आ
मेरी चाहत
तुझे दुल्हन बना दूँ
तुझे ख्वाबों के
सुनहले तारों से
सजा दूँ
तेरी मांग में
सुरमई शाम का
टीका लगा दूँ
तुझे दिल के
हसीन अरमानों की
चुनरी उढा दूँ
अंखियों में तेरी
ज़ज्बातों का
काजल लगा दूँ
माथे पर तेरे
दिल में मचलते लहू की
बिंदिया सजा दूँ
अधरों पर तेरे
भोर की लाली
लगा दूँ
सिर पर तेरे
प्रीत का
घूंघट उढा दूँ
आ
मेरी चाहत
तुझे दुल्हन बना दूँ
पृष्ठ
बुधवार, 30 सितंबर 2009
गुरुवार, 24 सितंबर 2009
मेरे संवेदनहीन पिया
मेरे संवेदनहीन पिया
दर्द के अहसास से विहीन पिया
दर्द की हर हद से गुजर गया कोईऔर तुम मुस्कुराकर निकल गए
कैसे घुट-घुटकर जीती हूँ मैं
ज़हर के घूँट पीती हूँ मैं
साथ होकर भी दूर हूँ मैं
ये कैसे बन गए ,जीवन पिया
मेरे संवेदनहीन पिया
जिस्मों की नजदीकियां
बनी तुम्हारी चाहत पिया
रूह की घुटती सांसों को
जिला न पाए कभी पिया
मेरे संवेदनहीन पिया
आंखों में ठहरी खामोशी को
कभी समझ न पाए पिया
लबों पर दफ़न लफ्जों को
कभी पढ़ न पाए पिया
ये कैसी निराली रीत है
ये कैसी अपनी प्रीत है
तुम न कभी जान पाए पिया
मैं सदियों से मिटती रहीबेनूर ज़िन्दगी जीती रही
बदरंग हो गए हर रंग पिया
मेरे संवेदनहीन पिया
आस का दीपक बुझा चुकी हूँ
अपने हाथों मिटा चुकी हूँ
अरमानों को कफ़न उढा चुकी हूँ
नूर की इक बूँद की चाहत में
ख़ुद को भी मिटा चुकी हूँ
फिर भी न आए तुम पिया
कुछ भी न भाए तुम्हें पिया
कैसे तुम्हें पाऊँ पिया
कैसे अपना बनाऊं पिया
कौन सी जोत जगाऊँ पिया
मेरे संवेदनहीन पिया
दर्द के अहसास से विहीन पिया
दर्द की हर हद से गुजर गया कोईऔर तुम मुस्कुराकर निकल गए
कैसे घुट-घुटकर जीती हूँ मैं
ज़हर के घूँट पीती हूँ मैं
साथ होकर भी दूर हूँ मैं
ये कैसे बन गए ,जीवन पिया
मेरे संवेदनहीन पिया
जिस्मों की नजदीकियां
बनी तुम्हारी चाहत पिया
रूह की घुटती सांसों को
जिला न पाए कभी पिया
मेरे संवेदनहीन पिया
आंखों में ठहरी खामोशी को
कभी समझ न पाए पिया
लबों पर दफ़न लफ्जों को
कभी पढ़ न पाए पिया
ये कैसी निराली रीत है
ये कैसी अपनी प्रीत है
तुम न कभी जान पाए पिया
मैं सदियों से मिटती रहीबेनूर ज़िन्दगी जीती रही
बदरंग हो गए हर रंग पिया
मेरे संवेदनहीन पिया
आस का दीपक बुझा चुकी हूँ
अपने हाथों मिटा चुकी हूँ
अरमानों को कफ़न उढा चुकी हूँ
नूर की इक बूँद की चाहत में
ख़ुद को भी मिटा चुकी हूँ
फिर भी न आए तुम पिया
कुछ भी न भाए तुम्हें पिया
कैसे तुम्हें पाऊँ पिया
कैसे अपना बनाऊं पिया
कौन सी जोत जगाऊँ पिया
मेरे संवेदनहीन पिया
शुक्रवार, 18 सितंबर 2009
सात दिनों का मेला
ये दुनिया सात दिनों का मेला
आठवां दिन न आया कभी
ख्वाब बरसों के बुनता रहा
पल भी चैन न पाया कभी
क्षण क्षण जीता मरता रहा
पर ख़ुद को न जान पाया कभी
आठवें दिन की आस में
सात दिन भी न जी पाया कभी
प्राणी जीवन सात दिनों का मेला है
कुछ तो यत्न करना होगा
सात दिनों में मरने से पहले
भवसिंधु से भी तरना होगा
जो जीवन भर न कर पाया
वो यत्न अब करना होगा
जैसा उज्जवल भेजा उसने
वैसा उज्जवल बनना होगा
ये दुनिया सात दिनों का मेला
आठवां दिन न आया कभी
कृपया मेरा नया ब्लॉग भी पढ़ें .................
http://ekprayas-vandana.blogspot.com
आठवां दिन न आया कभी
ख्वाब बरसों के बुनता रहा
पल भी चैन न पाया कभी
क्षण क्षण जीता मरता रहा
पर ख़ुद को न जान पाया कभी
आठवें दिन की आस में
सात दिन भी न जी पाया कभी
प्राणी जीवन सात दिनों का मेला है
कुछ तो यत्न करना होगा
सात दिनों में मरने से पहले
भवसिंधु से भी तरना होगा
जो जीवन भर न कर पाया
वो यत्न अब करना होगा
जैसा उज्जवल भेजा उसने
वैसा उज्जवल बनना होगा
ये दुनिया सात दिनों का मेला
आठवां दिन न आया कभी
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मंगलवार, 15 सितंबर 2009
मौत भी उसकी मौत पर रोया करे
एक मौत,मर कर मरे , तो क्या मरे
आदमी है वो,जो हर पल, मर-मरकर जिया करे
मौत भी हार जाती है उसके आगे
जो ज़िन्दगी से मौत की ज़ंग लड़ा करे
मौत क्या मारेगी उस जीवट को
जो मौत को सामने देख हंसा करे
हो ज़िन्दगी ऐसी आदमी की
कि मौत भी ,उसकी मौत पर , रोया करे
कृपया मेरा नया ब्लॉग पढ़ें :
http://ekprayas-vandana.blogspot.com
आदमी है वो,जो हर पल, मर-मरकर जिया करे
मौत भी हार जाती है उसके आगे
जो ज़िन्दगी से मौत की ज़ंग लड़ा करे
मौत क्या मारेगी उस जीवट को
जो मौत को सामने देख हंसा करे
हो ज़िन्दगी ऐसी आदमी की
कि मौत भी ,उसकी मौत पर , रोया करे
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बुधवार, 9 सितंबर 2009
विदा करो मुझे
किस शून्य में
छिप गए हो
कहाँ कहाँ ढूंढूं
किस अंतस को चीरूँ
जब से गए हो मुहँ मोड़कर
प्रीत की हर रीत तोड़कर
किस पथ को निहारूं मैं
कैसे बाट जोहारूं मैं
तुम तो मुख मोड़ गए
मुझे अकेला छोड़ गए
अंखियन ने बहना छोड़ दिया है
ह्रदय का स्पंदन रुक गया है
तुम्हारे वियोग में प्रीतम
अंतस मेरा सूख चुका है
वो तेरा रूठ कर जाना
फिर बुलाने पर भी ना आना
जीवन को ग्रहण लगा गया है
कैसे भीगी सदायें भेजूं
किन हवाओं से पैगाम भेजूं
कैसे ख़त पर तेरा नाम लिखूं
लहू भी सूख चुका है अब तो
निष्क्रिय तन है अब तो
सिर्फ़ साँसों की डोर है बाकी
विदाई की अन्तिम बेला है
और आस की डोर कहीं बंधी है
तुम्हारे मिलन को तरस रही है
तेरे दीदार की खातिर
ज़िन्दगी मौत से लड़ रही है
हर आती जाती साँस के साथ
अधरों पर
तेरे नाम की माला जप रही है
निश्चेतन तन में कहीं
कोई चेतना बची नही है
इक श्वास ही कहीं
अटकी पड़ी है
तेरे विरह में कहीं
भटक रही है
अब तो आ जा
अब तो आ जा..........
मुझे एक बार फिर से
अपना बना जा
मेरी विदाई को
मेरा इंतज़ार न बना
शायद यही सज़ा है मेरी
आह ! नही आओगे
लो चलती हूँ अब
विदा करो मुझे
मेरे इंतज़ार के साथ
आस भी टूट गई
रूह भी पथरा गई
और साँस थम गई
छिप गए हो
कहाँ कहाँ ढूंढूं
किस अंतस को चीरूँ
जब से गए हो मुहँ मोड़कर
प्रीत की हर रीत तोड़कर
किस पथ को निहारूं मैं
कैसे बाट जोहारूं मैं
तुम तो मुख मोड़ गए
मुझे अकेला छोड़ गए
अंखियन ने बहना छोड़ दिया है
ह्रदय का स्पंदन रुक गया है
तुम्हारे वियोग में प्रीतम
अंतस मेरा सूख चुका है
वो तेरा रूठ कर जाना
फिर बुलाने पर भी ना आना
जीवन को ग्रहण लगा गया है
कैसे भीगी सदायें भेजूं
किन हवाओं से पैगाम भेजूं
कैसे ख़त पर तेरा नाम लिखूं
लहू भी सूख चुका है अब तो
निष्क्रिय तन है अब तो
सिर्फ़ साँसों की डोर है बाकी
विदाई की अन्तिम बेला है
और आस की डोर कहीं बंधी है
तुम्हारे मिलन को तरस रही है
तेरे दीदार की खातिर
ज़िन्दगी मौत से लड़ रही है
हर आती जाती साँस के साथ
अधरों पर
तेरे नाम की माला जप रही है
निश्चेतन तन में कहीं
कोई चेतना बची नही है
इक श्वास ही कहीं
अटकी पड़ी है
तेरे विरह में कहीं
भटक रही है
अब तो आ जा
अब तो आ जा..........
मुझे एक बार फिर से
अपना बना जा
मेरी विदाई को
मेरा इंतज़ार न बना
शायद यही सज़ा है मेरी
आह ! नही आओगे
लो चलती हूँ अब
विदा करो मुझे
मेरे इंतज़ार के साथ
आस भी टूट गई
रूह भी पथरा गई
और साँस थम गई
सोमवार, 7 सितंबर 2009
तुम्हारी कैसे बनूँ मैं
सुनो
सब सुनती हूँ मैं
तुम्हारे हर जज़्बात को
समझती हूँ मैं
जो तुम कहते हो
जो नही कहते
वो भी पहचानती हूँ मैं
फिर भी नही चाहती
तेरा इज़हार -ऐ-मोहब्बत
कभी तो समझो
तुम भी मेरी व्यथा
आत्मा पर मोहब्बत शब्द
इक बदनुमा दाग सा लगता है
ह्रदय को बींध जाता है
वैसे ही छलनी हुए इस दिल में
तुम अपने प्रेम का
एक और छिद्र न अन्वेषित करो
अब इसमें कुछ ठहरता नही
फिर तुम्हारे प्रेम को
कहाँ संजोऊँ मैं
कैसे तुम्हारे प्रेम की
आरती उतारूँ मैं कैसे दिल का दिया जलाऊँ मैंसब छिद्रों से प्रवाहित हो जाता है
तेरे प्रेम का रस
अंतस में कुछ भी ठहरता ही नही
भावनाओं का कोई ज्वार
उठता ही नही
प्रेमरस के महासागर की
कोई लहर भिगोती ही नही
ह्रदय तरंगित होता ही नही
कैसे प्रेम का बीज, रोपित करुँ
कहीं कोई स्फुरण होता ही नही
कहीं कोई स्पंदन होता ही नही
फिर कहो कैसे
तुम्हारे प्रेम को
अपना नाम दूँ
कहीं कोई हिलोर
उठती ही नही
फिर कैसे
तेरे सवालों का जवाब दूँ मैं
कैसे तेरे सपनो को
अपनी अंखियों में पालूँ मैं
इस सूखे ह्रदय को
कहो कैसे
प्रेम रस की चाशनी मैं
डूबा डालूँ मैं
कौन सी धातु से
इन छिद्रों को भरूँ मैं
कैसे तेरे प्रेम का प्याला
पियूं मैं
कैसे तुझे अपना
बनाऊं मैं
बोलो, बोलो न
एक बार तो
जवाब दे जाओ
मेरे इस छलनी
ह्रदय के घाव
कैसे भरेंगे
इतना तो बता जाओ
कैसे तुम्हारी
जोगन बनूँ मैं
कैसे इस अंतस की
पीर सहूँ मैं
तुम्हारी कैसे बनूँ मैं ..............................
सब सुनती हूँ मैं
तुम्हारे हर जज़्बात को
समझती हूँ मैं
जो तुम कहते हो
जो नही कहते
वो भी पहचानती हूँ मैं
फिर भी नही चाहती
तेरा इज़हार -ऐ-मोहब्बत
कभी तो समझो
तुम भी मेरी व्यथा
आत्मा पर मोहब्बत शब्द
इक बदनुमा दाग सा लगता है
ह्रदय को बींध जाता है
वैसे ही छलनी हुए इस दिल में
तुम अपने प्रेम का
एक और छिद्र न अन्वेषित करो
अब इसमें कुछ ठहरता नही
फिर तुम्हारे प्रेम को
कहाँ संजोऊँ मैं
कैसे तुम्हारे प्रेम की
आरती उतारूँ मैं कैसे दिल का दिया जलाऊँ मैंसब छिद्रों से प्रवाहित हो जाता है
तेरे प्रेम का रस
अंतस में कुछ भी ठहरता ही नही
भावनाओं का कोई ज्वार
उठता ही नही
प्रेमरस के महासागर की
कोई लहर भिगोती ही नही
ह्रदय तरंगित होता ही नही
कैसे प्रेम का बीज, रोपित करुँ
कहीं कोई स्फुरण होता ही नही
कहीं कोई स्पंदन होता ही नही
फिर कहो कैसे
तुम्हारे प्रेम को
अपना नाम दूँ
कहीं कोई हिलोर
उठती ही नही
फिर कैसे
तेरे सवालों का जवाब दूँ मैं
कैसे तेरे सपनो को
अपनी अंखियों में पालूँ मैं
इस सूखे ह्रदय को
कहो कैसे
प्रेम रस की चाशनी मैं
डूबा डालूँ मैं
कौन सी धातु से
इन छिद्रों को भरूँ मैं
कैसे तेरे प्रेम का प्याला
पियूं मैं
कैसे तुझे अपना
बनाऊं मैं
बोलो, बोलो न
एक बार तो
जवाब दे जाओ
मेरे इस छलनी
ह्रदय के घाव
कैसे भरेंगे
इतना तो बता जाओ
कैसे तुम्हारी
जोगन बनूँ मैं
कैसे इस अंतस की
पीर सहूँ मैं
तुम्हारी कैसे बनूँ मैं ..............................
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