दोस्तों
कल मेरा अपने ननिहाल अनूपशहर (छोटी काशी ) जो कहलाता है वहां जाना हुआ . मौका तो ऐसा था कि क्या कहूं ? लेकिन पता था शायद अब आना संभव नहीं होगा तो कुछ यादें समेट लायी . यूं तो मेरी मामी जी ने ४-५ दिन पहले इस दुनिया से विदा ले ली तो उसी सन्दर्भ में जाना हुआ और अब न ही मामा जी रहे तो लगा जैसे अब फिर कभी जाना हो न हो तो क्यों न सब यादों को समेट लिया जाये ........वैसे उनके दो लड़के वहां रहते हैं मगर कहाँ जाना होगा .........जब अभी पिछले २७-२८ सालों में सिर्फ मामाजी और मामीजी के दुनिया से कूच करने पर ही जाना हुआ तो आगे का क्या सोच सकती हूँ ..........बस इसलिए कुछ यादें हमेशा के लिए ले आई हूँ ...........कुछ ऐसे पलों को संजो लायी हूँ जो अब हमेशा मेरे साथ रहेंगे .
गाडी मे से चलते -चलते एक नज़ारा ये भी उत्तर प्रदेश के खेत खलिहान का
कहीं ठूंठ तो कहीं हरे- भरे
देखो मिल गया जमीं आसमाँ
कहाँ दीखते हैं ये नज़ारे
इन कंक्रीट के गलियारों में
आज भी खुला आसमान दिखता है
आज भी कहीं खलिहान मिलता है
ये है मेरे देश की मिट्टी जहाँ
आज भी अपनापन मिलता है
राह के नज़ारे
उपलों का संसार
सिर्फ यहीं दिखता है
अनूपशहर का मन्दिर जिसके पास है ननिहाल मेरा
ये एक छोटा सा मन्दिर जिसके साथ लगती सीढियाँ गंगा जी तक जाती हैं
आहा ! माँ गंगे के दर्शन किए
अद्भुत आनन्द समाया
लफ़्ज़ों मे वर्णित ना हो पाया
बरसात के दिनो मे गंगा जी जो शेड दिख रहे हैं वहाँ तक पहुंच जाती हैं
ना दिखा फ़र्क जहाँ धरती और आसमाँ मे
क्षितिज़ पर मिलन हुआ गंगा का दर्शन हुआ
हर हर गंगे तुमको नमन
करो स्वीकार मेरा वन्दन
गंगा को नमन और आचमन
मेरा भांजा ………राजू उर्फ़ उज्जवल
ये देखो त्रासदी मेरे देश की
गंगा का पवित्र किनारा
वहीँ बैठ करते ये मय का पान
कहो कोई कैसे करे गुणगान
कल कल करती गंगा बहती जाये
जिसके कदमों मे आस्माँ भी झुक जाये
गंगा का किनारा
शांत सुरम्य शीतल
बहती जलधारा
मन्द मन्द समीर ने
मन को मोहा
हनुमान जी की सेना ने भी लगाया डेरा
अब कहाँ दिखता है ऐसा खुला आस्माँ और ये नज़ारे
ये वो सीढियाँ जो गंगा की तरफ़ जाती हैं
मेरे देश के खेल खलिहान
शाम को सरसों के खेत का एक दृश्य
चलो चलें सरसों के खेत मे
सरसों संग हम भी खिल गये
राह के नज़ारे
चलती गाडी से
अद्भुत आनन्द मे डूबे
सूरज को जल देते हुये
इतना अद्भुत आनंद था गंगा किनारे आने का मन ही नहीं हो रहा था .........यूं लग रहा था बस यहीं रुक जाऊं .........अन्दर तक उतार लूं इस अद्भुत आनंद को .......चारों तरफ खुला नीला आसमाँ , शांत सौम्य गंगा का किनारा , हलके -हलके बादल और मंद -मंद बहती हवा ........उफ़ !यूं लगा जैसे ओक बनाकर एक घूँट में सारा अमृत पी जाऊँ
कमी थी तो सिर्फ एक उत्तर प्रदेश की सडकें जैसी पहले थीं आज भी वैसी ही हैं ..........अब सरकार कोई हो कुछ कब्रों पर फर्क नहीं पड़ता .....हिचकोले खाते , हड्डियाँ चटकवाते जैसे तैसे पहुंचे हम बुलंदशहर से अनूपशहर तक ...........तौबा कर ली और इसीलिए लगा अब कभी वापस यहाँ आना नहीं होगा ........
कमी थी तो सिर्फ एक उत्तर प्रदेश की सडकें जैसी पहले थीं आज भी वैसी ही हैं ..........अब सरकार कोई हो कुछ कब्रों पर फर्क नहीं पड़ता .....हिचकोले खाते , हड्डियाँ चटकवाते जैसे तैसे पहुंचे हम बुलंदशहर से अनूपशहर तक ...........तौबा कर ली और इसीलिए लगा अब कभी वापस यहाँ आना नहीं होगा ........