक कर देती हैं सफीना और नज़र नहीं आता एक निशाँ भी
अनूठे भाव... शुभकामनाये
बहुत गहरी भावमयी अभिव्यक्ति..
सशक्त और प्रभावशाली रचना.....
वाह क्या लिखा है आपने ....
सुंदर व भावपूर्ण अभिव्यक्ति !!
आपने पोस्ट लिखी ,हमने पढी , हमें पसंद आई , हमने उसे सहेज़ कर कुछ और मित्र पाठकों के लिए बुलेटिन के एक पन्ने पर पिरो दिया । आप भी आइए और मिलिए कुछ और पोस्टों से , इस टिप्पणी को क्लिक करके आप वहां पहुंच सकते हैं
ekdam alag.....sunder.
भावमय बहुत सुंदर प्रस्तुति,,,,
RECENT POST...: राजनीति,तेरे रूप अनेक,...
सुन्दर उलाहना .
बहुत ही बढ़िया
सादर
आग का दरिया बनी .... आगाह करती की इस आग को न पियो ... वाह ... सुंदर रचना
मुहब्बत,एक पहाडी झरना है,जिसे कोई मोड देना उसकी खूबसूरती को बिगाडना है.
सुंदर भावयोजना—जिंदा बुतों के ताजमहल नहीं बनते.
क्योंकि...जिंदा बुतों के ताजमहल नहीं बना करते.....
बहुत ही अच्छी अभिव्यक्ति वन्दना जी | बहुत ही सटीक व् अर्थपूर्ण लेखन |
भावपूर्ण अभिव्यक्ति
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