पृष्ठ

अनुमति जरूरी है

मेरी अनुमति के बिना मेरे ब्लोग से कोई भी पोस्ट कहीं ना लगाई जाये और ना ही मेरे नाम और चित्र का प्रयोग किया जाये

my free copyright

MyFreeCopyright.com Registered & Protected

शनिवार, 29 नवंबर 2014

बाकी है

नहीं है मेरी मुट्ठी में चाहे सारा आस्माँ 
आस्माँ को छूने की अभी इक उडान बाकी है 

नहीं निकलतीं जिन पर्वतों से पीर की नदियाँ 
उनके सीनों में भी अभी इक तूफ़ान बाकी है 

नहीं हैं वाकिफ़ जो शहर रास्तों की खामोशियों से 
उन शहरों के कफ़न में भी अभी इक ख्वाब बाकी है 

नहीं है मेरी झोली  में समन्दर तो क्या 
ओक भर पीने की इक प्यास तो अभी बाकी है 

नहीं हूँ किसी भी आँख का नूर तो क्या 
खुद से आँख मिलाने का इक हुनर तो अभी बाकी है 

शुक्रवार, 14 नवंबर 2014

हाँ ,आ गया हूँ तुम्हारी दुनिया में



हाँ, आ गया हूँ 
तुम्हारी दुनिया में
अरे रे रे ...........
अभी तो आया हूँ
देखो तो कैसा 
कुसुम सा खिलखिलाया हूँ

देखो मत बाँधो मुझे
तुम अपने परिमाणों में 
मत करो तुलना मेरे 
रूप रंग की 
अपनी आँखों से
अपनी सोच से 
अपने विचारों से
मत लादो अपने ख्याल 
मुझ निर्मल निश्छल मन पर

देखो ज़रा 
कैसे आँख बंद कर 
अपने नन्हे मीठे 
सपनो में खोया हूँ
हाँ वो ही सपने
जिन्हें देखना अभी मैंने जाना नहीं है
हाँ वो ही सपने
जिनकी मेरे लिए अभी 
कोई अहमियत नहीं है
फिर भी देखो तो ज़रा
कैसे मंद- मंद मुस्काता हूँ
नींद में भी आनंद पाता हूँ

रहने दो मुझे 
ब्रह्मानंद के पास
जहाँ नहीं है किसी दूजे का भास
एकाकार हूँ अपने आनंद से
और तुम लगे हो बाँधने मुझको
अपने आचरणों से
डालना चाहते हो 
सारे जहान की दुनियादारी 
एक ही क्षण में मुझमे
चाहते हो बताना सबको
किसकी तरह मैं दिखता हूँ
नाक तो पिता पर है
आँख माँ पर 
और देखो होंठ तो 
बिल्कुल दादी या नानी पर हैं
अरे इसे तो दुनिया का देखो
कैसा ज्ञान है
अभी तो पैदा हुआ है
कैसे चंचलता से सबको देख रहा है
अरे देखो इसने तो 
रुपया कैसे कस के पकड़ा है
मगर क्या तुम इतना नहीं जानते
अभी तो मेरी ठीक से 
आँखें भी नहीं खुलीं
देखो तो
बंद है मेरी अभी तक मुट्ठी
बताओ कैसे तुमने 
ये लाग लपेट के जाल 
फैलाए हैं
कैसे मुझ मासूम पर
आक्षेप लगाये हैं

मत घसीटो मुझको अपनी
झूठी लालची दुनिया में
रहने दो मुझे निश्छल 
निष्कलंक निष्पाप

हाँ मैं अभी तो आया हूँ
तुम्हारी दुनिया में
मासूम हूँ मासूम ही रहने दो न
क्यों आस के बीज बोते हो
क्यों मुझमे अपना कल ढूंढते हो
क्यों मुझे भी उसी दलदल में घसीटते हो
जिससे तुम न कभी बाहर निकल पाए
मत उढाओ मुझे दुनियादारी के कम्बल
अरे कुछ पल तो मुझे भी 
बेफिक्री के जीने दो 
बस करो तो इतना कर दो
मेरी मासूम मुस्कान को मासूम ही रहने दो............

शनिवार, 8 नवंबर 2014

जाने क्यों?

अपने अन्दर झाँकती एक लडकी से मुखातिब हूँ मैं
जो रोज उम्र से आगे मुझे मिला करती है
जिरह के मोड मुडा करती है
देखती है समय की आँखों से परे एक हिंडोला
जिस पर पींग भरने को मेरा हाथ पकडती है

सोच में हूँ
चलूँ संग संग उसके
या छुडाकर हाथ
रंगूँ अपने रंग उसे

मन की दहलीज से विदा करूँ
या उम्र के स्पर्श से परे शगुन का तिलक करूँ

क्या यूँ ही बेवजह या वजह भी वजह ढूँढ रही है
और अन्दर झाँकती लडकी से कह रही है
शहर अब शहर नहीं रहे
बदल चुकी है आबोहवा
जाओ कोई और दरवाज़ा खटखटाओ
कि यहाँ अब नहीं ठहरती है कोई हवा

कराकर इल्म शहर के बदले मिज़ाज़ का
फिर भी
अपने अन्दर झाँकती एक लडकी से मुखातिब हूँ मैं ……जाने क्यों?

रविवार, 2 नवंबर 2014

आखिरी अभिलाषा



करना चाहते हो तुम कुछ मेरे लिए
तो बस इतना करना
जब अंत समय आये तो
खुद से ना मुझे जुदा करना

किसी मसले कुचले अनुपयोगी

पुष्प सम ना मुझे दुत्कार देना
माना देवता पर चढ़ नहीं सकता
मगर किसी याद की किताब में तो रह सकता हूँ

इन सूखी मुरझाई टहनियों पर

अपने स्नेह का पुष्प पल्लवित करना
जब बसंतोत्सव मना रहे हों
कुसुम चहुँ ओर मुस्कुरा रहे हों
कर सको तो बस इतना करना
मुझ रंगहीन, रसहीन ठूंठ में भी
तुम संवेदनाओं का अंकुरण भरना

अपने स्नेह जल से सिंचित करना

अपनी सुरभित बगिया का
मुझे भी इक अंग समझना
संग संग तुम्हारे मैं भी खिल जाऊँगा
तुम्हारी नेह बरखा में भीग जाऊँगा

माना बुझता चिराग हूँ मैं

रौशनी कर नहीं सकता
मगर फिर भी मुझको
अनुपयोगी बेजान जान
देहरी पर ना रख देना
अपने प्रेम के तेल से
मुझमे नव जीवन भर देना
बुझना तो है इक दिन मुझको
पर जीते जी ना दफ़न करना

अपने नवजात शिशु सम मुझे भी

अपना प्यार दुलार देना
महाप्रयाण का सफ़र आसान हो जायेगा
तुम्हारा भी पुत्र ऋण उतर जायेगा