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रविवार, 28 मार्च 2010

संजीवनी

हृदय तिमिर को  बींधती
तेरी रूह की 
सिसकती आवाज़
जब मेरे हृदय की
मरुभूमि से टकराती है
मुझे मेरे होने का 
अहसास करा जाती है
जब तेरे प्रेम की 
स्वरलहरियाँ हवा के
रथ पर सवार हो
मेरा नाम गुनगुना जाती हैं
मुझे जीने का सबब
सिखा जाती हैं
जब  दीवानगी की 
इम्तिहाँ पार कर 
तेरी चाहत मेरा
नाम पुकारा करती है
मेरी रूह देह की 
कब्र में फ़ड्फ़डाती है
और ना मिलने के 
अटल वादे की 
आहुतियाँ दिए जाती है
तेरे दर्द को भी जीती हूँ
अपने दर्द को भी पीती हूँ
प्रेम के इस मंथन में
हलाहल भी पीती हूँ
मगर फिर भी
तेरी इक पुकार की 
संजीवनी से जी उठती हूँ
मैं मर- मरकर भी 
मर नहीं पाती हूँ

रविवार, 21 मार्च 2010

गर प्यार से छू ले

आज भी 
सिहर जाए 
रोम रोम
गर तू
प्यार से 
छू ले मुझे
आज भी
डूब जाऊँ 
नैनों की 
मदिरा में
 गर तू
नज़र भर 
देख ले मुझे
आज भी 
बंध  जाऊँ
बाहुपाश में तेरे
 गर तू
स्नेहमय निमंत्रण दे 
उर स्पन्दनहीन
नहीं है
बस नेह जल के 
अभाव में
बंजर हो गया है

बुधवार, 17 मार्च 2010

तेरे पास

सुन 
तेरे चेहरे पर 
गुलाब सी खिली 
मधुर स्मित 
नज़र आती है मुझे
जब तू दूर -बहुत दूर
निंदिया के आगोश में
स्वप्नों के आरामगाह में
विचरण कर रहा होता है
तेरे सीने के मचलते ज्वार 
यहीं भिगो जाते हैं मुझे 
मेरे तड़पते जज्बातों को 
तेरी बेखुदी में
महकते ख्याल 
तेरे अहसासों की
 लोरियां सुना 
जाते हैं मुझे
तेरी धड़कन की 
हर आवाज़ सुना 
करती हूँ
तेरे हर पैगाम को
पढ़ा करती हूँ
और मैं यहीं 
तुझसे दूर होकर भी
तेरे पास होती हूँ

गुरुवार, 11 मार्च 2010

अब तो आ जा .......

आ जा
अब तो
एक बार
तड़प की
हर हद
पार हो चुकी है
बिन आंसू के
रोती हूँ
तुझ बिन
कैसे जीती हूँ
जानता है
तू भी
मगर फिर भी
मुझे तड़पाकर
कितना सुकून
तुझे मिलता होगा
ये पता है मुझे
अहसास सिर्फ
अहसास होते हैं
उनका नाम
नहीं होता ना
इसीलिए
तुझे अहसास
नाम दिया
और तूने
उसे सार्थक
कर दिया
अहसास बनकर
आया ज़िन्दगी में
अहसास सा
वजूद पर
छा गया
उस अहसास
की तड़प
तडपाती है
जो नही
कहना चाहती
वो भी
कह जाती है
अब तो आ जा
यार मेरे
अहसास का भी
अहसास अब तो
तड़पाता है
मत इम्तिहान ले
मेरे अहसास का
कहीं आज
धडकनें रुक
ना जायें
तेरे दीदार की
हसरत लिए
ना दफ़न
हो जायें
अब तो
आ जा
एक बार
बस एक बार.........

रविवार, 7 मार्च 2010

टूटे टुकड़े

१) सुनो
कुछ ख्वाब बोये थे
तुम्हारे साथ जीने के

बंजर ज़मीन में


२) वेदनाओं के ताबूत में
आखिरी कील जो
लगायी तुमने

रूह को सुकून आ गया


३) तेरी चाहत की
बैसाखियों ने
अपाहिज बनाया मुझे

बस लाश बनना बाकी है


४) कैसे समेटेगा
इन बिखरे टुकड़ों को
जिन्हें कभी
तू ने ही ....................


५) बिन बादल बरसती हूँ
बिन आंसू के रोती हूँ

कहीं सैलाब में बह ना जाऊं


६) दस्तक कोई देता ही नही
आवाज़ कोई आती ही नही

शायद हवाओं का रुख बदल रहा है

गुरुवार, 4 मार्च 2010

तेरी ख़ामोशी

तेरी ख़ामोशी
जब बातें करती है
मुझसे
बस वहीं धडकनें
रूक जाती हैं
जो तुझसे
नहीं कह पातीं
वो अफसाने
मेरे कानो में
बयां कर जाती हैं
कभी तेरा
तितलियों सा
उड़ना
कभी तूफ़ान सा
मचलना
कभी खग सदृश
आकाश में उड़ना
कभी यादों के
कटहरे में
सजायाफ्ता
मुजरिम सा
खामोश ठहर जाना
कभी मेघों सा
गरजना
कभी वेणी में गुंथे
पुष्पों सा महकना
और फिर कभी- कभी
कांच की तरह टूटे
ख्वाबों सा तेरा टूटना
कभी किसी
रुके दरिया सा
ख़ामोशी का सन्नाटा
कभी आँख से गिरे
अश्क सा मिटटी
में मिल जाना
तेरे हर पल
हर लम्हे की
दास्ताँ सुना जाती हैं
तेरी ख़ामोशी मुझे
बता फिर कैसे
कोई जिंदा रहे
और धडकनों की
आवाज़ सुने