राख कहो या देह
हथेली कहो या लकीर
मगर राखो की कब
होती है तकदीर
कभी पीकर देखा है
घोलकर राख को
देखना एक बार
कोशिश तो करना
पीने की और फिर
जीने की
सच कहती हूँ
अपना वजूद नही पाओगे
राख मे ही तब्दील हो जाओगे
राख मरकर भी अमर होती है
क्योंकि अस्तित्व मे तो रहती है
मगर तुम कहाँ रहोगे
कहाँ खुद को ढूँढोगे
वजूद के साथ
अस्तित्व भी मिट जायेगा
तुम्हारी राख का भी
वारिस ना मिल पायेगा
तब तक जब तक
मै ये ना चाहूँ
और देखो
मेरी मोहब्बत ने
राख को भी
अर्थ दे दिया
वजूद उसका भी
समेट दिया
एक अस्तित्व मे
हाँ ……राख होकर भी
ज़िन्दा ऐसे रहा जाता है
और ऐसे रखा जाता है
देखा है कभी खूँ भरा अश्कों का समंदर ?
शिवम् मिश्रा ने आपकी पोस्ट " तुम ज़िन्दा हो मुझमे " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:
जवाब देंहटाएंवाह ... बेहद उम्दा ... जय हो !
फुर्सत के दो क्षण मिले, लो मन को बहलाय |
जवाब देंहटाएंघूमें चर्चा मंच पर, रविकर रहा बुलाय ||
शुक्रवारीय चर्चा-मंच
charchamanch.blogspot.com
bahut jabardsat..vaah.. Vandana ji bahut kuch samet liya hai raakh ne...
जवाब देंहटाएंraakh hokar bhi tum jinda ho mujhmein...waah !...great expression..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंजिन्दा रखने का नायाब तरीका ... अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंकविता मे एक सच्चे समर्पन भरे उदगार परिनत है ।अच्छा लगा । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंजिन्दा राख को भी ऐसे रखा जाता है !
जवाब देंहटाएंवाह !
बिल्कुल अलग है अंदाज....बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंलाज़वाब प्रस्तुति..आभार
जवाब देंहटाएंकभी पीकर देखा है घोलकर राख को...
जवाब देंहटाएंअलग ही धरातल की रचना है आदरणीय वंदना जी...
परिदृश्य अलग है लेकिन पढ़ते हुए अशोक चक्रधर की पंक्तियाँ जेहन में घुमड़ने लगी जिसमें वे साम्प्रदायिकता पर प्रहार करते हुए "लहू की आईसक्रीम" खाने की बात करते हैं....
सादर बधाई इस प्रस्तुति के लिए.
बहुत सुन्दर......रख का भी अपना अस्तित्व है |
जवाब देंहटाएंमेरी मोहब्बत ने
जवाब देंहटाएंराख को भी
अर्थ दे दिया...
लाजवाब कर देती है आपकी रचना...आभार
राख मरकर भी अमर होती है क्योंकि अस्तित्व मे तो रहती है मगर तुम कहाँ रहोगे कहाँ खुद को ढूँढोगे वजूद के साथ अस्तित्व भी मिट जायेगा तुम्हारी राख का भी वारिस ना मिल पायेगा तब तक जब तक मै ये ना चाहूँ... bahut gambheer rachna
जवाब देंहटाएंवाह वंदना जी , बेहद खुबसूरत लिखा है |
जवाब देंहटाएंराख तो सपनों के जलने के निशानी है।
जवाब देंहटाएंBahut sundar! Phir ek baa alfaaz kee mohtajee hai!
जवाब देंहटाएंWell written! :)
जवाब देंहटाएंkuch alag andaaz liye umda prastuti.
जवाब देंहटाएंभावप्रणव अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंशानदार. बेहद ही उम्दा. प्यार को आपने बेहद ही सुंदर प्रारूप दिया है.
जवाब देंहटाएंखुबसूरत अल्फाजों में पिरोये जज़्बात....शानदार |
जवाब देंहटाएंbehtreen khubsurat aur bhaut hi umda....
जवाब देंहटाएंbehatreen..rachna hai vandana......shubh kamnaayein
जवाब देंहटाएंवंदना जी कभी मेरे ब्लॉग पर भी आयें . .....अभी मैंने भी शुरुआत की है .....आपके विचारों से मुझे भी प्रेरणा मिलेगी .....
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया ...गहरा भाव लिए पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंaapki kavita padhkr bus muh se ek hi aawaz aati hai
जवाब देंहटाएंwaahhhhhhhhhhh............
bahut umdaa..
जवाब देंहटाएंबढ़िया अभिव्यक्ति ...
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आपको !
राख जब भष्म में तबदील होती है तो उसे मस्तक से लगा लिया जाता है।
जवाब देंहटाएंराख होकर भी ... बहुत गहरे उतर गए ये शब्द ।
जवाब देंहटाएंबहुत गहन रचना...
जवाब देंहटाएंराख के ढेर में, शोला भी है चिंगारी भी.
बहुत सुन्दर लाज़वाब प्रस्तुति..आभार
जवाब देंहटाएंबेहतरीन...एक दम अलग विषय और भाव...
जवाब देंहटाएंवाह वंदना जी.
सार्थक !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना ! बधाई स्वीकार करें !
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