उम्मीद के टोकरे में होकर सवार
आया नववर्ष मेरे द्वार
तो क्या हुआ
मुझे रीतना था , रीत गयी
वक्त ने जीतना था , जीत गया
एक नामालूम , बेवजह सा सपना था
टूटना था , टूट गया
ज़िन्दगी पाँव में पायल डाल जरूरी नहीं झंकार ही करे
मैंने उम्मीदों की शाख पर नहीं सुखाई अपनी हसरतें
क्योंकि
वक्त ने खार सा चुभना था , चुभ गया