दोस्तों,
मुझे उम्मीद नही थी कि दिल की बात टाइटल ही आप सबको इतना पसंद आएगा और आप जानना चाहेंगे दिल की बात ,क्यूंकि बात तो अधूरी ही थी न इसलिए मैंने सोचा दिल की बात की जाए .जो अभी अनकहा है वो अनकहा न रह जाए । मैं कोशिश करती हूँ कहने की मगर कह नही सकती किस हद तक कह पाऊँगी .आपका प्यार इसी तरह मिलता रहेगा मैं उम्मीद करती हूँ। आप सबने टाइटल पर ही इतने कमेन्ट दे दिए कि मैं मजबूर हो गई हूँ कि दिल कि बात कुछ तो कि जाए .आप सबका बहुत बहुत धन्यवाद.
दिल कि बात
काश ! दिल कि बात कहना इतना आसां होता । हर जज़्बात को शब्दों में ढालकर बयां करना इतना आसां नही होता।
कुछ न कुछ कमी रह ही जाती है.हर अहसास को शब्द कहाँ मिलते हैं । कुछ दिल बातें दिल ही दिल में रह जाती हैं । दिल कि बात कहने में शब्द भी खामोश हो जाते हैं.सागर कि गहराई तो फिर भी मापी जा सकती है मगर दिल कि गहराई को कैसे मापें । कौन सा पैमाना खोजें जिससे दिल कि अंतरतम गहराइयों में छुपी दिल कि बात को बाहर ला सकें। दिल कि गहराइयों में छिपे मोती हर किसी को नही मिलते । इन मोतियों का खजाना हमेशा दिल में ही दफ़न रहता है, वहां तक किसी कि भी पैठ नही होती ----------दिल कि भी नही । जिस जगह दिल ख़ुद नही जा पाता , अपने अहसास को ख़ुद नही ढूंढ पाता तो फिर हम दिल कि बात कैसे कर सकते हैं ,कैसे उसे शब्दों में ढालकर कलमबद्ध कर सकते हैं ।
सच दिल कि बातें दिल भी नही जानता तो हम कैसे कहें .
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गुरुवार, 15 जनवरी 2009
ज़िन्दगी का हिसाब
आज बहुत दिनों बाद ख़ुद से रु-बी-रु हुयी
पूछा, क्या दिया ज़िन्दगी ने आज तलक
हिसाब लगाने बैठी तो पाया
कि जमा तो कुछ किया ही नही
सब कुछ खोकर भी
कुछ भी न पाया मैंने
दोनों हाथ खाली थे
जैसे आई थी दुनिया में
वैसे ही हाथों को पाया मैंने
कहने को भीड़ बहुत है साथ
मगर वो सिर्फ़ भीड़ है
उसमें सबने इक दर्द ही दिया
अब लगा चेतना होगा
कुछ अपने लिए करना होगा
हम किसी के लिए क्या करेंगे
जब अपने लिए ही न कर सके
अब ख़ुद के लिए जीना होगा
दुनिया के दिए हर गम को
एक गर्म हवा का झोंका
समझ भूल जाना होगा
ज़िन्दगी को नए सिरे से
जीने के लिए
नए रास्ते तलाशने होंगे
कुछ ऐसा कर जाना होगा
कि पीछे मुड़कर देखने पर
पांव के निशान नज़र आने लगें
जिन पर चलकर किसी को
जीवन कि डगर आसान लगे
उस पल लगेगा
जीना मुझको आ गया
ज़िन्दगी का हिसाब
अब बराबर हो गया
फिर न खोने का गम होगा
क्यूंकि
इक मुट्ठी खुशी ही काफी है
ज़िन्दगी गुजारने के लिए
पूछा, क्या दिया ज़िन्दगी ने आज तलक
हिसाब लगाने बैठी तो पाया
कि जमा तो कुछ किया ही नही
सब कुछ खोकर भी
कुछ भी न पाया मैंने
दोनों हाथ खाली थे
जैसे आई थी दुनिया में
वैसे ही हाथों को पाया मैंने
कहने को भीड़ बहुत है साथ
मगर वो सिर्फ़ भीड़ है
उसमें सबने इक दर्द ही दिया
अब लगा चेतना होगा
कुछ अपने लिए करना होगा
हम किसी के लिए क्या करेंगे
जब अपने लिए ही न कर सके
अब ख़ुद के लिए जीना होगा
दुनिया के दिए हर गम को
एक गर्म हवा का झोंका
समझ भूल जाना होगा
ज़िन्दगी को नए सिरे से
जीने के लिए
नए रास्ते तलाशने होंगे
कुछ ऐसा कर जाना होगा
कि पीछे मुड़कर देखने पर
पांव के निशान नज़र आने लगें
जिन पर चलकर किसी को
जीवन कि डगर आसान लगे
उस पल लगेगा
जीना मुझको आ गया
ज़िन्दगी का हिसाब
अब बराबर हो गया
फिर न खोने का गम होगा
क्यूंकि
इक मुट्ठी खुशी ही काफी है
ज़िन्दगी गुजारने के लिए
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