हुआ करते थे कभी
चौराहों पर झगडे
तो कभी सुलह सफाई
वक्त की आँधी सब ले उड़ी
आज बदल चुका है दृश्य
आपातकाल के मुहाने पर खड़ा देश
नहीं सुलझा पा रहा मुद्दे
चौराहों पर सुलग रही है चिंगारी
नफरत की
अजनबियत की
आतंक की
जाति की
धर्म की
फासीवाद की
गवाह सबूत और वायरल विडियो
हथियार हैं आज के समय में
घटनाओं को पक्ष या विपक्ष में करने के
फिर झगडे पैदा करना कौन सा मुश्किल काम है
अब तयशुदा एजेंडों पर होता है काम
मानक तय कर दिए जाते हैं
देखकर मौसम का रुख
सत्ता और कुर्सी के खेल में
चौराहे शरणस्थली हैं
जमा भीड़ स्वयम कर देती है हिसाब किताब
सुलह सफाई बदल चुकी है
जोर जबरदस्ती में
जिसकी लाठी उसकी भैंस की तरह
ये बदलते वक्त के साथ बदलते देश का नया मानचित्र है ...
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (24-10-2018) को "सुहानी न फिर चाँदनी रात होती" (चर्चा अंक-3134) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
यह भी एक नजरिया है
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