हृदय तिमिर को बींधती
तेरी रूह की
सिसकती आवाज़
जब मेरे हृदय की
मरुभूमि से टकराती है
मुझे मेरे होने का
अहसास करा जाती है
जब तेरे प्रेम की
स्वरलहरियाँ हवा के
रथ पर सवार हो
मेरा नाम गुनगुना जाती हैं
मुझे जीने का सबब
सिखा जाती हैं
जब दीवानगी की
इम्तिहाँ पार कर
तेरी चाहत मेरा
नाम पुकारा करती है
मेरी रूह देह की
कब्र में फ़ड्फ़डाती है
और ना मिलने के
अटल वादे की
आहुतियाँ दिए जाती है
तेरे दर्द को भी जीती हूँ
अपने दर्द को भी पीती हूँ
प्रेम के इस मंथन में
हलाहल भी पीती हूँ
मगर फिर भी
तेरी इक पुकार की
संजीवनी से जी उठती हूँ
मैं मर- मरकर भी
मर नहीं पाती हूँ
28 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर रचना । आभार
ढेर सारी शुभकामनायें.
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना!
behad bhauk abhivyakti...
तेरी इक पुकार की
संजीवनी से जी उठती हूँ
मैं मर- मरकर भी
मर नहीं पाती हूँ
हर एक के जीवन में कोई न कोई संजीवनी जरूर होती है.
आपकी रचनाएँ मन को छूती हैं
हृदय तिमिर को बींधती
तेरी रूह की
सिसकती आवाज़
जब मेरे हृदय की
मरुभूमि से टकराती है
मुझे मेरे होने का
अहसास करा जाती है
दिल की गहराई से निकले जज़्बात.....खूबसूरत रचना....
तेरे दर्द को भी जीती हूँ
अपने दर्द को भी पीती हूँ
प्रेम के इस मंथन में
हलाहल भी पीती हूँ
मगर फिर भी
तेरी इक पुकार की
संजीवनी से जी उठती हूँ
मैं मर- मरकर भी
मर नहीं पाती हूँ
sunder... atti sundar Rachnaa.....
मेरी रूह देह की
कब्र में फ़ड्फ़डाती है
और ना मिलने के
अटल वादे की
आहुतियाँ दिए जाती है
" वाह क्या पंक्तियाँ हैं.....सुन्दर"
regards
तेरी इक पुकार की
संजीवनी से जी उठती हूँ
मैं मर- मरकर भी
मर नहीं पाती हूँ
बहुत बढ़िया!
ऐसा सुन्दर साहित्य लिखने में आप सिद्धहस्त हैं!
padhkar aanand aa gaya vandna jee, sanjay bhaskar ne sach he kaha hai
भावों को इतनी सुंदरता से शब्दों में पिरोया है
सुंदर रचना....
badhai bahut bahut badhai
तेरी इक पुकार संजीवनी का काम करती है ... प्रेम के रंग में डूब कर ऐसा ही एहसास होता है ... लाजवाब लिखा है ..
प्रेम के इस मंथन में
हलाहल भी पीती हूँ
...बेहतरीन अभिव्यक्ति,बधाई!!!!
बहुत ही सुन्दर रचना. आभार.
बहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण रचना! दिल को छू गयी!
हमेशा की तरह बेहद सुन्दर अभिव्क्ति
achi post lagi
kavita pad kar man ko shanti mili
http://kavyawani.blogspot.com/
SHEKHAR KUMAWAT
क्या खूब पिरोया है ज़ज्बातो को आपने...
कभी अजनबी सी, कभी जानी पहचानी सी, जिंदगी रोज मिलती है क़तरा-क़तरा…
http://qatraqatra.yatishjain.com/
मेरी रूह देह की
कब्र में फ़ड्फ़डाती है
और ना मिलने के
अटल वादे की
आहुतियाँ दिए जाती है
तेरे दर्द को भी जीती हूँ
अपने दर्द को भी पीती हूँ
प्रेम के इस मंथन में
हलाहल भी पीती हूँ
मगर फिर भी
तेरी इक पुकार की
संजीवनी से जी उठती हूँ
waah bahut khoob likha he..
yahi to hota he nari man...kisi ne ek awaaz di nahi ki mom ki tarah pighla chala jata hai.
bahut man ko bhayi apki ye rachna.
badhayi.
pyar ki bhavanao ko sundar abhiyakti milee hai.umeed hai ab aap jeevan ke kuchh kaduye yathaarth se bhi roo-b-roo ho kar apnee pratibhi ko nyaa aakaash dengee. roomaan kee ek-od kavitaaye ho. bakee jeevan ko garhane valee kavitaayen bhi zaroori hai. aap me vo pratibha hai.
बहुत अच्छा लिखा है आपने
बहुत भावपूर्ण रचना है।
आपकी कविताओं को पढ़ कर लगता है कि हमारी राष्ट्रभाषा आज भी जीवित है अपने शुद्ध रूप में...
मेरी रूह देह की
कब्र में फ़ड्फ़डाती है
और ना मिलने के
अटल वादे की
आहुतियाँ दिए जाती है...
तेरी इक पुकार की
संजीवनी से जी उठती हूँ
मैं मर- मरकर भी
मर नहीं पाती हूँ...
अति प्रभावशाली रचना...
आपकी कविताओं को पढ़ कर लगता है कि हमारी राष्ट्रभाषा आज भी जीवित है अपने शुद्ध रूप में...
मेरी रूह देह की
कब्र में फ़ड्फ़डाती है
और ना मिलने के
अटल वादे की
आहुतियाँ दिए जाती है...
तेरी इक पुकार की
संजीवनी से जी उठती हूँ
मैं मर- मरकर भी
मर नहीं पाती हूँ...
अति प्रभावशाली रचना...
"...तेरी इक पुकार की
संजीवनी से जी उठती हूँ
मैं मर- मरकर भी
मर नहीं पाती हूँ... "
bahut khoobsurti se bhavon ko piroya hai aapne... sunder kavita ...
बहुत सुंदर पंक्तियों के साथ ..... बहुत सुंदर रचना....
Bhavpurn aur sundar abhivyakti.
काबिलेतारीफ है प्रस्तुति।.सारी रचनाये आपकी बहुत ही अच्छी है|
तेरे पुकार की संजीवनी, क्या बात है वंदना जी, बहुत सुंदर ।
मानवता की आत्मा पर पत्थर का प्रहार ...जागती है कविता पढ़कर! ..
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