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गुरुवार, 30 जून 2022

इश्क मैं क्यों करया...

 


खामोशी के पग में खामोशी के घुंघरू
अब न मोहब्बत की आहट पर खनकते हैं
ये वो बिखरे दरिया हैं जो खामोशियों मे ही भटकते हैं

तुम ले गए इक उम्र चुराकर मुझसे
अब मलाल की उम्र तक जीना है मुझको
कि नाकाम मोहब्बत का फलसफा कौन लिखता है

अब न कोई खुदा बचा न फ़रियाद
बस एक उदासी का जंगल है
गले लग रोने को न सागर है न साहिल

इश्क मैं क्यों करया...

4 टिप्‍पणियां:

Ravindra Singh Yadav ने कहा…

नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार 01 जुलाई 2022 को 'भँवर में थे फँसे जब वो, हमीं ने तो निकाला था' (चर्चा अंक 4477) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

अनीता सैनी ने कहा…

खामोशी के पग में खामोशी के घुंघरू
अब न मोहब्बत की आहट पर खनकते हैं
ये वो बिखरे दरिया हैं जो खामोशियों मे ही भटकते हैं...बहुत सुंदर कहा आपने।
सादर

Sudha Devrani ने कहा…

तुम ले गए इक उम्र चुराकर मुझसे
अब मलाल की उम्र तक जीना है मुझको
कि नाकाम मोहब्बत का फलसफा कौन लिखता है
बहुत ही लाजवाब।

Sweta sinha ने कहा…

बेहतरीन अभिव्यक्ति।
सादर।