हम तो डूबे हुए अशआर हैं
दर्द बिन ग़ज़ल बन नहीं सकते
बहर मात्राओं की जुगलबंदी बिन
मुकम्मल शेर बन नहीं सकते
अब कौन पड़े जुल्फों के पेंचोखम में सनम
गिर- गिर के दरिया में अब संभल नहीं सकते
उजालों का सदा ही तलबगार रहा ज़माना
हम तो अंधेरों के सायों से भी अब लड़ नहीं सकते
ये मय्यतों पर झूठे आँसू बहाने वाले
कभी ज़िन्दगी के तलबगार बन नही सकते
दुआ दें या बददुआ उसके दरबार के कानून
किसी के लिए कभी बदल नहीं सकते
मुमकिन है बदल जाए ईमान शैतान का
इंसान में छुपे शैतान को कभी बदल नहीं सकते
पृष्ठ
शनिवार, 28 अगस्त 2010
शनिवार, 21 अगस्त 2010
एक सफ़र ऐसा भी………………………
भार्या से
प्रेयसी बनने की
संपूर्ण चेष्टाओं
को धूल- धूसरित
करती तुम्हारी
हर चेष्टा जैसे
आंदोलित कर देती
मन को और
फिर एक बार
नए जोश से
मन फिर ढूँढता
नए -नए आयाम
प्रेयसी के भेदों
को टटोलता
खोजता
हर बार
एक नाकाम -सी
कोशिश करता
और फिर धूमिल
पड़ जाती आशाओं
में , अपने नेह
का सावन भरता
मगर कभी
ना समझ पाता
एक छोटा सा सच
प्रेयसी को भार्या
बनाया जा सकता है
मगर
भार्या कभी प्रेयसी
नहीं बनाई जाती
उस पर तो
अधिकारों का बोझ
लादा जाता है
मनुहारों से नहीं
उपजाई जाती
इक अपनी
जायदाद सम
प्रयोग में
लाया जाता है
माणिकों सी
सहेजी नहीं जाती
हकीकत के धरातल
पर बैठाई जताई है
ख्वाबों में नहीं
सजाई जाती
संस्कारों की वेणी
गुँथवाई जाती है
उसकी वेणी में पुष्प
नहीं सजाये जाते
अरमानो की तपती
आग मे झुलसायी
जाती है
सपनो के हार नहीं
पहनाये जाते
शब्दों के व्यंग्य
बाणों से बींधी जाती है
ग़ज़लों की चाशनी में
नहीं डुबाई जाती
आस्था की बलि वेदी पर
मिटाई जाती है
मगर प्रेम की मूरत बना
पूजी नहीं जाती
बस इतना सा फर्क
ना समझ पाता है
ये मन
क्यूँ भाग- भाग
जाता है
और इतना ना
समझ पाता है
प्रेयसी बनने की आग में
जलती भार्या का सफ़र
सिर्फ भार्या पर ही सिमट
जाता है
सिर्फ भार्या पर ही.................
प्रेयसी बनने की
संपूर्ण चेष्टाओं
को धूल- धूसरित
करती तुम्हारी
हर चेष्टा जैसे
आंदोलित कर देती
मन को और
फिर एक बार
नए जोश से
मन फिर ढूँढता
नए -नए आयाम
प्रेयसी के भेदों
को टटोलता
खोजता
हर बार
एक नाकाम -सी
कोशिश करता
और फिर धूमिल
पड़ जाती आशाओं
में , अपने नेह
का सावन भरता
मगर कभी
ना समझ पाता
एक छोटा सा सच
प्रेयसी को भार्या
बनाया जा सकता है
मगर
भार्या कभी प्रेयसी
नहीं बनाई जाती
उस पर तो
अधिकारों का बोझ
लादा जाता है
मनुहारों से नहीं
उपजाई जाती
इक अपनी
जायदाद सम
प्रयोग में
लाया जाता है
माणिकों सी
सहेजी नहीं जाती
हकीकत के धरातल
पर बैठाई जताई है
ख्वाबों में नहीं
सजाई जाती
संस्कारों की वेणी
गुँथवाई जाती है
उसकी वेणी में पुष्प
नहीं सजाये जाते
अरमानो की तपती
आग मे झुलसायी
जाती है
सपनो के हार नहीं
पहनाये जाते
शब्दों के व्यंग्य
बाणों से बींधी जाती है
ग़ज़लों की चाशनी में
नहीं डुबाई जाती
आस्था की बलि वेदी पर
मिटाई जाती है
मगर प्रेम की मूरत बना
पूजी नहीं जाती
बस इतना सा फर्क
ना समझ पाता है
ये मन
क्यूँ भाग- भाग
जाता है
और इतना ना
समझ पाता है
प्रेयसी बनने की आग में
जलती भार्या का सफ़र
सिर्फ भार्या पर ही सिमट
जाता है
सिर्फ भार्या पर ही.................
गुरुवार, 19 अगस्त 2010
ब्लॉग गुरु की पाठशाला ...............
आइये साथियों ब्लॉग गुरु की पाठशाला में और हर समस्या का समाधान पाइए ................हा हा हा
ब्लॉगिंग गुरु ने स्कूल खोला
विज्ञापन लगाया ---------
ब्लॉगिंग के गुर सीखिए ------
फायदा ना होने पर
बेनामी के रूप में
सबको धमका दीजिये
विज्ञापन देख दुनिया का मारा
एक चँगुल में फँस गया
और गुरु के दरबार में
पहुँच गया
बोला -----गुरु जी
मेरी कोई सुनता नहीं
घर में पत्नी और बच्चो
की ही राजनीति गरमाई है
वहाँ मेरी अक्ल चकराई है
ऑफिस में बॉस की फटकार
खाई है पर बात की
वहाँ भी नहीं सुनवाई है
यार दोस्त अपनी- अपनी सुनाते हैं
और मेरी बारी आते ही
अपने घर चले जाते हैं
कोई ऐसा चमत्कार कीजिये
मेरा भी उद्धार हो जाये
और जो अन्दर ही अन्दर
उबल रहा है उसके बाहर
आने का उपाय कीजिये
गुरु बोले ------बेटा
क्यूँ घबराता है
बिलकुल सही जगह तू आया है
आजकल जिसकी कोई नहीं सुनता
उसके लिए ही ये मंच बनाया है
हम तुझे ब्लॉगिंग के
ऐसे -ऐसे गुर सिखायेंगे
कि बड़े- बड़े सूरमा
मैदान छोड़कर भाग जायेंगे
सबसे पहले तू
किसी नामी- गिरामी संगठन का
सदस्य बन जाना
और फिर बिना बात किसी
से भी भिड जाना
आपत्तिजनक टिप्पणियां करना
बस फिर देखना
पूरा संगठन तेरे समर्थन में
उतर आएगा और ब्लॉगजगत में
तुझे ख्याति दिला जायेगा
बस पहली बाधा पार की जिसने
वो तो सिकंदर बन ही जाता है
फिर तू जो भी कहना चाहे
कह देना , अपनी हर भड़ास
निकाल लेना
कोई न तुझसे पंगा लेगा
और ब्लॉगजगत में
नाम तेरा रोशन होगा
महशूर होने का सबसे
सुगम तरीका है
अब बस इतना काम
और कर लेना
ब्लॉगजगत के अपने
संगठन के हर सदस्य के
ब्लॉग पर उनकी पोस्ट के
कसीदे पढ़ देना
चाहे लिखा उसमें
कुछ भी काम का ना हो
मगर टिपण्णी ऐसी कर देना
जैसे उसकी भाषा को
समझने का हुनर
सिर्फ खुदा ने तुम्हें
ही बख्शा है
फिर देखना कैसे
ब्लॉगजगत तुम्हें
आँखों पर बिठाता है
और अच्छी -अच्छी पोस्टों के
कैसे तोते उडाता है
और तुम्हारी पोस्ट को
कैसे सबसे ऊपर पहुँचाता है
अगर फिर भी किसी कारणवश
कभी टिप्पणियां कम आने लगें
कोई और धुरंधर
अपना सिक्का ज़माने लगे
बस तू इतना कर देना
ब्लॉगजगत को छोड़ने की
धमकी दे देना
फिर देखना सारा
ब्लॉगजगत तुझे
मनाने आ जायेगा
और एक बार फिर
तेरा सिक्का जम जायेगा
अब अच्छी पोस्टों का
दीवाला निकालने का गुर
सिखलाता हूँ
चाहे तुझे लिखना भी आता हो
कविता के भाव भी जानता हो
लेख की भाषा का भी ज्ञान हो
मगर तब भी इतना करते रहना
सिर्फ अपने संगठन के
सदस्यों को छोड़कर
बाकी ब्लोगरों की पोस्टों पर
सिर्फ "अच्छी है" , "उम्दा भाव हैं "
"गहरी बात कही" , "सुन्दर लेखन"
ऐसी छोटी -छोटी टिप्पणियाँ
ही करना ताकी
लिखने वाला भी समझ जाये
उसका होंसला भी
पस्त हो जाये
और वो घबराकर
मैदान छोड़कर भाग जाये
बस इतना सब तू करते रहना
तब देखना एक दिन
ब्लॉगिंग में नाम तेरा भी
चमक जायेगा और
अख़बारों के पन्नों पर
"बिग बी "की तरह
तू भी छा जायेगा
बेटा आज के लिए
बस इतना काफी है
तब तक तुम इसका अभ्यास करना
वरना पढने वालों के तोते उड़ जायेंगे
ज्यादा बड़े पाठ से घबराएंगे
इनको और पोस्टों पर भी जाना है
इतना ध्यान भी रखना होगा
फिर भी कोई समस्या आये
तो ब्लोगगुरु के पास आ जाना
हर समाधान पा और जानासोमवार, 16 अगस्त 2010
बस इतना वादा करती जाओ................
हर जन्म
जब भी मिलीं
मेरी ना हुयीं
हर बार
मिलकर भी
ना मिलीं
अब एक वादा
करती जाओ
अगले जन्म
की आस को
कुछ तो
संबल
देती जाओ
मेरी
चिर प्रतीक्षित
प्यास को
अपने वादे के
अमृत से
सींचती जाओ
इस बुझते
दिए की
टिमटिमाती
लौ को
अपनी स्वीकृति
की छाप से
भिगोती जाओ
अगले किसी जन्म
जब भी मिलोगी
सिर्फ मेरी
बनकर मिलोगी
बस इतना
वादा करती जाओ ............
जब भी मिलीं
मेरी ना हुयीं
हर बार
मिलकर भी
ना मिलीं
अब एक वादा
करती जाओ
अगले जन्म
की आस को
कुछ तो
संबल
देती जाओ
मेरी
चिर प्रतीक्षित
प्यास को
अपने वादे के
अमृत से
सींचती जाओ
इस बुझते
दिए की
टिमटिमाती
लौ को
अपनी स्वीकृति
की छाप से
भिगोती जाओ
अगले किसी जन्म
जब भी मिलोगी
सिर्फ मेरी
बनकर मिलोगी
बस इतना
वादा करती जाओ ............
बुधवार, 11 अगस्त 2010
इक बार दफ़न हुई चाहतें............
जब चाहतें थीं तो
हर हसरतें फ़ना हो गयी
अब चाहतें नहीं तो
हर हसरत जवाँ हो गयी
कल जब बुलाते थे तो
दूर छिटक जाते थे
आज बिन बुलाये
चले आते हैं
ये कैसे हसरतों के साये हैं
बंद किवड़िया खडकाए हैं
खुशियों के दरवाजे
जब बंद कर दिए हमने
तो देहरी पर
दस्तक दिए जाते हैं
अब शाख से टूटे पत्ते को
दोबारा कैसे जोडूँ
मुरझाये फूल को
कैसे खिला दूँ
कौन सा वो सावन लाऊँ
जो गुलशन हरा हो जाये
अरमानो की कब्र पर
कौन सा दीया जलाऊँ
जो हर अरमान एक बार
फिर जी जाए
इक बार दफ़न हुई
अरमानों की दुनिया
फिर आबाद नहीं होती
किसी भी आरजू
किसी भी हसरत की
तलबगार नहीं होती
मुर्दे कब जिंदा हुए हैं
भुने हुए बीजों से
अंकुर नहीं उगते
इसीलिए शायद
इक बार दफ़न
हुई चाहतें
दोबारा कफ़न
नहीं ओढती
हर हसरतें फ़ना हो गयी
अब चाहतें नहीं तो
हर हसरत जवाँ हो गयी
कल जब बुलाते थे तो
दूर छिटक जाते थे
आज बिन बुलाये
चले आते हैं
ये कैसे हसरतों के साये हैं
बंद किवड़िया खडकाए हैं
खुशियों के दरवाजे
जब बंद कर दिए हमने
तो देहरी पर
दस्तक दिए जाते हैं
अब शाख से टूटे पत्ते को
दोबारा कैसे जोडूँ
मुरझाये फूल को
कैसे खिला दूँ
कौन सा वो सावन लाऊँ
जो गुलशन हरा हो जाये
अरमानो की कब्र पर
कौन सा दीया जलाऊँ
जो हर अरमान एक बार
फिर जी जाए
इक बार दफ़न हुई
अरमानों की दुनिया
फिर आबाद नहीं होती
किसी भी आरजू
किसी भी हसरत की
तलबगार नहीं होती
मुर्दे कब जिंदा हुए हैं
भुने हुए बीजों से
अंकुर नहीं उगते
इसीलिए शायद
इक बार दफ़न
हुई चाहतें
दोबारा कफ़न
नहीं ओढती
शनिवार, 7 अगस्त 2010
और हँसी मेरी लौटा जायें ....................
चलो अच्छा हुआ
हँसा दिया
आज सुबह से
हँसी ही नहीं
ना जाने कहाँ
काफूर हो गयी थी
किस कोने में
दुबकी पड़ी थी
क्या करूँ
हँसी आती ही नहीं
दिल के गहरे
सन्नाटों में
खो जाती
पता नहीं कौन से
सन्नाटे हैं
जो हँसी को बाहर
आने ही नहीं देते
सन्नाटों का कारण
क्या है, पता ही नहीं
बहुत ढूँढा ,मिला ही नहीं
तुम्हें मिले तो
बता जाना
ना मिले तब भी
कोशिश करना
शायद कभी
किसी चौराहे पर
भीड़ के बीच
मिल जायें
और हँसी मेरी
लौटा जायें...............
हँसा दिया
आज सुबह से
हँसी ही नहीं
ना जाने कहाँ
काफूर हो गयी थी
किस कोने में
दुबकी पड़ी थी
क्या करूँ
हँसी आती ही नहीं
दिल के गहरे
सन्नाटों में
खो जाती
पता नहीं कौन से
सन्नाटे हैं
जो हँसी को बाहर
आने ही नहीं देते
सन्नाटों का कारण
क्या है, पता ही नहीं
बहुत ढूँढा ,मिला ही नहीं
तुम्हें मिले तो
बता जाना
ना मिले तब भी
कोशिश करना
शायद कभी
किसी चौराहे पर
भीड़ के बीच
मिल जायें
और हँसी मेरी
लौटा जायें...............
सोमवार, 2 अगस्त 2010
हाय !ये मैंने क्या किया?
इक सौंदर्य का
बीज रोपा
धरती के सीने में
जग नियंता ने
और सौंदर्य
की महकती फसल
लहलहा उठी
फिर उसने
मानव नाम का
प्राणी धरती
पर उतारा
और चाहा ये
उसकी फुलवारी को
और निखारे
उसकी बगिया के
हर फूल को
गुलज़ार करे
मगर मानव के
स्वार्थ ने
बनाने वाले को
दगा दे दिया
उसकी कृति का
दुरूपयोग किया
सौंदर्य को
कुरूपता में
बदल दिया
अब पछता रहा था
जगनियंता
पालनहारा
जगसृष्टा
हाय !ये मैंने क्या किया?
ये मैंने क्या किया………
क्यूँ मानव का अविष्कार किया ?
बीज रोपा
धरती के सीने में
जग नियंता ने
और सौंदर्य
की महकती फसल
लहलहा उठी
फिर उसने
मानव नाम का
प्राणी धरती
पर उतारा
और चाहा ये
उसकी फुलवारी को
और निखारे
उसकी बगिया के
हर फूल को
गुलज़ार करे
मगर मानव के
स्वार्थ ने
बनाने वाले को
दगा दे दिया
उसकी कृति का
दुरूपयोग किया
सौंदर्य को
कुरूपता में
बदल दिया
अब पछता रहा था
जगनियंता
पालनहारा
जगसृष्टा
हाय !ये मैंने क्या किया?
ये मैंने क्या किया………
क्यूँ मानव का अविष्कार किया ?
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