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बुधवार, 15 मई 2024

उम्र की दस्तक गुनगुना रही है राग मालकोस...

 


मैंने तकलीफों को रिश्वत नहीं दी
कोई न्यौता भी नहीं दिया
उनकी जी हजूरी भी नहीं की
फिर भी बैठ गयी हैं आसन जमाकर
जैसे अपने घर के आँगन में
धूप में बैठी स्त्री
लगा रही हो केशों में तेल
कर रही हो बातचीत रोजमर्रा की
इधर की उधर की
तेरी मेरी

मेहमान दो चार दिन ही अच्छे लगते हैं
लेकिन इन्होंने जमा ली हैं जड़ें
बना लिया है घर वातानुकूलित
अब चाहे जितना आँगन बुहारो
बाहर निकालो
लानत मलामत करो
ढीठ हो गयी हैं
चिकना घड़ा हो जैसे कोई
नहीं ठहरती एक भी बूँद इनके अंदर

'फेविकोल का जोड़ है टूटेगा नहीं'
के स्लोगन को करते हुए चरितार्थ
तकलीफों ने बनाया है ऐसा गठजोड़
कभी एक घूमने निकलती है
दूसरी पुचकारने, हालचाल लेने चली आती है
नहीं छोड़तीं कभी अकेला
और सुनाने लगती हैं ये गाना
'तेरा साथ है तो मुझे क्या कमी है
अंधेरों से भी मिल रही रौशनी है'

और मैं हक्की बक्की
अपने घर को झाड़ने पोंछने की
कवायद में जुट जाती हूँ
इस आस पर
'वो सुबह कभी तो आएगी'

उम्र की दस्तक गुनगुना रही है राग मालकोस...

11 टिप्‍पणियां:

Onkar ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना

Sweta sinha ने कहा…

आस के फूल की खुशबू निराशा के काँटों की पीड़ा बिसरा देता है।
सुंदर,सकारात्मक अभिव्यक्ति।
सादर।
---
जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार १७ मई २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

वाह

आलोक सिन्हा ने कहा…

बहुत बहुत सुन्दर रचना

Anita ने कहा…

धीरे-धीरे तकलीफ़ों से मित्रता हो जाएगी और फिर उन्हें जो सिखाना था वह सब सिखाकर एक दिन वह चुपके से चली जायेंगी

Rakesh ने कहा…

तकलीफों ने बनाया है ऐसा गठजोड़

कभी एक घूमने निकलती है

दूसरी पुचकारने, हालचाल लेने चली आती है
वाह

vandana gupta ने कहा…

hindiguru हार्दिक आभार

vandana gupta ने कहा…

Anita जी हार्दिक आभार

vandana gupta ने कहा…

आलोक सिन्हा जी हार्दिक आभार

vandana gupta ने कहा…

Sweta sinha जी हार्दिक आभार

vandana gupta ने कहा…

Onkar जी हार्दिक आभार