कुछ परवाजों को पंख नही मिला करते
कुछ दरख्तों पर फूल नही खिला करते
अब तो कलमों की स्याही भी सूख चुकी है
कोई मेरे आंसुओं को पिए ----तो क्यूँ?
कोई मेरे ज़ख्मों को सिंए ----तो क्यूँ ?
यादों का उधड़ना अभी बाकी है
लबों पर जो हमने, ख़ामोशी का कफ़न ओढ़ लिया
तो दर्द मेरा, क्यूँ तेरे चेहरे पर उतर आया है
क्या चाहत का कोई क़र्ज़ अब भी बाकी है
25 टिप्पणियां:
लबों पर जो हमने, ख़ामोशी का कफ़न ओढ़ लिया
तो दर्द मेरा, क्यूँ तेरे चेहरे पर उतर आया है
क्या चाहत का कोई क़र्ज़ अब भी बाकी है?
वाह बहुत सुन्दर!
रचना छोटी होते हुए भी बहुत प्रभावशाली है!
बधाई!
गहरे जज्बात लिये अर्थपूर्ण रचना
लबों पर जो हमने, ख़ामोशी का कफ़न ओढ़ लिया
तो दर्द मेरा, क्यूँ तेरे चेहरे पर उतर आया है
क्या चाहत का कोई क़र्ज़ अब भी बाकी है?
बहुत खूब वन्दना जी !
कामयाब कोशिश....बेहतरीन रचना...अलग रंग...अलग रूप...वाह...
नीरज
कोई मेरे आंसुओं को पिए ----तो क्यूँ?
कोई मेरे ज़ख्मों को सिंए ----तो क्यूँ ?
यादों का उधड़ना अभी बाकी है...
सिर्फ...यादों का उधड़ना बाकी है..... बहुत सुंदर पंक्तियाँ ....
क्या चाहत का कोई क़र्ज़ अब भी बाकी है....?
यह पंक्ति कहीं अन्दर तक उतर गयीं....
बहुत सुंदर कविता...
लबों पर जो हमने, ख़ामोशी का कफ़न ओढ़ लिया
खामोशी का कफन नूतन प्रयोग
सुन्दर अभिव्यक्ति
बहुत ही ख़ूबसूरत कविता...गागर में सागर समेटे हुए
waah aakhiri line kamal ki hai..sunder kavita.
लबों पर जो हमने, ख़ामोशी का कफ़न ओढ़ लिया
तो दर्द मेरा, क्यूँ तेरे चेहरे पर उतर आया है
क्या चाहत का कोई क़र्ज़ अब भी बाकी है
ye panktoyaan lajwaab ban padi hain..behtareen..
mujhe bahut nahut pasand aayin hain..
badhai...
कोई मेरे आँसुओं को पिए.. ..तो क्यूँ?
कोई मेरे ज़ख्मों को सिए....तो क्यूँ?
यादों का उधड़ना अभी बाकी है
बहुत ही मर्मस्पर्शी पंक्तियाँ हैं वन्दनाजी । बहुत बहुत बधाई और अभिनन्दन !
तो दर्द मेरा, क्यूँ तेरे चेहरे पर उतर आया है
क्या चाहत का कोई क़र्ज़ अब भी बाकी है?
behaaren.
behatareen.
... सुन्दर रचना !!!
Dua karungi,aisa koyi qarz bacha na ho...
peeda ko shabdon me badi sarthak abhivyakti di aapne...bahut hi sundar rachna...
teenon sher achchhe hain poori ghazal kar letin to achchha hota.
Sunder sheron ke liye badhai
हर शब्द अपनी दास्ताँ बयां कर रहा है आगे कुछ कहने की गुंजाईश ही कहाँ है बधाई स्वीकारें
कुछ परवाजों को पंख नही मिला करते
कुछ दरख्तों पर फूल नही खिला करते ...
बहुत ही लाजवाब बात लिखी है आपने ........ उम्दा शेर है ......
गहरे भाव लिए हुए हैं यह सुन्दर रचना शुक्रिया
बहुत ही बेहतरीन रचना
बहुत बहुत आभार
वाह बहुत खूब वन्दना जी !
अब तो कलमों की स्याही भी सूख चुकी है
कोई मेरे आंसुओं को पिए ----तो क्यूँ?
कोई मेरे ज़ख्मों को सिंए ----तो क्यूँ ?
यादों का उधड़ना अभी बाकी है
बहुत मार्मिक प्रस्तुति.... बधाई
ek baar fir ek khubsurat ahsaas ka sailab bandh todkar nikal aaya ....
just speachless ji
kya kahun aur kya na kahun ...
कुछ कहने की गुंजाईश ही कहाँ है बधाई स्वीकारें
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