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शनिवार, 21 मई 2022

अमर होने के लिए जरूरी नहीं अमृत ही पीया जाये

आह !मेरी रोटियाँ अब सिंकती ही नही 
आदत जो हो गयी है तुम्हारे अंगारों की 
हे! एक अंगार तो और जलाओ 
अंगीठी थोड़ी और सुलगाओ 
ज़रा फूंक तो मारो फूंकनी से 
ताकि कुछ तो और तपिश बढे 
देखो तो ज़रा रोटी मेरी अभी कच्ची है ……
पकने के लिये मन की चंचलता पर कुछ ज़ख्मों का होना जरूरी होता है ……देव मेरे!

अमर होने के लिए जरूरी नहीं अमृत ही पीया जाये

4 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

शिव तो गरल पी कर अमर हो गए थे तो शिव की तरह ही प्रयास किया जाय ।

Onkar ने कहा…

बहुत सुंदर

Miller Maxwel ने कहा…

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Swarajya karun ने कहा…

बहुत सुंदर पंक्तियां।