ये कानखजूरों से रेंगते
सवालो के पत्थर
ये बेतरतीब से बिखरे
अशरारों के मंज़र
हादसों के गवाह
कब होते हैं
ये तो खुद हादसों की
वकालत करते हैं
सीने पर बिच्छू से
डंक मारते अलाव
उम्र भर जलने को
मजबूर होते हैं
चिता का धुआं
सुलगती आग को
हवा देता है
और हर ख्यालाती
मंज़र को होम
कर देता है
कभी देखा है
चिता को चीत्कार
करते हुये?
सवालो के पत्थर
ये बेतरतीब से बिखरे
अशरारों के मंज़र
हादसों के गवाह
कब होते हैं
ये तो खुद हादसों की
वकालत करते हैं
सीने पर बिच्छू से
डंक मारते अलाव
उम्र भर जलने को
मजबूर होते हैं
चिता का धुआं
सुलगती आग को
हवा देता है
और हर ख्यालाती
मंज़र को होम
कर देता है
कभी देखा है
चिता को चीत्कार
करते हुये?
45 टिप्पणियां:
गहन भावों को समेटे हुये ... बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
नये प्रतीकों के माध्यम से अभिव्यक्ति बहुत सुंदर
'चिता का चीत्कार... '' बढ़िया बिम्ब प्रयोग.. पूरी कविता सुन्दर...
सवालों के पत्थर , डंक मारते अलाव , चिता की चीत्कार ...
आप तो ऐसी ना थी !
आज 03- 08 - 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
____________________________________
अभिव्यक्ति के नये माध्यम से सजा सुन्दर रचना...
नए प्रतीक और बिम्ब.
वाह वंदना जी.
वाह क्या बात है वन्दना जी !
आक्रोश है ...
bahut khoob vandana ji....aabhar
अच्छी अभिवयक्ति....
चिता को चीत्कार........शीर्षक ही रौंगटे खड़े कर देने वाला है.......बढ़िया |
वाह क्या बात है वन्दना जी !
आप मेरे पेरक है
behtreen bhaavabhivaykti...
गहरी उतरती पंक्तियाँ।
चिता का धुआं
सुलगती आग को
हवा देता है
और हर ख्यालाती
मंज़र को होम
कर देता है
कभी देखा है
चिता को चीत्कार
करते हुये?
Uf!
.... कभी देखा है चिता को चीत्कार करते हुए...
वाह ! नवबिम्ब प्रयोग और गहन चिंतन....
सादर...
चिता का धुआं
सुलगती आग को
हवा देता है
और हर ख्यालाती
मंज़र को होम...
चिता का चीत्कार... बेहतरीन अभिव्यक्ति
चिता को तो चीत्कार करते हुए नहीं देखा मगर परिजनों को जरूर देखा है!
prateekon ke sunder prayog se prabhavi rachna ka acchha srijan.
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 04- 08 - 2011 को यहाँ भी है
नयी पुरानी हल चल में आज- अपना अपना आनन्द -
गहरी बात लिए पंक्तियाँ..... बहुत सुंदर लिखा है वंदनाजी.....
दिल की गहराईयों को छूने वाली बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
सादर,
डोरोथी.
बहुत ही सुन्दर और गहरे भाव के साथ लिखी हुई इस रचना के लिए हार्दिक बधाइयाँ!
मैं सुन रहा हूं चीत्कार
चिताओं का
सभ्यता के श्मशान में
हड्डियों के ढेर पर
मांस की चादर में
बेरंग आत्मा
जब सुलगती है तो
चीत्कार ज़रूरी है
लेकिन इसे सुनता वही है
जो ख़ुद सुलग रहा हो
हां,
मैं सुन रहा हूं चीत्कार
चिताओं का, चिंताओं का
अबलाओं का, मांओं का
करूण क्रंदन
हर घड़ी हर पल
क्योंकि वह प्रतिध्वनि है
मेरे ही अंतर्मन की
आप क्या जानते हैं हिंदी ब्लॉगिंग की मेंढक शैली के बारे में ? Frogs online
चिता का चीत्कार ....क्या कल्पना है...बेहतरीन !!
अंदर तक हिला देने वाली कविता।
सादर
sabse alag ye naya prayog bahut gahre tak gaya.....
वाह क्या बात है वन्दना जी !
सुन्दर भावों से सजी प्रस्तुति.बेहतरिन अभिव्यक्ति
चिताएं भी चीत्कार करतीं हैं ....
सुनने वाले चाहिए .....
सुंदर नज़्म ....!!
वाह ....बिलकुल अलग अंदाज में ...
वन्दना जी ...टिप्पणी करने वालों के लिए तो में कुछ नहीं कहूँगा..पर ----सवाल, असरार, अलाव , चिता का धुंआ व चिता का चीत्कार ....५ विषय हैं एक कविता में( ५ छोटी छोटी कवितायें ) जो आपस में सम्वद्ध भी नहीं हैं....आगे क्या कहा जाय ....
कभी देखा है
चिता को चीत्कार
करते हुये? .....बहुत मार्मिक रचना सच कहा किसने देखा ये सब ?
बहुत खूबसूरती से लिखी रचना |
jhakjhor ke rakh diya aapne....takleefdeh sach...
http://teri-galatfahmi.blogspot.com/
sunder abhivykti..
wah bahut khoob,and thanks for your comment
एक खामोश सी आवाज को सुनने की कोशिश वाकई काबिले तारीफ है ...
bhavpooran
wakai me aapki ye choti si kavita apne aap me bhut gahan bhavon ko samete huye hai....bhut khoob vandana ji...aapki is sahitya ki duniya me maine bhi apne chote chote kadam rkhe hai...kabhi mera blog bhi visit kre mujhe bhut khushi hogi..http://sonitbopche.blogspot.com
बहुत गहरीबात कह दी आपने।
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कम्प्यूटर से तेज़...!
सुज्ञ कहे सुविचार के....
gahri abhivyakti...
सुन्दर और गहरे भाव
बहुत खूब - बहुत सुंदर
चिता का चीत्कार... वाह, अद्भुत कल्पना है।
कविता कुछ संदेश भी दे रही है।
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