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मंगलवार, 23 अक्टूबर 2018

जिसकी लाठी उसकी भैंस की तरह

हुआ करते थे कभी
चौराहों पर झगडे
तो कभी सुलह सफाई
वक्त की आँधी सब ले उड़ी

आज बदल चुका है दृश्य
आपातकाल के मुहाने पर खड़ा देश
नहीं सुलझा पा रहा मुद्दे
चौराहों पर सुलग रही है चिंगारी
नफरत की
अजनबियत की
आतंक की
जाति की
धर्म की
फासीवाद की

गवाह सबूत और वायरल विडियो
हथियार हैं आज के समय में
घटनाओं को पक्ष या विपक्ष में करने के
फिर झगडे पैदा करना कौन सा मुश्किल काम है

अब तयशुदा एजेंडों पर होता है काम
मानक तय कर दिए जाते हैं
देखकर मौसम का रुख
सत्ता और कुर्सी के खेल में
चौराहे शरणस्थली हैं
जमा भीड़ स्वयम कर देती है हिसाब किताब

सुलह सफाई बदल चुकी है
जोर जबरदस्ती में
जिसकी लाठी उसकी भैंस की तरह

ये बदलते वक्त के साथ बदलते देश का नया मानचित्र है ...



2 टिप्‍पणियां:

radha tiwari( radhegopal) ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (24-10-2018) को "सुहानी न फिर चाँदनी रात होती" (चर्चा अंक-3134) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी

Onkar ने कहा…

यह भी एक नजरिया है