इक गमगीन सुबह के पहरुए
करते हैं सावधान की मुद्रा में
साष्टांग दंडवत
कि
वक्त की चाबी है उनके हाथों में
तो अकेली लकीरें भला किस दम पर भरें श्वांस
ये अनारकली को एक बार फिर दीवार में चिने जाने का वक्त है
करते हैं सावधान की मुद्रा में
साष्टांग दंडवत
कि
वक्त की चाबी है उनके हाथों में
तो अकेली लकीरें भला किस दम पर भरें श्वांस
ये अनारकली को एक बार फिर दीवार में चिने जाने का वक्त है