यहाँ ज़िन्दा कौन है
ना आशा ना विमला
ना लता ना हया
देखा है कभी
चलती फिरती लाशों का शहर
इस शहर के दरो दीवार तो होते हैं
मगर कोई छत नहीं होती
तो घर कैसे और कहाँ बने
सिर्फ लाशों की
खरीद फरोख्त होती है
जहाँ लाशों से ही
सम्भोग होता है
और खुद को वो
मर्द समझता है जो शायद
सबसे बड़ा नामर्द होता है
ज़िन्दा ना शरीर होता है
ना आत्मा और ना ज़मीर
रोज़ अपनी लाश को
खुद कंधे पर ढोकर
बिस्तर की सलवटें
बनाई जाती हैं
मगर लाशें कब बोली हैं
चिता में जलना ही
उनकी नियति होती है
कुछ लाशें उम्र भर होम होती हैं
मगर राख़ नहीं
देखा है कभी
लाशों को लाशों पर रोते
यहाँ तो लाशों को
मुखाग्नि भी नहीं दी जाती
फिर लाशों का तर्पण कौन करे ?
28 टिप्पणियां:
बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
इंडिया दर्पण की ओर से शुभकामनाएँ।
बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
इंडिया दर्पण की ओर से शुभकामनाएँ।
Kuch sawalo ka koi jawab nai hota...... :(
behad marmikta liye hue....dil ko chooti hai.....
वीभत्स चेहरे ||
वीभत्स स्थिति का सटीक वर्णन ... छोटी छोटी बच्चियाँ भी लाश बना दी जाती हैं ...
vicharniye man ko uddvelit karti hui rachna.
मार्मिक चित्रण
अनावृत सत्य... झकझोरती रचना...
सादर.
रचना में मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया है आपने!
bahut dard bhara hai parandu sach yahi hai .
rachana
what a poem vandana
says every thing
please repost it on naari kavita blog
let it come into mass circulation
great work great expression
it touched my soul
सटीक अभिव्यक्ति !!
marmsparshi
ACHCHHEE RACHNA KE LIYE AAPKO BADHAAEE AUR SHUBH KAMNA .
aaj itne samaye baad aayi hoon .. aur dekh rahi hoon ki aapki rachna mein aur bhi gehrai aur dard hai ... behtareen prastuti ..
कुछ आध्यात्मिक एंगल से इसे देखने की कोशिश की।
चित्र नायाब है।
सार्थक पोस्ट ..!
नवसंवत्सर की हार्दिक शुभकामनाएँ|
मार्मिक चित्रण...
sachchaayi khuli aankhon se aisi hi dkhayi deti hai...!
log aurat ki is sthiti ka andaaza hi nahin laga sakte...!
sundar chitran...lekin vibhats....!!
बहुत जबरदस्त!!
satik rachna par man ki atarvyatha tees koi samajhta nahin .marmik jhakjho diya aapki post men.aabhar.
उफ्फ्फ....................मार्मिक, बेहतरीन.........हैट्स ऑफ इसके लिए।
ये ऐसा लाशें हैं जो एक दूसरे को लाश बनने का संबल दे रही हैं लगातार
काश बंद हो इनका ये खोखला नारीवादी प्रशिक्षण
और नामर्दों की दुनिया में निरी औरत बनने के ख्वाब और संस्कारों को तिलांजलि दे सकें ये लाशें....
bahut prabhavshali abhivyakti
no words to say bahut achchi abhiwyakti.....mere blog pr aapke darshan kb honge?///
लाश को प्रतीक के रूप में प्रयोग कर आपने जि़ंदगी की एक बड़ी सच्चाई को अनावृत्त किया है।
मार्मिक चित्रण ... जब पूरा शहर ही लाश बन गया है तो सच में तर्पण करने कौन आएगा ...
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