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शुक्रवार, 23 मई 2008
बुधवार, 21 मई 2008
khamoshiyan
खामोशियों की जुबान नही होती,sirf dard और tanhaiyan ही साथी होते हैं ,
खामोशियों के dard को कोई समझ सके,ऐसा कोई dil नज़र नही आता ,
खामोशियों की आवाज़ बहुत खामोश होती है ,इसे सुनने की हर dil को आदत नही होती,
ऐसा कोई milta नही जो समझे इनकी जुबान को ,इन्हें तो कुछ भी कहने की आदत नही होती ,
खामोशियों के साथ sirf खामोश dil ही होता है,खामोशियों क पार तो खामोशी ही होती है,
इसलिए खामोशियों की जुबान नही होती,sirf एक अनसुनी अनकही खामोशी ही होती है
खामोशियों के dard को कोई समझ सके,ऐसा कोई dil नज़र नही आता ,
खामोशियों की आवाज़ बहुत खामोश होती है ,इसे सुनने की हर dil को आदत नही होती,
ऐसा कोई milta नही जो समझे इनकी जुबान को ,इन्हें तो कुछ भी कहने की आदत नही होती ,
खामोशियों के साथ sirf खामोश dil ही होता है,खामोशियों क पार तो खामोशी ही होती है,
इसलिए खामोशियों की जुबान नही होती,sirf एक अनसुनी अनकही खामोशी ही होती है
रविवार, 18 मई 2008
मासूम dil
dil kitna मासूम होता है ,जो भी इबारत पढता है ,likh लेता है,
मासूम को पता ही नही होता ,क्या likhna चाहिए और क्या नही ,
jise अपना बना लेता है उसका ही हो जाता है ,
kisi को भी पराया नही मानता,
dil kitna मासूम होता है,
हर dard को अपना बना लेता है ,
हर गम का राज सीने में छुपा लेता है ,
उफ़ भी नही करता ,खामोश सब सहे जाता है
सच dil kitna मासूम होता है,
मासूम को पता ही नही होता ,क्या likhna चाहिए और क्या नही ,
jise अपना बना लेता है उसका ही हो जाता है ,
kisi को भी पराया नही मानता,
dil kitna मासूम होता है,
हर dard को अपना बना लेता है ,
हर गम का राज सीने में छुपा लेता है ,
उफ़ भी नही करता ,खामोश सब सहे जाता है
सच dil kitna मासूम होता है,
मेरे पल
हर पल कुछ ख्वाब सजाते हैं हम और फिर उन्हें टूटते हुए देखते हैं ,
क्या ज़िंदगी बस ख्वाब सजाने और टूटने तक ही सिमट कर रह गई है
क्या हम कुछ और नही कर सकते या सोच सकते ,
क्या हमारे हाथ में कुछ भी नही है अब
कब तक हम अपने अरमानों को यूं ही दफ़न करते रहेंगे
कब तक यूं ही हर इम्तिहान में असफल होते रहेंगे हम
क्या ज़िंदगी में उससे आगे कुछ भी नही है
क्या हर पल हमसे कुछ न कुछ छीनता ही रहेगा
क्या कभी हम पलों को अपने दमन में बाँध न सकेंगे
क्या हर पल हम बस बेबस हुए दूर जाते हुए पल को देखते जायेंगे
और कुछ कर न पाएंगे
कोई टू बताये कैसे इन पलों को संजोयुं
क्या ज़िंदगी बस ख्वाब सजाने और टूटने तक ही सिमट कर रह गई है
क्या हम कुछ और नही कर सकते या सोच सकते ,
क्या हमारे हाथ में कुछ भी नही है अब
कब तक हम अपने अरमानों को यूं ही दफ़न करते रहेंगे
कब तक यूं ही हर इम्तिहान में असफल होते रहेंगे हम
क्या ज़िंदगी में उससे आगे कुछ भी नही है
क्या हर पल हमसे कुछ न कुछ छीनता ही रहेगा
क्या कभी हम पलों को अपने दमन में बाँध न सकेंगे
क्या हर पल हम बस बेबस हुए दूर जाते हुए पल को देखते जायेंगे
और कुछ कर न पाएंगे
कोई टू बताये कैसे इन पलों को संजोयुं
रविवार, 6 अप्रैल 2008
न जाने कहाँ खो गए हम
न जाने कहाँ खो गए हम
बहुत ढूँढा पर कहीं न मिले हम
न जाने कौन से मुकाम पर है ज़िंदगी
हर मोड़ पर एक इम्तिहान होता है
चाहतों के मायने बदल जाते हैं
जिनका इंसान तलबगार होता है
दुनिया की भीड़ में गूम हुयी जाती हूँ
ख़ुद को ढूँढने की कोशिश में
और बेजार हुयी जाती हूँ
क्या कभी ख़ुद को पा सकेंगे हम
इसी विचार में खोयी जाती हूँ
बहुत ढूँढा पर कहीं न मिले हम
न जाने कौन से मुकाम पर है ज़िंदगी
हर मोड़ पर एक इम्तिहान होता है
चाहतों के मायने बदल जाते हैं
जिनका इंसान तलबगार होता है
दुनिया की भीड़ में गूम हुयी जाती हूँ
ख़ुद को ढूँढने की कोशिश में
और बेजार हुयी जाती हूँ
क्या कभी ख़ुद को पा सकेंगे हम
इसी विचार में खोयी जाती हूँ
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