मिथक है
स्त्री पुरुष होना
या एक सरंचना का उद्भव
किसी कारण से होना
युगों से बांचते रहे हम
स्त्री पुरुष में अधिकार और कर्त्तव्य
मगर ना जान पाए उनके
समूचे अस्तित्व के आंकड़े
यूँ ही स्त्री नही हुआ जाता
उसके लिए सिर्फ
समर्पण ही काफी नहीं था
किया था उसने उस वक्त
कितना बड़ा त्याग
जब इन्द्र को हुआ था
ब्रह्म हत्या का श्राप
कौन सा पुरुष आगे आया
उसकी ब्रह्म हत्या को
चार भागों में था बांटा गया
उसमे से एक भाग
स्त्री को दिया गया
और उसने स्वीकार भी किया
क्यूँकि जानती थी वो
जनने की शक्ति से हो जाएगी आप्लावित
मस्तक उसका हो जायेगा गौरान्वित
जो कार्य पुरुष नहीं कर पायेगा
स्त्री का मुख तेज की लालिमा से
उदीप्त हो जायेगा
फिर कैसे पुरुष कर सकता है समानता
किसी भी युग में ?
किसी भी काल में
वरना तो स्त्री भी थी उतनी ही सशक्त
उतनी ही लोह हृदय
जितना आज का पुरुष दिखता है
फिर चाहे वो होता नहीं लोह्पुरुष
सिर्फ अपने दंभ में चूर
अपने मान के लिए
श्रेष्ठ साबित करने पर आमादा हो जाता है
नहीं जानता स्त्री का सच
यूँ ही स्त्री नहीं करती
त्याग और समर्पण
आज भी स्त्री है हर हाल में श्रेष्ठ
मगर उसने ना कभी जताया
जानती है .........जताने वाले कमजोर होते हैं
हो हिम्मत तो एक बार
उसके आकार तक आकर देखो
उसकी ऊँचाइयों को छूकर देखो
गर कर पाओ ऐसा तब कहना
पुरुष है श्रेष्ठ ..............
शक्ति यूँ ही हर किसी में आप्लावित नहीं होती
सामर्थ्यवान को ही ज्योतिपुंज सौंपा जाता है
शक्तिमान भी शक्ति के बिना अधूरा माना जाता है
फिर कहो पुरुष ! तुम हो कैसे स्त्री से श्रेष्ठ ?
कोई तो कारण रहा होगा ना
यूँ ही तो नहीं स्त्री को खुदा ने जननी का अधिकार दिया होगा
27 टिप्पणियां:
bahut hi saargarbhi rachanaa....antahhkaran se nikli hui..
is shrishtijagat ke do dhruv...gadi ke do pahiye...ek bhi kharab ho jaaye to jindgi ban jati hai narak...prem pyar dhairya ki prateek.."janani" hone ke naate poojya...bharya swaroop me keval bhogya samajh apni uttamta sabit karna!!!!! kya kahiyega...NAVRATRI PARV KI HARDIK BADHAAI...SUNDAR RACHNA...
वाह बहुत खुबसूरत।
aapko kisane kahaa ki purush shreshth hai sttri se...
@rajendra singh dogra जी पुरुष यही सिद्ध करने मे लगा रहता है कहेगा कौन ? क्या हमे नही दिखता ? आपको भी पता है और हमे भी बस वो ही सच कहा है
बेहद सशक्त लेखन ...
बहुत सुन्दर बात कही वंदना जी....
मगर पुरुष कहें और समझे तो बात बने...
बहुत अच्छी रचना...
आभार
अनु
स्त्री शक्ति का अतिसुन्दर विश्लेसन.....
अच्छी रचना के लिए बधाई।।।।।
स्त्री शक्ति का अतिसुन्दर विश्लेसन.....
अच्छी रचना के लिए बधाई।।।।।
प्रतिस्पर्धा का प्रश्न ही नहीं .... सम्मान की बात है
दोनों अपनी अपनी परिधि में श्रेष्ठ हैं
भावपूर्ण और सोचने को विवश करती सार्थक और सशक्त रचना |
नई पोस्ट:- हे माँ दुर्गा
http://vyakhyaa.blogspot.in/2012/10/blog-post_17.html
बहुत अद्भुत अहसास...सुन्दर प्रस्तुति .पोस्ट दिल को छू गयी.......कितने खुबसूरत जज्बात डाल दिए हैं आपने..........बहुत
शत प्रतिशत सहमत!!
jise kami ka aabhaas hota hai vahi to shor jyada machata hai...kabhi saksham insan ko apne geet gate nahi suna hoga.....to jag jahir hai ki purush isiliye dhol jyada peetTa hai sarv-shaktimaan hone ka taki vo apni kamiyon ko chhupa sake.
achchhe ahsaas... par sahmat nahi hoon..
स्त्री के अवदान पर सार्थक विमर्श है यह...
सुन्दर प्रस्तुति!
सशक्त और प्रभावशाली प्रस्तुती....
रश्मि जी की बात से सहमत .... सशक्त लेखन
सच है, यूँ ही अधिकार नहीं दिये जाते।
कहीं भी कुछ कहने की ज़रूरत नहीं . स्त्री माँ, बहन, बेटी, पत्नी, और मित्र की भूमिका और जीवन के साथ सदा श्रेष्ठ है . फिर दंभ कोई क्यों करे .
vichaar pradhaan kavita ke liye
aapko badhaaee .
Likhtee raho....ham padhte rahenge!
विचारोत्तेजक कविता।
खूबसूरत रचना.
यूं ही नही मिला स्त्री को जननी होने का अधिकार । सार्थक रचना, अलग सी भी ।
वाह वाह वाह ...
कहो पुरुष ! तुम हो कैसे स्त्री से श्रेष्ठ ?
कोई तो कारण रहा होगा ना
यूँ ही तो नहीं स्त्री को खुदा ने
जननी का अधिकार दिया होगा.
बहुत सुंदर प्रस्तुति.
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