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मंगलवार, 28 सितंबर 2010

"शब्द " और " काव्य "

काव्य शब्द है 
या शब्द काव्य
या फिर भावों का
समन्वय 

शब्द को 
सौंदर्य प्रदान 
कर काव्य 
बनता है
या फिर 
काव्य शब्द में 
सिमटा एक 
निर्विकार 
निर्लेप
अनंत 
आकाश है
जहाँ 
शब्द ही शब्द है
निराकार में 
आकार है
या फिर
आकारबद्ध हो 
शब्द 
काव्य सौष्ठव 
बन अपने अनेक 
अर्थ प्रस्तुत 
करता है

एक में छिपे अनेक
भावों का समन्वय है
शब्द
या काव्य की उच्च
अवस्था को 
प्राप्त करता 
गरिमाबोध 
करता है शब्द
या शब्द सिर्फ 
सामाजिक सरोकारों 
का प्रतीक है
या नितांत 
व्यक्तिगत
अभिव्यक्ति का
माध्यम 
या शब्द काव्य की
गुणवत्ता का 
श्रेष्ठ परिचायक है

काव्य को 
खुद में समेटता
शब्द 
भावो के 
प्रस्तुतीकरण का
माध्यम मात्र है
या फिर 
प्रणव - सा 
निनाद करता
दिशाओं को
गुंजार करता 
शब्द 
स्वयं में 
समाहित करता
काव्यात्मकता का
लयबद्ध संगीत है 



41 टिप्‍पणियां:

virendra sharma ने कहा…

shbd brham hai ,akshar, avinaashi hai .Naad hai shbd .
shdon se hi zindgi chalti hai .saresukh dukh bodh ke piche shbdon ki leelaa hi hai .
veerubhai

बेनामी ने कहा…

शानदार रचना है वंदना जी......शब्द तो हमारे चारो तरफ घूम रहे हैं ...एक जाल बिछा पड़ा है शब्दों का .....इन्ही शब्दों को एक सुव्यवस्थित अवस्था में लाना ही काव्य है ...........हिंदी का बहुत सुन्दर प्रयोग किया है .......हार्दिक शुभकामनाये |

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

भावो के
प्रस्तुतीकरण का
माध्यम मात्र है
या फिर
प्रणव - सा
निनाद करता
दिशाओं को
गुंजार करता
शब्द
स्वयं में
समाहित करता
काव्यात्मकता का
लयबद्ध संगीत है ".... जो फ़र्क बून्द और समन्दर मे है वही अन्तर शब्द और काव्य मे है.. शब्द और काव्य के बहाने आपने जीवन और प्रेम का सुन्दर चित्रण किया है... अद्भुद कविता..

संजय भास्‍कर ने कहा…

behad ki sundar rachnaa hai aapki badhaai .

संजय भास्‍कर ने कहा…

सार्थक और बेहद खूबसूरत, रचना है.......शुभकामनाएं।

समय चक्र ने कहा…

शब्दों का समन्वय ही भाषा को सौन्दर्य प्रदान करता हैं ...
बहुत सुन्दर रचना ...

रचना दीक्षित ने कहा…

acha vishleshan aur khoj kya hai kavya?

माधव( Madhav) ने कहा…

बढ़िया प्रस्तुति

रश्मि प्रभा... ने कहा…

khoobsurat sangeet kavyatmakta ka

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

शब्द
स्वयं में
समाहित करता
काव्यात्मकता का
लयबद्ध संगीत है
--
--
यही सत्य है!
--
बहुत ही खोजपरक अभिव्यक्ति है आज की!
--
सुन्दर स्रजन के लिए बधाई!

ज्ञानचंद मर्मज्ञ ने कहा…

Sundar aur sarthak avibyakti.
-GyanChand Marmagya

दिगम्बर नासवा ने कहा…

साँसों के आवागमन से बना शब्द किसी काव्य का प्रारब्ध है ..... बहुत सुंदर रचना है ....

रंजना ने कहा…

सुन्दर चिंतन...

भावों का शब्द में लयबद्ध उद्बोधन ही संभवतः काव्य कहलायेगा......

rashmi ravija ने कहा…

सुन्दर रचना..शब्दों की महत्ता दर्शाती हुई...

shikha varshney ने कहा…

काव्य का आकाश अनंत है ..बहुत अच्छी व्याख्या की है.

बेनामी ने कहा…

sabdon ka aapas mein milan hi to kavya hai.....
hai na????
bahut hi sundar rachna...

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

शब्द काव्य है कवि शब्द है ...बड़ा कंफ्यूज़न है यह तो ....

प्रणव - सा
निनाद करता
दिशाओं को
गुंजार करता
शब्द
स्वयं में
समाहित करता
काव्यात्मकता का
लयबद्ध संगीत है

बस यही सत्य लगा मुझे तो ..बहुत प्रवाहमयी रचना

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

सहज संप्रेषण वाली रचना. बहुत शुभकामनाएं.

रामराम.

kshama ने कहा…

Ye sabkuchh hai...! Sabhi saty hai...shabd bramh bhi hai aur nirakar bhi hain saakaar bhi hain!
Kya kamal kee rachana aur soch hai!

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

चिन्तन से साराबोर शब्दों का प्रवाह।

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

शब्द काव्यात्मकता का लयबद्ध संगीत है ।
प्रश्न भी कविता में समाहित है और उत्तर भी
...अनोखी रचना..उत्तम।

Dr.J.P.Tiwari ने कहा…

शब्द
स्वयं में
समाहित करता
काव्यात्मकता का
लयबद्ध संगीत है

Mai yahi kahunga
कविता
और गीत
तो अन्यतम
साधना है -
शब्दों का.

और शब्द?
शब्द तो
आराधना है -
अक्षरों का.

इन अक्षरों
और शब्दों के
युग्म ने ही रचा है -
साहित्य, सदग्रंथ
और सृष्टि ग्रन्थ .

ये अक्षर ही हैं
जिन्हें हम कहते हैं
- "पञ्च महाभूत"

'अ' से अग्नि,
आ' से आकाश
'ग' से गगन,
ज' से जल
'स' से समीर,
'प' से प्रकाश

क्या इन्ही से
नहीं हुआ है
इस सृष्टि
का विकास

रचा सृष्टि ने
मानव को
मानव की अपनी
अलग सृष्टि है.

अपनी - अपनी
व्याख्या है अब
परख - परख
की अपनी दृष्टि.

Dr.J.P.Tiwari ने कहा…

कविता कोई
चातुर्य नहीं है
शब्दों का.

वह दिल से
निःसृत एक
आवाज है.

Dr.J.P.Tiwari ने कहा…

कविता कोई
चातुर्य नहीं है
शब्दों का.

वह दिल से
निःसृत एक
आवाज है.

यह साज की
मर्जी साथ दे,
या न दे ;

वह साज की
रही नहीं कभी
मोहताज है.

क्योकि साज को
कानों तक पहुचने
के लिए ध्वनि का
सतत साथ चाहिए

परन्तु कविता तो
संकेतो प्रतीकों से
भी पहुचती है -
गंतव्य तक.

मौन में भी
पहुचाती है
मन के
कोने कोने तक.
अपनी मधुर आवाज.

Dr.J.P.Tiwari ने कहा…

शब्द और काव्य ये दोनों उत्पाद है, अक्षर के. अतः मूल तो प्रत्येक दशा में अक्षर ही है , वही सर्वाधिक मत्वपूर्ण है. शब्द एक गमला है तो काव्य महकता सुगन्धि उपवन. अक्षर स्वर्ण है तो शाद आभूषण. और काय उन आभूषणों से भूषित एक दिव्यनारी.

शरद कोकास ने कहा…

मूल तो शब्द है और काव्य समग्र है ।

उम्मतें ने कहा…

शब्द शब्द होकर लौट रहा हूं ! अच्छी कविता !

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

प्लीज़ मुझसे नाराज़ मत होईयेगा.... मेरे पास ना आजकल वक़्त की बहुत कमी रहती है.... इसलिए पिछली कुछ पोस्टों पर नहीं आ पाया... सॉरी....

आज की रचना बहुत ही सुंदर शब्दों में .... दिल को छु गयी...

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

बिज्ञान का बिद्यार्थी हूँ इसलिए एही कह सकता हूँ कि सब्द परमाणु है अऊर काव्य उसके चारों तरफ रचा हुआ पदार्थ यानि सृष्टि..लेकिन आपका सोच तो इसा परिभाषा के आगे जाकर एक नया ब्याख्या प्रस्तुत करता है...बहुत सउंदर!!

Shabad shabad ने कहा…

शब्द को सौंदर्य प्रदान कर काव्य बनता है........
जी हाँ...
सारे शब्द ही अच्छे होते हैं...परन्तु यह तो इस बात पर निरभर करता है कि पढ़ने वाला उन शब्दों के क्या अर्थ निकालता है...
बुराई कभी भी शब्दों में नहीं होती ...व्यक्ति की सोच में होती है......

Sadhana Vaid ने कहा…

शब्द पर बड़ी शोध कर डाली आपने वंदनाजी ! बहुत सुन्दर रचना है ! मेरे विचार से मुखर मौन ही शब्द है ! खूबसूरत प्रस्तुति के लिये बधाई !

राजभाषा हिंदी ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
काव्य प्रयोजन (भाग-१०), मार्क्सवादी चिंतन, मनोज कुमार की प्रस्तुति, राजभाषा हिन्दी पर, पधारें

रंजू भाटिया ने कहा…

वाह बहुत ही बेहतरीन रच डाली रचना आपने शब्द और काव्य पर

विवेक सिंह ने कहा…

तिल है
कि ताड़ है
तिल ही है
तिल नहीं
ताड़ है
तिल का ताड़
ताड़ का तिल है

हिल है
कि पहाड़ है
हिल ही है
हिल नहीं
पहाड़ है
हिल का पहाड़
पहाड़ की हिल है
मेरा दिल है

राजेश उत्‍साही ने कहा…

वंदना जी बहुत समय बाद आपके अंदर का कवि एक बार फिर जागा है। आपकी यह कविता मेरी कसौटी पर खरी उतरती है।

असल में तो मैं जब भी कोई अच्‍छी कविता पढ़ता हूं मेरे अंदर का कवि भी कविता करने लगता है। मन करता है कि तुरंत ही प्रतिउत्‍तर में एक कविता लिखी जाए। पर आप भी समझती हैं कि यह हर बार संभव नहीं होता।

मैं आपकी यह कविता पहले दो बार पढ़कर चला गया। अब आया हूं तो अपनी प्रतिक्रिया देने। और पहली बार जो कविता मन में उभरी थी उसकी कुछ पंक्तियां हैं-

शब्‍द भाव हैं
शब्‍द घाव हैं
शब्‍द ही हम
सबका ताव है

काव्‍य धरा है
काव्‍य जर्रा है
काव्‍य ही हम
सबमें भरा है

सुंदर कविता के लिए बधाई। बस ऐसी गहराई वाली कविताएं ही लिखिए डूबकर। काव्‍य में ऊपर ऊपर तैरना छोडि़ए। गोता लगाइए थोड़ा अधिक समय काव्‍य के समन्‍दर में रहिए। मोती लेकर आइए। भले ही थोड़ी देर हो। आपके काव्‍य के मोतियों के पारखी नजरें बिछाए बैठे हैं।

rajesh singh kshatri ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना ...

मेरे भाव ने कहा…

प्रणव - सा
निनाद करता
दिशाओं को
गुंजार करता
शब्द
स्वयं में
समाहित करता
काव्यात्मकता का
लयबद्ध संगीत है ....shabd ki mahima anant hai. shabdon ka sahi prayog kavya ko janm deta hai vahi galat prayog uski garima ko kam kar deta hai...

Kailash Sharma ने कहा…

शब्द को
सौंदर्य प्रदान
कर काव्य
बनता है
या फिर
काव्य शब्द में
सिमटा एक
निर्विकार
निर्लेप
अनंत
आकाश है.....

शब्द और काव्य की बहुत ही गहन विवेचना.....केवल शब्द काव्य नहीं बन सकते और काव्य की अभिव्यक्ति बिना शब्दों के नहीं हो सकती, दोनों ही एक दुसरे के पूरक हैं....जब भावनाओं का सैलाब आता है और उसको सही शब्दों में व्यक्त कर पाते हैं ,तभी उत्तम काव्य की रचना होती है....बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..आभार..

कडुवासच ने कहा…

...सुन्दर रचना ... भावपूर्ण !!!

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

बहुत सुन्दर..............

Akanksha Yadav ने कहा…

शब्द और काव्य को लेकर गूंथी गई सुन्दर कविता...बधाई.