नहीं है मेरी मुट्ठी में चाहे सारा आस्माँ
आस्माँ को छूने की अभी इक उडान बाकी है
नहीं निकलतीं जिन पर्वतों से पीर की नदियाँ
उनके सीनों में भी अभी इक तूफ़ान बाकी है
नहीं हैं वाकिफ़ जो शहर रास्तों की खामोशियों से
उन शहरों के कफ़न में भी अभी इक ख्वाब बाकी है
नहीं है मेरी झोली में समन्दर तो क्या
ओक भर पीने की इक प्यास तो अभी बाकी है
नहीं हूँ किसी भी आँख का नूर तो क्या
खुद से आँख मिलाने का इक हुनर तो अभी बाकी है