पृष्ठ

अनुमति जरूरी है

मेरी अनुमति के बिना मेरे ब्लोग से कोई भी पोस्ट कहीं ना लगाई जाये और ना ही मेरे नाम और चित्र का प्रयोग किया जाये

my free copyright

MyFreeCopyright.com Registered & Protected

बुधवार, 7 दिसंबर 2011

रोज मोहब्बत की छाँव नहीं होती .............


कुछ ज्यादा तो नही चाहा मैने
ना आस्मां के सितारे चाहे
ना समन्दर से गहरा प्यार
ना मोहब्बत के ताजमहल चाहे
ना ख्वाबो की इबादतगाह
ना तुझसे तेरा अक्स ही मांगा
ना तुझसे तेरी चाहत ही
फिर भी खफ़ा है ज़माना
जो सिर्फ़ इक लम्हे को
कैद करना चाहा
नज़रों के कैदखाने मे
पलकों के कपाट मे
बंद करना चाहा
आँसुओं के ताले लगा
लम्हे को जीना चाहा
आँसुओ की सलवटों मे
सैलाब कहाँ छुपे होते हैं
वो तो खुद लम्हों की
खताओं मे दफ़न होते हैं
फिर किस खता से पूछूं
उसकी डगर का पता
यहाँ तो अलसाये से दरख्तों पर भी
उदासियों वीरानियों का शोर है 

फिर हर वजूद को मिलें
मोहब्बत के मयखाने 
ऐसा कहाँ होता है 
शायद तभी कुछ वजूदों पर
रोज मोहब्बत की छाँव नहीं होती .............

43 टिप्‍पणियां:

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

यहाँ तो अलसाये से दरख्तों पर भी
उदासियों वीरानियों का शोर है
फिर हर वजूद को मिलें
मोहब्बत के मयखाने
ऐसा कहाँ होता है

बेहतरीन ।

सादर

सदा ने कहा…

वाह ..बहुत खूब।

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

बेहतरीन भाव ... बहुत सुंदर रचना

mridula pradhan ने कहा…

mahabbat ki chanw.......wah,bahut achchi lagi......

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

भावप्रवण रचना

Amrita Tanmay ने कहा…

जहाँ मोहब्बत की छाँव नहीं होती होगी उसकी कल्पना मात्र से ही झुरझुरी सी दौड़ जाती है . सुन्दर लिखा है.

रविकर ने कहा…

बहुत अच्छी पोस्ट ||
बधाई ||

kshama ने कहा…

Ekek lafz,ekek panktee dil kee gahyariyon me uatar gayee!

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

धूप छाँव का जीवन जीना हम सबने है सीख लिया।

राजेश उत्‍साही ने कहा…

मोहब्‍बत का मजा तो धूप में ही आता है।

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

वंदना जी,...क्या खूब लिखा आपने
कैद करना चाहा
नजरों के कैद खाने में
पलकों के कपाट में
बंद करना चाहा
आसुओं के ताले लगा,...बहुत सुंदर रचना,...
मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार है,...

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…

वंदना जी मार्मिक करती हुई रचना...........

संध्या शर्मा ने कहा…

शायद तभी कुछ वजूदों पर
रोज मोहब्बत की छाँव नहीं होती .............

वंदनाजी कितनी गहराई है आपके शब्दों में... मन को छू गयी आपकी रचना... आभार

कुमार राधारमण ने कहा…

अपने भीतर ही कहीं कोई ऊहापोह लगती है,वरना मुहब्बत करने वाली ज़माने की फ़िक्र कहां करते हैं!

Roshi ने कहा…

बहुत सुंदर भाव की सुंदर रचना

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

बढ़िया कविता...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी अन्य रचनाओं की भाँति यह भी बहुत भावपूर्ण अतुकान्त अभिव्यक्ति है!

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

sundar bhavo se saji behtarin rachana hai...

***Punam*** ने कहा…

"रोज मोहब्बत की छाँव नहीं होती .........."

भावपूर्ण अभिव्यक्ति ....!!

रंजना ने कहा…

मर्मस्पर्शी भावुक भावोद्गार...

बहुत बहुत सुन्दर...

Maheshwari kaneri ने कहा…

बहुत मार्मिक रचना......

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

bhaavpurn rachna, badhai.

Pallavi saxena ने कहा…

यहाँ तो अलसाये से दरख्तों पर भी
उदासियों वीरानियों का शोर है
फिर हर वजूद को मिलें
मोहब्बत के मयखाने
ऐसा कहाँ होता है
bahut khoob ...samay mile to us link par aaiyega jo aapko face book par send kiya tha maine :)

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल आज 08 -12 - 2011 को यहाँ भी है

...नयी पुरानी हलचल में आज... अजब पागल सी लडकी है .

Prakash Jain ने कहा…

Wah!!! Bahut khub...

Arun sathi ने कहा…

प्रेमपुर्ण कविता

Rakesh Kumar ने कहा…

क्या कहूँ वंदना जी.
आप तो बस आप ही हैं.
भाव समुन्दर में ऐसी लहरें उठातीं हैं
कि मन भाव विभोर हो डूब जाता है.
सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए आभार.

Akhil ने कहा…

behad bhaavpoorn rachna...aisi hi rachnayen padh kar srijan ka unmaad jaagta hai...bahut badhai vananda ji..

निवेदिता श्रीवास्तव ने कहा…

बहुत तीव्रता से उमड़ते-घुमड़ते भाव ,ठीक इन्द्रधनुषी बादलों सरीखे ........

बेनामी ने कहा…

खुबसूरत अल्फाजों में पिरोये जज़्बात....शानदार |

डॉ. दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें
चर्चा मंच-722:चर्चाकार-दिलबाग विर्क

Mamta Bajpai ने कहा…

बहुत खूब ...जिन्हें नसीब हो मोहब्बत की छांव
वे होते है खुश नशीव ...वर्ना तो ग़मों कमी कहा है खूबसूरत रचना

Deepak Shukla ने कहा…

Namaskar..

Jamane ko us se rahi hai adaavat...
Hai jisne yahan par kari jo muhabbat...

Sundar bhvabhivyakti...

Jane kyon mobile se comment post nahin ho pa raha..

Deepak...

विभूति" ने कहा…

मार्मिक भावाभिवय्क्ति.....

Amit Chandra ने कहा…

बेहतरीन रचना उतने ही खूबसूरत भाव.

मन के - मनके ने कहा…

कुछ ज्यादा तो नहीं चाहा मैने
फिर भी खफ़ा है जमाना
आसुओं के ताले लगा
लम्हों को जीना चाहा-
शायद तभी कुछ वज़ूदों पर
रोज़ मुहब्बत की छांव नहीं होती
बहुत ही सुंदर—कहीं जमीं नहीं मिलती,तो कहीं आसमां नहीं मिलता

Anupama Tripathi ने कहा…

सैलाब कहाँ छुपे होते हैं
वो तो खुद लम्हों की
खताओं मे दफ़न होते हैं फिर किस खता से पूछूं
उसकी डगर का पता

बहुत जबरदस्त ...कूट कूट कर दर्द भरा है ...और बहुत ख़ामोशी से बयां हो रहा है ...

मेरे भाव ने कहा…

बहुत अच्छी भावपूर्ण सुंदर रचना,..

Sadhana Vaid ने कहा…

बहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति वन्दना जी ! मन को छू लेने वाले उद्गारों को बड़ी खूबसूरती से शब्दों का बाना पहनाया है आपने ! अति सुन्दर !

Udan Tashtari ने कहा…

गज़ब!

Onkar Kedia ने कहा…

Behad sundar kavita

Rajesh Kumari ने कहा…

bahut khoobsurat bhaav ati sundar.

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" ने कहा…

bahut sunder bhav liye sunder rachna..sadar badhayee