दस्तक दी मेरे दरवाज़े पर
ना जाने किसने राह दिखाई
कैसे खबर हुई ,किसने पता बताया
गुमनाम पता कौन ढूँढ लाया
क्या तुम जानते थे मैं कहाँ हूँ ?
मुद्दत बाद देखा है तुम्हें
इक अरसा हुआ देखे हुए
लगा जैसे सदियाँ बह गयी हों
सिर्फ एक लम्हे में
कहो ना ............
कैसे जाना मैं कहाँ हूँ ?
क्या करोगी जानकर
ये दिल के सौदे होते हैं
तुम्हारे लिए मैं सिर्फ
एक ख्याल रहा
हवाओं में तैरता हुआ
फिर कैसे जानोगी
दिल के उफनते लावे को
क्या क्या बह रहा है
तुम्हारे साथ तुम्हारे बिन
मैं पता किससे पूछता
तुमने कब बताया था
ये तो हवाओं ने ही
मुझे तुमसे मिलवाया है
और पाँव खुद-ब-खुद
तुम्हारे शहर में ले आये हैं
आखिर दिल के मोड़ों पर मुद्दत बाद देखा है तुम्हें
इक अरसा हुआ देखे हुए
लगा जैसे सदियाँ बह गयी हों
सिर्फ एक लम्हे में
कहो ना ............
कैसे जाना मैं कहाँ हूँ ?
क्या करोगी जानकर
ये दिल के सौदे होते हैं
तुम्हारे लिए मैं सिर्फ
एक ख्याल रहा
हवाओं में तैरता हुआ
फिर कैसे जानोगी
दिल के उफनते लावे को
क्या क्या बह रहा है
तुम्हारे साथ तुम्हारे बिन
मैं पता किससे पूछता
तुमने कब बताया था
ये तो हवाओं ने ही
मुझे तुमसे मिलवाया है
और पाँव खुद-ब-खुद
तुम्हारे शहर में ले आये हैं
तुम्हारा ही तो नाम लिखा है
आज कह लो सब
सुन रही हूँ
वो दरिया जो सिकुड़ गया था
तुम्हारी उदासियों में
और वो जो दिल की मिटटी पर
ख्यालों का लेप तुमने लगाया था
जब मैंने अपनी कसम में तुम्हें
और तुम्हारे अरमानों को जिंदा लिटाया था
उन सभी तुम्हारे अनकहे जज्बातों को
शायद आज समझी हूँ
उम्र के उस मोड़ को
जो पीछे छोड़ आई हूँ
आज पकड़ने की ख्वाहिश जन्म ले रही है
कहो आज दिल की दास्ताँ ..............
और तुम्हारे अरमानों को जिंदा लिटाया था
उन सभी तुम्हारे अनकहे जज्बातों को
शायद आज समझी हूँ
उम्र के उस मोड़ को
जो पीछे छोड़ आई हूँ
आज पकड़ने की ख्वाहिश जन्म ले रही है
कहो आज दिल की दास्ताँ ..............
तुम क्या जानो
प्रेम डगर की सूक्ष्मता
कैसे तुम्हारे बिना पलों ने मुझे बींधा है
देखो
मेरे दिल का हर तागा
कैसे ज़ख़्मी हुआ है
जैसे अर्जुन ने शर- शैया पर भीष्म को बींधा हो
और वो तब भी हँस रहा हो
आखिर ज़ख्म भी तो मोहब्बत ने दिया है
तुम्हारे बिना जीया ही कब था
ये तो एक लाश ने वक्त को
कफ़न में लपेटा हुआ था
शायद कभी कफ़न चेहरे से हट जाये
शायद कभी दीदार तेरा हो जाये
शायद कभी जिसे तुमने नेस्तनाबूद किया
वो बीज एक बार फिर उग जाए
प्रेम का तुम्हें भी कभी कोई लम्हा चुभ जाये
तुम भी शायद कभी मुझे आवाज़ दो
वैसे ही तड़पो
जैसे कोई चकवी चकोर को तरस रही हो
मगर तुमने ना आवाज़ दी
न तड्पी मेरे लिए
तुम तो वो जोगिन बन गयीं
कफ़न में लपेटा हुआ था
शायद कभी कफ़न चेहरे से हट जाये
शायद कभी दीदार तेरा हो जाये
शायद कभी जिसे तुमने नेस्तनाबूद किया
वो बीज एक बार फिर उग जाए
प्रेम का तुम्हें भी कभी कोई लम्हा चुभ जाये
तुम भी शायद कभी मुझे आवाज़ दो
वैसे ही तड़पो
जैसे कोई चकवी चकोर को तरस रही हो
मगर तुमने ना आवाज़ दी
न तड्पी मेरे लिए
तुम तो वो जोगिन बन गयीं
जिसे श्याम सिर्फ सपनो में मिलता है
प्रेम की अनंत ऋचाएं
और तुम उसकी परिणति
सिर्फ अँधेरे कोनो में ही
समेट लेना चाहती थीं
पता है तुम्हें
जब भी तुम सिसकती थीं
वो आह जब मुझ तक पहुँचती थी
प्रेम की अनंत ऋचाएं
और तुम उसकी परिणति
सिर्फ अँधेरे कोनो में ही
समेट लेना चाहती थीं
पता है तुम्हें
जब भी तुम सिसकती थीं
वो आह जब मुझ तक पहुँचती थी
देखना चाहती हो क्या होता था
देखो ...
देख रही हो ना
ये जलता हुआ निशान
ये उसी सिसकी की निशानी है मेरे सीने पर
देखो कितने निशाँ हैं तुम्हारी चाहत के
क्या गिन पाओगी इन्हें ...
देखो तो
अब तक हरे हैं ...
उफ़ !
ज़िन्दगी ना मैं जी पायी हूँ
ना तुमने कभी करवट ली
जानती हूँ
मगर देर हो गयी न
तुम और तुम्हारी दुनिया
मैं और मेरी दुनिया
अपना अपना संसार
दो ध्रुव ज़िन्दगी के
कभी देखा है ध्रुवों को
एकाकार होते हुए
अरे क्या कह रही हो
कब और कैसे ध्रुवीकरण कर दिया तुमने
मैं तो आज भी तुम्हें खुद में समाहित पाता हूँ
जब खुद से भटक जाता हूँ
तुममे खुद को पाता हूँ
जब भी तुम्हारी
याद की ओढनी ओढ़कर
चाहत चली आई
तारों की मखमली चादर मैंने बिछायी
उस पर तुम्हारी याद की सेज सजाई
कहो फिर कैसे कहती हो
जुदा हैं हम
क्या नहीं जानतीं
चाहतों का सुहाग अमर होता है
चलो आओ आज फिर
एक नयी शुरुआत करें
जो छूट गया था
कुछ तुममे और कुछ मुझमे
कुछ तुम्हारा और कुछ मेरा
वो सामान तलाश करें
जो चाहत परवान ना चढ़ी
जो दुनिया के अरमानो पर जिंदा दफ़न हुयी
चलो आओं आज उसी चाहत को
अपने दिल के आँगन में एक साथ उगायें
आखिर बरसों की जुदाई के
तप में कुछ तो तपिश होगी
कुछ तो अंकुर होंगे
जो अभी बचे होंगे
जिन्हें अभी नेह के मेह की तलाश होगी
कुछ फूल तो जरूर खिलेंगे...है ना
वक्त की दहलीज पर
तेरा मेरा मिलना
ज्यूँ संगम किसी क्षितिज का होना
तुम और मैं
आज मोहब्बत को नया आयाम दें
तुम्हारे लरजते अधर
आमंत्रण देते नयन बाण
ये उठती गिरती पलकें
दिल की धडकनों का
पटरी पर दौड़ती रेल की
आवाज़ सा स्पंदन
देखो ...
देख रही हो ना
ये जलता हुआ निशान
ये उसी सिसकी की निशानी है मेरे सीने पर
देखो कितने निशाँ हैं तुम्हारी चाहत के
क्या गिन पाओगी इन्हें ...
देखो तो
अब तक हरे हैं ...
उफ़ !
ज़िन्दगी ना मैं जी पायी हूँ
ना तुमने कभी करवट ली
जानती हूँ
मगर देर हो गयी न
तुम और तुम्हारी दुनिया
मैं और मेरी दुनिया
अपना अपना संसार
दो ध्रुव ज़िन्दगी के
कभी देखा है ध्रुवों को
एकाकार होते हुए
अरे क्या कह रही हो
कब और कैसे ध्रुवीकरण कर दिया तुमने
मैं तो आज भी तुम्हें खुद में समाहित पाता हूँ
जब खुद से भटक जाता हूँ
तुममे खुद को पाता हूँ
जब भी तुम्हारी
याद की ओढनी ओढ़कर
चाहत चली आई
तारों की मखमली चादर मैंने बिछायी
उस पर तुम्हारी याद की सेज सजाई
कहो फिर कैसे कहती हो
जुदा हैं हम
क्या नहीं जानतीं
चाहतों का सुहाग अमर होता है
चलो आओ आज फिर
एक नयी शुरुआत करें
जो छूट गया था
कुछ तुममे और कुछ मुझमे
कुछ तुम्हारा और कुछ मेरा
वो सामान तलाश करें
जो चाहत परवान ना चढ़ी
जो दुनिया के अरमानो पर जिंदा दफ़न हुयी
चलो आओं आज उसी चाहत को
अपने दिल के आँगन में एक साथ उगायें
आखिर बरसों की जुदाई के
तप में कुछ तो तपिश होगी
कुछ तो अंकुर होंगे
जो अभी बचे होंगे
जिन्हें अभी नेह के मेह की तलाश होगी
कुछ फूल तो जरूर खिलेंगे...है ना
वक्त की दहलीज पर
तेरा मेरा मिलना
ज्यूँ संगम किसी क्षितिज का होना
तुम और मैं
आज मोहब्बत को नया आयाम दें
तुम्हारे लरजते अधर
आमंत्रण देते नयन बाण
ये उठती गिरती पलकें
दिल की धडकनों का
पटरी पर दौड़ती रेल की
आवाज़ सा स्पंदन
हया की लालिमा
सांझ की लालिमा को भी शर्मसार करती हुई
मुझे बेकाबू कर रही है
मैं भीग रहा हूँ
तुम्हारे नेह की धारा में
अब होश कैसे रखूँ
देखो ना ...
मेरी आँखों में तैरते गुलाबी डोरों को
क्या इनमे तुम्हें
एक तूफ़ान नज़र नहीं आता
बताओ तो
कहाँ जाऊँ अब?
कैसे सागर की प्यास बुझाऊँ ?
अधरामृत की मदिरा में कैसे रसपान करूँ ?
कुछ तो कहो ना ..
तुम तो यूँ
सकुचाई शरमाई
इक अलसाई सी अंगडाई लग रही हो
क्या तुम्हें मेरे प्रेम की तपिश
नेह निमंत्रण नहीं दे रही
कैसे इतना सहती हो ?
मैं झुलस रहा हूँ
तुम्हारा मौन और झुलसा रहा है
अरे रे रे ...
ये क्या सोचने लगीं
सांझ की लालिमा को भी शर्मसार करती हुई
मुझे बेकाबू कर रही है
मैं भीग रहा हूँ
तुम्हारे नेह की धारा में
अब होश कैसे रखूँ
देखो ना ...
मेरी आँखों में तैरते गुलाबी डोरों को
क्या इनमे तुम्हें
एक तूफ़ान नज़र नहीं आता
बताओ तो
कहाँ जाऊँ अब?
कैसे सागर की प्यास बुझाऊँ ?
अधरामृत की मदिरा में कैसे रसपान करूँ ?
कुछ तो कहो ना ..
तुम तो यूँ
सकुचाई शरमाई
इक अलसाई सी अंगडाई लग रही हो
क्या तुम्हें मेरे प्रेम की तपिश
नेह निमंत्रण नहीं दे रही
कैसे इतना सहती हो ?
मैं झुलस रहा हूँ
तुम्हारा मौन और झुलसा रहा है
अरे रे रे ...
ये क्या सोचने लगीं
देखो ये वासनात्मक राग नहीं है
ये तो प्रेम की उद्दात तरंगो पर बहता अनुराग है
ये तो प्रेम की उद्दात तरंगो पर बहता अनुराग है
तुम इसे कोई दूसरा अर्थ ना देना
जानती हो ना
जानती हो ना
प्रेम के पंछी तो सिर्फ तरंगों में बहते हैं
वहाँ वासना दूर कोने में खडी सुबकती है
ये प्रेमानुभूति तो सिर्फ
रूहों के स्पंदन की नैसर्गिक क्रिया है
जानती हूँ ...
रूहें भटक रही हैं
मगर तब भी इम्तिहान अभी बाकी है
बेशक तुम्हारे संग
मैंने भी ख्वाबों की चादर लपेटी है
जहाँ तुम , तुम्हारी सांसें
तुम्हारे बाहुपाश में बंधा मेरा अक्स
जैसे कोई मुसाफिर
राह के सतरंगी सपने में
एक टूटा तारा सहेज रहा हो
जैसे कोई दरवेश
खुदा से मिल रहा हो
जैसे खुदा खुद आज
आसमां में मोतियों की झालर टांग रहा हो
है ना ....यही अहसास !
मगर फिर भी
ना तुम ना मैं
अभी अपने किनारों से अलग हुए हैं
फिर कहो कैसे बाँध तोड़ोगे ?
क्या भावनाएं बाँधों से बड़ी हो गयीं
या हमारी पाक़ मोहब्बत छोटी हो गयी
मोहब्बत ने तो कभी
रुसवा नहीं किया किरदारों को
फिर तुम कैसे झुलस गए अंगारों पर
माना ...मोहब्बत है
इम्तिहान भी तो यही है
जब तुम हो और मैं हूँ
दिल भी है धड़कन भी है
अरमान भी मचल रहे हैं
मगर यूँ
सरे बाज़ार बेआबरू नहीं होती मोहब्बत
किसी एक चाहत की लाश पर नहीं सोती मोहब्बत
तो फिर तुम ही कहो क्या करें
कैसे अब के मिले
फिर कभी ना बिछडें
अब दूरियां नहीं सही जातीं
जानता हूँ ...
हालात इक तरफा नहीं
जो तूफ़ान यहाँ ठहरा है
उसी में तुम भी घिरी हो
अपनी मर्यादा की दहलीज पर
मगर अब तो कोई हल ढूंढना होगा
मोहब्बत को मुकाम देना होगा
जो कल ना मिला
वो सब आज हासिल करना होगा
बहुत हुआ
जी लिए बहुत ज़माने के लिए
चलो अब कुछ पल
खुद के लिए भी जी लें
जो अरमान राख़ बन चुके थे
उन्हें ज़िन्दा कर लें
मगर कैसे?
क्या बता सकोगे ?
वहाँ वासना दूर कोने में खडी सुबकती है
ये प्रेमानुभूति तो सिर्फ
रूहों के स्पंदन की नैसर्गिक क्रिया है
जानती हूँ ...
रूहें भटक रही हैं
मगर तब भी इम्तिहान अभी बाकी है
बेशक तुम्हारे संग
मैंने भी ख्वाबों की चादर लपेटी है
जहाँ तुम , तुम्हारी सांसें
तुम्हारे बाहुपाश में बंधा मेरा अक्स
जैसे कोई मुसाफिर
राह के सतरंगी सपने में
एक टूटा तारा सहेज रहा हो
जैसे कोई दरवेश
खुदा से मिल रहा हो
जैसे खुदा खुद आज
आसमां में मोतियों की झालर टांग रहा हो
है ना ....यही अहसास !
मगर फिर भी
ना तुम ना मैं
अभी अपने किनारों से अलग हुए हैं
फिर कहो कैसे बाँध तोड़ोगे ?
क्या भावनाएं बाँधों से बड़ी हो गयीं
या हमारी पाक़ मोहब्बत छोटी हो गयी
मोहब्बत ने तो कभी
रुसवा नहीं किया किरदारों को
फिर तुम कैसे झुलस गए अंगारों पर
माना ...मोहब्बत है
इम्तिहान भी तो यही है
जब तुम हो और मैं हूँ
दिल भी है धड़कन भी है
अरमान भी मचल रहे हैं
मगर यूँ
सरे बाज़ार बेआबरू नहीं होती मोहब्बत
किसी एक चाहत की लाश पर नहीं सोती मोहब्बत
तो फिर तुम ही कहो क्या करें
कैसे अब के मिले
फिर कभी ना बिछडें
अब दूरियां नहीं सही जातीं
जानता हूँ ...
हालात इक तरफा नहीं
जो तूफ़ान यहाँ ठहरा है
उसी में तुम भी घिरी हो
अपनी मर्यादा की दहलीज पर
मगर अब तो कोई हल ढूंढना होगा
मोहब्बत को मुकाम देना होगा
जो कल ना मिला
वो सब आज हासिल करना होगा
बहुत हुआ
जी लिए बहुत ज़माने के लिए
चलो अब कुछ पल
खुद के लिए भी जी लें
जो अरमान राख़ बन चुके थे
उन्हें ज़िन्दा कर लें
मगर कैसे?
क्या बता सकोगे ?
कैसे जहाँ से बचोगे
जो दुनिया
गोपी कृष्ण भाव को ना जान पाई
वहाँ भी जिसने तोहमत लगायी
वो क्या प्रेम की दिव्यता जान पायेगी
तुम्हारे और मेरे
प्रेम को कसौटी की
चिता पर ना सुलायेगी
जहाँ जिस्म नहीं आत्माएं सुलगेंगी
वहाँ प्रेम की सुगंध नहीं बिखरेगी
दुनिया की नृशंसता नर्तन करेगी
वो तो इसे जिस्मानी प्रेम ही समझेगी
ऐसे मे
क्या दुनिया को समझा सकोगे?जो दुनिया
गोपी कृष्ण भाव को ना जान पाई
वहाँ भी जिसने तोहमत लगायी
वो क्या प्रेम की दिव्यता जान पायेगी
तुम्हारे और मेरे
प्रेम को कसौटी की
चिता पर ना सुलायेगी
जहाँ जिस्म नहीं आत्माएं सुलगेंगी
वहाँ प्रेम की सुगंध नहीं बिखरेगी
दुनिया की नृशंसता नर्तन करेगी
वो तो इसे जिस्मानी प्रेम ही समझेगी
ऐसे मे
मोहब्बत की पाक़ तस्वीर दिखा सकोगे?
क्या दुनिया समझ सकेगी?
क्या फिर से मोहब्बत दीवारों में ना चिनेगी ?
तो बताओ तुम ही क्या करूँ मैं
अब नहीं जी सकता
एक बार खो चुका हूँ
अब फिर से नहीं खो सकता
वो तो अब मैं भी
इतनी आगे आ चुकी हूँ
वापस जा नहीं सकती
तुमसे खुद को जुदा कर नहीं सकती
तुम्हारे बिन इक पल अब
फिर से जी नहीं सकती
तो फिर आओ
आज निर्णय करना होगा
क्या मेरा साथ दोगी उसमे
आज मोहब्बत तेरा इम्तिहान लेगी
क्या दे सकोगी ?
तुम कहो तो सही
यहाँ ज़िन्दा रहकर मिल नहीं सकते
और काँटों की सेज पर
फिर से सो नहीं सकते
तो क्यूँ ना ऐसा करें
.......................
हाँ हाँ कहो ना
......................
तुम जानते हो
क्या कहना चाहती हूँ
ये तो जिस्मों की बंदिशें हैं
रूहें तो आज़ाद हैं
हाँ सही कह रही हो
मेरा तो हर कदम
तेरी रहनुमाई के सदके देता है
तेरे साथ जी ना सके
गम नहीं
रूह की आवाज़ पर भी थिरकता है
तो फिर आओ
चलें .............
उस जहाँ की ओर
जहाँ मोहब्बत
चिरायु हो जाए
लम्हों की कहानी
सदियों की जुबानी हो जाये ..............