काश कर सकती ऐसा
कि कर लेती बंद
मन्त्रों से तुम्हें
और समेट लेती
तुम्हारा वजूद
एक छोटे से
यन्त्र में
पढवा लेती
कलमा किसी
मौलवी से
या किसी दरवेश से
या किसी फकीर से
और कर देता
वो तुम्हें बंद
चंद आहुतियों से
किसी अमावस की रात को
या किसी पूनम की रात को
मेरे लिए , मेरे नाम के साथ
ज़िन्दगी भर के लिए
मेरे बन जाने के लिए
और मैं पहन लेती
गले में उम्र भर के लिए
तुम्हें ताबीज बना कर
कि कर लेती बंद
मन्त्रों से तुम्हें
और समेट लेती
तुम्हारा वजूद
एक छोटे से
यन्त्र में
पढवा लेती
कलमा किसी
मौलवी से
या किसी दरवेश से
या किसी फकीर से
और कर देता
वो तुम्हें बंद
चंद आहुतियों से
किसी अमावस की रात को
या किसी पूनम की रात को
मेरे लिए , मेरे नाम के साथ
ज़िन्दगी भर के लिए
मेरे बन जाने के लिए
और मैं पहन लेती
गले में उम्र भर के लिए
तुम्हें ताबीज बना कर
55 टिप्पणियां:
और मैं पहन लेती ... अन्तिम पंक्तियां खासतौर पर बहुत ही अच्छी बन पड़ी है ... इस बेहतरीन अभिव्यक्ति के लिये बधाई ।
काश .....
कि ऐसा हो पाता...!!
सुन्दर....
इतना अपना , यानि इतनी कैद किसी को नहीं दी जा सकती ...और कहीं जो हमें ही कैद कर ले कोई ? इसीलिए कहते हैं कि प्यार इकतरफा रास्ता होता है ...सोचने पर मजबूर किया आपकी कविता ने ...
पढवा लेती
कलमा किसी
मौलवी से
या किसी दरवेश से
या किसी फकीर से
और कर देता
वो तुम्हें बंद
चंद आहुतियों से
ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगी
भावों को बहुत ही खूबसूरती से संजोया है
वहा वहा क्या कहे आपके हर शब्द के बारे में जितनी आपकी तारीफ की जाये उतनी कम होगी
आप मेरे ब्लॉग पे पधारे इस के लिए बहुत बहुत धन्यवाद अपने अपना कीमती वक़्त मेरे लिए निकला इस के लिए आपको बहुत बहुत धन्वाद देना चाहुगा में आपको
बस शिकायत है तो १ की आप अभी तक मेरे ब्लॉग में सम्लित नहीं हुए और नहीं आपका मुझे सहयोग प्राप्त हुआ है जिसका मैं हक दर था
अब मैं आशा करता हु की आगे मुझे आप शिकायत का मोका नहीं देगे
आपका मित्र दिनेश पारीक
bahut hi shandar
really romantic
मौलिकता वंदना जी आपकी पहचान है, रोज नए प्रयोग, वह भी सृजन के सौन्दर्य के साथ, सीधी सपाट भाषा और इस विधा में रोज नया सृजन वर्तमान कविता के लिए काफी आवश्यक हैं, इस सृजन के लिए नमन.
बहुत सुन्दर रचना है बधाई स्वीकारें वंदना जी।
वंदना जी,
इंतिहा है ये मोहब्बत की ......आखिरी पंक्तियाँ ओ दिल को छू गयी .......बेहतरीन....लाजवाब .......
और मैं पहन लेती
गले में उम्र भर के लिए
तुम्हें ताबीज बना कर
क्या ही खूब भाव व्यक्त किये है।
यह तो वशीकरण मन्त्र हो गया!!(निर्मल हास्य)
और मैं पहन लेती
गले में उम्र भर के लिए
तुम्हें ताबीज बना कर bahut touchi panktiyan
achchi rachna.
और मैं पहन लेती गले में तुम्हें ताबीज बनाकर.
वाकई काश...
और मैं पहन लेती
गले में उम्र भर के लिए
तुम्हें ताबीज बना कर.....
इन्तहां हो गई .........
खतरनाक इरादे हैं भाई :)
पर कविता जबर्दस्त्त है.
और मैं पहन लेती
गले में उम्र भर के लिए
तुम्हें ताबीज बना कर..
Vandana ji , Honestly speaking, I'm loving this expression.
.
काश ....कर सकती ऐसा....लाजवाब्
बेहद रोमांटिक कविता, नए अंदाज़ की... आपकी कविता अब नए आयामों को छू रही है...
बहुत सुन्दर भावप्रणव रचना!
और मैं पहन लेती
गले में उम्र भर के लिए
तुम्हें ताबीज बना कर.
भावों को बहुत ही खूबसूरती से संजोया है
सुन्दर .......
बहुत अच्छा लगा पडकर दीदी...
बहुत खूब अलफ़ाज़ बुने है आपने
वाह बेहतरीन भावाभिव्यक्ति...आभार
और मैं पहन लेती
गले में उम्र भर के लिए
तुम्हें ताबीज बना कर...
लाज़वाब! बहुत भावपूर्ण रचना...भावों को शब्दों में बहुत खूबसूरती से उकेरा है..आभार
काश --इस अहसास में ही कुछ खास बात है ।
ज़िन्दगी भर के लिए
मेरे बन जाने के लिए
और मैं पहन लेती
गले में उम्र भर के लिए
तुम्हें ताबीज बना कर
बहुत सुन्दर रचना!
और मैं पहन लेती
गले में उम्र भर के लिए
तुम्हें ताबीज बना कर
काश की ऐसा हो ही जाता ...सम्मोहित करते भाव उकेरे हैं....
satvik pyar ki sundar abhivyakti ...badhai...
bhavpoorna rachana
और मैं पहन लेती
गले में उम्र भर के लिए
तुम्हें ताबीज बना कर..
इस रचना का सूफ़ियाना रंग लाजवाब है।
बहुत बढ़िया.....अच्छी रचना..
mangalmay rachana ,hriday ko sparsh karti huyi .
अति भावपूर्ण....
मैं पहन लेती
गले में उम्र भर के लिए
तुम्हें ताबीज बना कर...
kaash !
khoobsurat khwaahish
कि कर लेती बंद
मन्त्रों से तुम्हें
.............
और मैं पहन लेती
गले में उम्र भर के लिए
तुम्हें ताबीज बना कर|
संबंधो को नए बिम्बों से सजाया है आपने ! बहुत खूब !! बधाई .
मुझे लगता है किसी को बाधने के
लिए ताबीज की जरूरत नहीं है.... जरूरत है ?
दो वक्त भर पेट खाना खिला दो ,उसकी पसंद क़ा
...........बस एक मर्द ....इससे जायदा कुछ नहीं चाहता
शायरी तो अच्छी है ....बाधने क़ा कोई और रास्ता खोजना होगा
किसी अमावस की रात को
या किसी पूनम की रात को
मेरे लिए , मेरे नाम के साथ
ज़िन्दगी भर के लिए
मेरे बन जाने के लिए
और मैं पहन लेती
गले में उम्र भर के लिए
तुम्हें ताबीज बना कर...waah waah kya najm banai hai aapne dil ko chhu gai...gale me umar vhar ke lie pehn leti tumhe tabij banake...fir tum mujhse or meri parchhaion se kabhi dur na ja pate....
har sima har bandhan se paar le gai aapki ye rachna jisme premi ke liye premika ki jigyasa waise hi lagti hai jaise meera ki krishna k liye hai...
अक्षय-मन "!!कुछ मुक्तक कुछ क्षणिकाएं!!" से
और मैं पहन लेती
गले में उम्र भर के लिए
तुम्हें ताबीज बना कर ...
Bahut hi lajawaab kalpana ... hamesha hamesha ke liye apna bana lene ki ye style bhi kamaal hai ...
वाह वंदनाजी ...!!
प्यार की गहराई बता रही है आपकी कविता ...!!
बहुत सुंदर ..!!
ज़िन्दगी भर के लिए
मेरे बन जाने के लिए
और मैं पहन लेती
गले में उम्र भर के लिए
तुम्हें ताबीज बना कर
bhai waah..khwahishe aise ki har khwahish pe dam nikle.
dil ko chu lene vali panktiya....
वाह ..वंदना जी चाँद शब्दों में बहुत कुछ कह दिया
intihaa pyaar ki...
गहरी प्रेमाभिव्यक्ति।
बहुत ही भावपूर्ण
adbuhut... gulazar sahab ki kuch lines yaad aa gayi..
mujhko itne se kaam par rakh lo/
jab bhi seene pe jhoolta locket ulta ho jaaye to, maiN haathoN se seedhaa karta rahooN usko
प्रेम की चरम स्थिति ....बहुत खूब
बहुत सुन्दर...
धीरे-धीरे आपकी सभी कवितायेँ अवश्य पढूंगी..
काबिले तारीफ.
वंदना जी आपकी यह कविता मुझे सबसे अधिक पसंद है।
वंदनाजी ,आप वन्दनीय हैं |भावों को क्या खूबसूरत रूप दिया है |यह लाइन तो अद्भुत है ,"और पहन लेती गले में उम्रभर के लिए ताबीज बनाकर " आपको साधुवाद |आप मेरे ब्लॉग में सादर आमंतिर हैं http//kumar2291937.blogspot.com आत्म प्रकाश |
"phn leti umrbhar ke liye "aek adbhut kriti hai .is ke liye aap ko sadhuwaad.
कविता अच्छी है ..मन के भावों को खूबसूरती से इन पन्नों पे उतार दिया है।
कविता अच्छी है ..मन के भावों को खूबसूरती से इन पन्नों पे उतार दिया है।
bahut hi khubsurat prem se paripuran apnatav dikhati rachna badhayi vandana ji
bahut hi khubsurat prem se paripuran apnatav dikhati rachna badhayi vandana ji
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