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बुधवार, 3 अगस्त 2011

कभी देखा है चिता को चीत्कार करते हुये?

ये कानखजूरों से रेंगते
सवालो के पत्थर
ये बेतरतीब से बिखरे
अशरारों के मंज़र
हादसों के गवाह
कब होते हैं
ये तो खुद हादसों की
वकालत करते हैं
सीने पर बिच्छू से
डंक मारते अलाव
उम्र भर जलने को
मजबूर होते हैं
चिता का धुआं
सुलगती आग को
हवा देता है
और हर ख्यालाती
मंज़र को होम
कर देता है
कभी देखा है
चिता को चीत्कार
करते हुये?

45 टिप्‍पणियां:

  1. गहन भावों को समेटे हुये ... बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

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  2. नये प्रतीकों के माध्यम से अभिव्यक्ति बहुत सुंदर

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  3. 'चिता का चीत्कार... '' बढ़िया बिम्ब प्रयोग.. पूरी कविता सुन्दर...

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  4. सवालों के पत्थर , डंक मारते अलाव , चिता की चीत्कार ...
    आप तो ऐसी ना थी !

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  5. अभिव्यक्ति के नये माध्यम से सजा सुन्दर रचना...

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  6. नए प्रतीक और बिम्ब.
    वाह वंदना जी.

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  7. चिता को चीत्कार........शीर्षक ही रौंगटे खड़े कर देने वाला है.......बढ़िया |

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  8. वाह क्या बात है वन्दना जी !
    आप मेरे पेरक है

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  9. चिता का धुआं
    सुलगती आग को
    हवा देता है
    और हर ख्यालाती
    मंज़र को होम
    कर देता है
    कभी देखा है
    चिता को चीत्कार
    करते हुये?
    Uf!

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  10. .... कभी देखा है चिता को चीत्कार करते हुए...

    वाह ! नवबिम्ब प्रयोग और गहन चिंतन....
    सादर...

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  11. चिता का धुआं
    सुलगती आग को
    हवा देता है
    और हर ख्यालाती
    मंज़र को होम...
    चिता का चीत्कार... बेहतरीन अभिव्‍यक्ति

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  12. चिता को तो चीत्कार करते हुए नहीं देखा मगर परिजनों को जरूर देखा है!

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  13. गहरी बात लिए पंक्तियाँ..... बहुत सुंदर लिखा है वंदनाजी.....

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  14. दिल की गहराईयों को छूने वाली बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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  15. बहुत ही सुन्दर और गहरे भाव के साथ लिखी हुई इस रचना के लिए हार्दिक बधाइयाँ!

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  16. मैं सुन रहा हूं चीत्कार
    चिताओं का


    सभ्यता के श्मशान में
    हड्डियों के ढेर पर
    मांस की चादर में
    बेरंग आत्मा
    जब सुलगती है तो
    चीत्कार ज़रूरी है
    लेकिन इसे सुनता वही है
    जो ख़ुद सुलग रहा हो
    हां,
    मैं सुन रहा हूं चीत्कार
    चिताओं का, चिंताओं का
    अबलाओं का, मांओं का
    करूण क्रंदन
    हर घड़ी हर पल
    क्योंकि वह प्रतिध्वनि है
    मेरे ही अंतर्मन की

    आप क्या जानते हैं हिंदी ब्लॉगिंग की मेंढक शैली के बारे में ? Frogs online

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  17. चिता का चीत्कार ....क्या कल्पना है...बेहतरीन !!

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  18. अंदर तक हिला देने वाली कविता।

    सादर

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  19. वाह क्या बात है वन्दना जी !

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  20. सुन्दर भावों से सजी प्रस्तुति.बेहतरिन अभिव्यक्ति

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  21. चिताएं भी चीत्कार करतीं हैं ....
    सुनने वाले चाहिए .....
    सुंदर नज़्म ....!!

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  22. वाह ....बिलकुल अलग अंदाज में ...

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  23. वन्दना जी ...टिप्पणी करने वालों के लिए तो में कुछ नहीं कहूँगा..पर ----सवाल, असरार, अलाव , चिता का धुंआ व चिता का चीत्कार ....५ विषय हैं एक कविता में( ५ छोटी छोटी कवितायें ) जो आपस में सम्वद्ध भी नहीं हैं....आगे क्या कहा जाय ....

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  24. कभी देखा है
    चिता को चीत्कार
    करते हुये? .....बहुत मार्मिक रचना सच कहा किसने देखा ये सब ?
    बहुत खूबसूरती से लिखी रचना |

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  25. jhakjhor ke rakh diya aapne....takleefdeh sach...







    http://teri-galatfahmi.blogspot.com/

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  26. wah bahut khoob,and thanks for your comment

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  27. एक खामोश सी आवाज को सुनने की कोशिश वाकई काबिले तारीफ है ...

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  28. wakai me aapki ye choti si kavita apne aap me bhut gahan bhavon ko samete huye hai....bhut khoob vandana ji...aapki is sahitya ki duniya me maine bhi apne chote chote kadam rkhe hai...kabhi mera blog bhi visit kre mujhe bhut khushi hogi..http://sonitbopche.blogspot.com

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  29. चिता का चीत्कार... वाह, अद्भुत कल्पना है।
    कविता कुछ संदेश भी दे रही है।

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