तो क्या संभव होगा तब भी सुकून की करवट लेना
या चलो ऐसा करो खत्म करो हर धर्म को दुनिया से
खत्म करो हर भाषा का व्याकरण
फिर से पहुँचें हम उसी आदिम युग में
जहाँ न धर्म था न भाषा
और गुजर जाता था जीवन तब भी शिकार करते करते
क्या वो सही था
क्या तब नहीं होती थी हिंसा
क्या तब नहीं होते थे शिकार
सोचना ज़रा..... ओ सभ्य इंसान
आसान है
दुनिया मे गदर का कारण
भाषा और धर्म को बताकर पल्ला झाडना
क्योंकि
सबसे सहज सुलभ टारगेट हैं दोनों ही
सबसे सहज सुलभ टारगेट हैं दोनों ही
मगर मूल में न जाना
अर्थ का अनर्थ कर देना
प्रवृत्ति है तुम्हारी दोषारोपण करने की
अर्थ का अनर्थ कर देना
प्रवृत्ति है तुम्हारी दोषारोपण करने की
हाँ.…… मूल है मानव
तुम्हारी लालसा , तुम्हारा स्वार्थ , तुम्हारा अहम
एकाधिकार की भावना से ग्रसित हो तुम
अपने प्रभुत्व अपने आधिपत्य एकछत्र राज करने की चाहना
एकाधिकार की भावना से ग्रसित हो तुम
अपने प्रभुत्व अपने आधिपत्य एकछत्र राज करने की चाहना
जिसके कारण बन चुका है विश्व एक सुलगता दावानल
बस एक बार ऊंगली खुद की तरफ़ भी करके देखना
प्रत्युत्तर मिल जायेगा
फिर न कभी तू भाषा और धर्म को लांछित कर पायेगा
क्योंकि
भाषा हो या धर्म
दोनों ने जोड़ना ही सिखाया है
मानव की टीस पीड़ा पर मरहम लगाया है
ये तो मानविक स्वार्थी प्रवृत्ति ने
भाषा और धर्म को हथियार बनाया है
किसी भी सभ्यता को दोष देना आसान है जिस तरह
उसी तरह भाषा और धर्म को
प्रायोगिक उपकरण बनाना आसान होता है बजाय खोज करने के
क्योंकि सतही स्पर्शों को ही समझा है तुमने मुकम्मलता
काजल कुमार का स्टेटस पढ़ ये विचार उभरे स्टेटस था
दुनिया में सबसे ज्यादा गदर
धरम और भाषा ने मचाया है
दुनिया में सबसे ज्यादा गदर
धरम और भाषा ने मचाया है