जब सर्वस्व समर्पण कर दिया फिर कोई चाह नही होती सिर्फ़ उसकी रज़ा मे ही अपनी रज़ा होतीहै और वो ही तो सच्ची मोहब्बत होती है ………
देखें कौन किससे कितनी मोहब्बत करता है?
चलो आज ये भी आजमा लें ए खुदा
तू है खुदा या मै हूं खुदा
बन्दगी के अन्तिम छोर तक चलते चले जायें
बन्दगी मे ना पता चलता
कौन है खुदा और कौन महबूब
चल इसी बहाने कर लें इबादत
तू मुझे आजमा ले मै तुझे आजमा लूँ
या तू मुझे भूल जाये या मै तुझे याद आऊँ
चाहे तू जीत जाये चाहे मै हार जाऊँ
दोनो सूरत मे तुझमे ही समाऊँ
तेरा ही स्वरूप बन जाऊँ
मेरा लोप हो जाये
तेरा ही अक्स हर तरफ़ छाये
बस एक बार उससे बात शुरु हो जाती है ना फिर पता नही चलता कि कौन
क्या कह रहा है और किसे कह रहा है बस हर ओर उसका ही नज़ारा दिखता है
जब चूनर पर रंग चढ जाये फिर सब रंग चटक ही नज़र आयें
मेरे नैनो मे अटका है श्याम
मेरी पलको पर नाचता है श्याम
मेरी सांसो मे थिरकता है श्याम
मेरी धडकन बन धड्कता है श्याम
मेरे रोम रोम मे बसा है श्याम
मै तो हो गयी अब श्याम ही श्याम
मुझे आये ना कहीं आराम
…………
ए री कोई श्याम से मिलन करा दो
……
ए री कोई सजन को संदेसा पहुंचा दो
ए री कोई प्रेम को प्रेम से मिला दो
ये मिलन तो हो रहा है मगर दृष्टिमान नहीं है शायद तभी वो अगोचर है
गोचर नहीं हो पा रहा और दीवानी देखो कैसे मतवाली हो रही है
मेरी पीर को जाने ना कोई
मै तो श्याम की दीवानी होई
अंखियां दर्शन को तरस गयीं
किस विधि मिलना होई
उनसे जाके कह दो कोई
तेरी दीवानी तुझ बिन देखो
सूख सूख के कांटा होई
मेरी पीर ना जाने कोई
यद्यपि जानता है सब ...उससे जुदा क्या है पर दीवानी के मन के भावों
को भी तो शब्द देने हैं ना उसे ........शायद तभी शब्दों के माध्यम से
उतर रहा है और उसके भावों में ढल उसे सुकून दे रहा है .....आह ! प्रेम
का अद्भुत संयोग तो देखो
खुद ही प्रेम , खुद ही प्रेमी और खुद ही प्रेमास्पद
वो जानता है
वो झेलता है
वो खुद ही तो रोता है
वो हर दर्द से गुजरता है
हर पीर को सहता है
वो हर भाव मे बसता है
हर सोच मे जीता है
उसका ही नूर समाया है
तभी तो ये दर्द उभर आया है………
वो अश्रुओं मे खुद ही तो ढलता है
नीर बनकर बहता है
हाय !मोहन तू क्यूँ इतना दर्द सहता है
बस इसी दर्द का तो दर्द होता है
वरना मै तो कहीं हूँ ही नही…………अस्तित्वविहीन पुंजों मे दर्द कब
बहता है