इस शहर के हर शख्स की
आँख में उबलता आक्रोश
देखा है कभी
अपने वजूद से लड़ते
आदमी का रूप
देखा है कभी
सीने में धधकता
ज्वालामुखी लिए हर शख्स
रोज कैसे मर-मरकर जीता है
देखा है कभी
कब , किस मोड़ पर ये
ज्वालामुखी फट जाए
और किसी नुक्कड़ पर
सीने की भड़ास ,अपनी बेबसी
उतारता आदमी
देखा है कभी
परेशानियों से जूझता
ज़िन्दगी से लड़ता आदमी
देखा है कभी
रोज नए ख्वाब बुनता
और फिर रोज
उन ख्वाबों के टूटने पर
टूटता - बिखरता आदमी
देखा है कभी
जीवन जीने की
जद्दोजहदसे परेशान
कभी हालत से लड़ता
तो कभी ख़ुद से लड़ता आदमी
देखा है कभी
34 टिप्पणियां:
kya khoob.. kavita hai
amazing poem , rozmarra ki zindagi se do chaar hote halaat ka acha bayaan kiya hai aapne .
regards
vijay
please read my new poem " झील" on www.poemsofvijay.blogspot.com
आदमी ऐसा ही होता है ......अच्छे भाव
Roj hee dekhte hain.
{ Treasurer-TSALIIM & SBAI }
हाँ ..वंदनाजी ...देखा है बहुत बार ..हर शहर में अनेकों आदमियों को ..! इसीलिए आपकी रचना का हरेक शब्द सही लगता है ...
देखा है कभी
रोज नए ख्वाब बुनता
और फिर रोज
उन ख्वाबों के टूटने पर
टूटता - बिखरता आदमी
देखा है कभी
जीवन जीने की
जद्दोजहदसे परेशान
कभी हालत से लड़ता
तो कभी ख़ुद से लड़ता आदमी
देखा है कभी
aapke bhav sachmuch jindgi ke kafi kareeb hain.dil se badhai!!!!
वन्दना जी।
इस सुन्दर कविता में आपने वाकई सारे जहाँ का दर्द और हकीकत
उडेल कर रख दी है।
जो नही भी देखा था उसे आपकी कविता ने दिखा दिया।
बधाई।
वन्दना जी,
एक सामयिक विषय पर इतनी सुन्दर कविता तुरत फुरत बना डाली आपने, बारूद के ढेर पर बैठे महानगरो की व्यथा को अत्यन्त सुन्दर ढन्ग से चित्रित किया है.
देखा है कभी
अपने वजूद से लड़ते
आदमी का रूप
देखा है कभी
सीने में धधकता
ज्वालामुखी लिए हर शख्स
रोज कैसे मर-मरकर जीता है
सचमुच महानगरो की यही व्यथा है,
देखा है कभी
रोज नए ख्वाब बुनता
और फिर रोज
उन ख्वाबों के टूटने पर
टूटता - बिखरता आदमी
बहुत खूबसूरत रचना वन्दना जी,ईश्वर आपकी प्रतिभा को इसी तरह नये आयाम देते रहे.
सादर
राकेश
Kabhee nahee.
{ Treasurer-T & S }
really good post
इस शहर के हर शख्स की
आँख में उबलता आक्रोश
देखा है कभी
विखराव के बिखरने पर आक्रोश को खूबसूरती से बयान किया है.
बेहतरीन रचना
वंदना जी हर मोड़ पर ऐसा आदमी दिखता है..... बस पहचानने की जरूरत है....
दिल को छूने वाली रचना है.. बधाई...
वाह जी वाह वंदना जी काबिलेतारीफ बहुत ही बेहतरीन रचना है दिल को छू गई
MAANA KI TOOTA HUVA, BIKHRA HUVA HAI AABMI....PAR FIR BHI JEEVAN SE JOOJHTA, HAALAT SE LADTAA HAI AADMI... GAJAB KI ABHIVYAKTI HAI AAPKI....DIL KO HILAATI HAI AAPKI YEH RACHNA....
ati sundar
ek shabd "behtareen"
Badhaiyaa
बेहद प्रभाव शाली अभिव्यक्ति
आभार एवं बधाइयां
आदमी की आदमियत आज सही में ही कहीं बौनी हो गई है.
Sundar bhav..sarthak jajba...lajwab prastuti.
शब्द-शिखर पर नई प्रस्तुति - "ब्लॉगों की अलबेली दुनिया"
har kadam par aisa tootata bikharta aadmi dekha hai hamne...
ham bhi to kai baar toote aur bikhre hain..
bahiut hi sateek abhivyakti aapki..
badhai..
हाँ देखा तो हूँ इसे लेकिन हर जगह अलग-अलग मोड़ पर लेकिन आपकी कविता ने उन्हें समेट कर इक ही जगह पर दिखा दिया............
बेहतरीन रचना........
bahut khoob ,
vanadna ji !!
kafi arse baad aana huaa lekin achchhi rachna padhkar man khush huaa .
renu...
har koi khud se hi lad raha hai........wajood ke liye.........
ek laajawaab kavita,.........
readelicious.........
roj dekha hai aise aadmi ko... har chauk chaurahon par dikhta hai... apne hi andar dikhta hai...
kavita ke bhaav achhe hai...
हर रोज देखते हैं।
वंदना जी बहुत सार्थक रचना...आपकी लेखनी को सलाम...
नीरज
इस शहर के हर शख्स की
आँख में उबलता आक्रोश
देखा है कभी
वन्दनाजी समाज मे आज के आदमी के लिये इतनी संवेदनायें बहुत बडिया ढंग से चित्रित की हैं बहुत सटीक अभिव्यक्ति है शुभकामनाये
इतने संघर्ष के बाद भी कभी अपनी उम्मीद न छोड़ना और झुझते रहना ही इंसान की फितरत है और इसी लिए हम जिन्दा है ....
पोस्ट बहुत पसंद आई ...
Pak Karamu reading your blog
har mod par khada hai ye aadmi. mera bharat mahaan.
aaha bahut badhiyaa header hai !
yatharthapark samwedansheel kavitayen
कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामना और ढेरो बधाई .
dekha hai kabhi....
"कभी हालत से लड़ता
तो कभी ख़ुद से लड़ता आदमी
देखा है कभी"
dekha nahi to dekho abhi.
vah vandan ji wah !!
aapmein kavita kehne ke saare gun develop ho gaye hain...
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