सुनो
यूँ आवाज़ ना दिया करो
दिल की बढती धड़कन
आँखों की शोखियाँ
कपोलों पर उभरती
हया की लाली
कंपकंपाते अधर
तेरे प्यार की
चुगली कर जाते हैं
कभी ख्वाब तेरे
रातों में जगा जाते हैं
और चंदा की बेबसी से
सामना करा जाते हैं
तारे गिनते- गिनते
कटती तनहा रात
भोर की लाली से
सहम- सहम जाती है
मद्धम मद्धम बहती बयार
तेरी साँसों की
सरगोशियाँ कर जाती है
तेरी इक आवाज़ पर
मोहब्बत का हर रंग
बसंत सा खिल जाता है
बता अब कैसे
मुट्ठी में क़ैद करूँ
इस बिखरती खुशबू को
बस तुम
यूँ आवाज़ ना दिया करो
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सोमवार, 31 मई 2010
रविवार, 23 मई 2010
तेरे मन का मंदिर
तेरे मन की
खुली खिड़की
में झाँकता
अक्स मेरा
तेरे मनोभावों
की हर तह
को खोलता
परत- दर- परत
तेरे अहसासों
को छूता
ज्यों चाँदनी का
स्पर्श हो
तेरे मन की
हर तह में
प्रेम के अथाह
सागर की
अनगिनत
उछलती
मचलती
टकराती
और टूट कर
बिखरती
लहरों का
खामोश
रुदन
तेरे सूखे
हुए आँसुओं
की कहानी
सुनाता है
किसी परत में
दबे तेरे
असफल प्रेम
की पुकार
का करुण
क्रन्दन
तेरी आत्मा की
बेकली का
दीदार कराता है
और किसी
परत में
तेरे दर्द की
पराकाष्ठा मिली
जहाँ तूने
प्रेम की
कब्रगाह में
वो बुत बनाया
जिसकी खुशबू
के आगे
पुष्प भी
महकना छोड़ दे
जिसकी
शिल्पकारी में
शिल्पकार भी
मूर्ती गढ़ना
छोड़ दे
बुतपरस्ती
का ऐसा
मक़ाम बनाया
मुझे वहाँ
खुदा ना मिला
बस तूने
मुझे ही
खुदा बनाया
ये तेरे प्रेम
का नगर
तेरी मोहब्बत
का मंदिर बना
जहाँ आकर
मेरा अक्स भी
हार गया
और तेरे प्रेम के
बुत में समां गया
खुली खिड़की
में झाँकता
अक्स मेरा
तेरे मनोभावों
की हर तह
को खोलता
परत- दर- परत
तेरे अहसासों
को छूता
ज्यों चाँदनी का
स्पर्श हो
तेरे मन की
हर तह में
प्रेम के अथाह
सागर की
अनगिनत
उछलती
मचलती
टकराती
और टूट कर
बिखरती
लहरों का
खामोश
रुदन
तेरे सूखे
हुए आँसुओं
की कहानी
सुनाता है
किसी परत में
दबे तेरे
असफल प्रेम
की पुकार
का करुण
क्रन्दन
तेरी आत्मा की
बेकली का
दीदार कराता है
और किसी
परत में
तेरे दर्द की
पराकाष्ठा मिली
जहाँ तूने
प्रेम की
कब्रगाह में
वो बुत बनाया
जिसकी खुशबू
के आगे
पुष्प भी
महकना छोड़ दे
जिसकी
शिल्पकारी में
शिल्पकार भी
मूर्ती गढ़ना
छोड़ दे
बुतपरस्ती
का ऐसा
मक़ाम बनाया
मुझे वहाँ
खुदा ना मिला
बस तूने
मुझे ही
खुदा बनाया
ये तेरे प्रेम
का नगर
तेरी मोहब्बत
का मंदिर बना
जहाँ आकर
मेरा अक्स भी
हार गया
और तेरे प्रेम के
बुत में समां गया
गुरुवार, 20 मई 2010
बिना बात के भी शिकायत होती है
बिना बात के भी शिकायत होती है
हुस्न वालों की भी अजीब फितरत होती है
कभी शिकवों की लम्बी फेहरिस्त होती है
कभी बिना फेहरिस्त के भी शिकायत होती है
हुस्न की ये अदा भी गज़ब होती है
जब शिकायत भी प्यार भरी होती है
तकरार में भी इकरार नज़र आता है
तब हुस्न कुछ और निखर जाता है
शोख चंचल आँखों में खिले तबस्सुम
हुस्न का हुस्न और खिला जाते हैं
प्यार की तकरार की मिठास बढ़ा जाते हैं
रूठे हुस्न को मनाने की प्यास जगा जाते हैं
जब इश्क क़दमों में झुका होता है
हुस्न का वो ही अंदाज़ तो कातिल होता है
हुस्न वालों की भी अजीब फितरत होती है
कभी शिकवों की लम्बी फेहरिस्त होती है
कभी बिना फेहरिस्त के भी शिकायत होती है
हुस्न की ये अदा भी गज़ब होती है
जब शिकायत भी प्यार भरी होती है
तकरार में भी इकरार नज़र आता है
तब हुस्न कुछ और निखर जाता है
शोख चंचल आँखों में खिले तबस्सुम
हुस्न का हुस्न और खिला जाते हैं
प्यार की तकरार की मिठास बढ़ा जाते हैं
रूठे हुस्न को मनाने की प्यास जगा जाते हैं
जब इश्क क़दमों में झुका होता है
हुस्न का वो ही अंदाज़ तो कातिल होता है
रविवार, 16 मई 2010
ख्वाब को पकड़ना चाहता हूँ...........
तेरा मेरा यूँ मिलना
जैसे आकाश का
धरती को तकना
पूजन , अर्चन,वंदन बन
आई हो मेरे जीवन में
जब से दीदार किया तेरी
रिमझिम सी इठलाती ,
मुस्काती चितवन का
होशोहवास सब गुम हो गए
तुम्हारे ही ख्यालों में
ना जाने कहाँ खो गए
ये कैसी मदहोशी छाई है
तुम्हें पाने की चाह
दिल में समायी है
जानता हूँ छू नहीं सकता
फिर भी आस की लौ
जलाई है
ख्वाबों को तुम्हारे प्रेम की
पैरहन पहनाई है
तुम पैरों में महावर लगाये
आओगी इक दिन जीवन में
इसी आस की रंगोली रोज
दिल की चौखट पर सजाता हूँ
तुम्हारी चूड़ियों की खनक
जब दरवाज़ा मेरा खड्काएगी
तब कैसे दिल को सम्हालूँगा
ये सोच -सोच घबराता हूँ
जब भी तस्वीर निहारा करता हूँ
अधरामृत पान की
लालसा मुखर हो जाती है
जब सामने तुम्हारा वजूद होगा
तब कैसे खुद को सम्हालूँगा
ये सोच -सोच शरमाता हूँ
मगर फिर भी प्रेम का
प्रतिकार तुम ही से चाहता हूँ
ख्वाब में ही सही मगर
अपने इंतज़ार के मंदिर में
तुझे अपने ख्वाब की देवी बना
तेरी वंदना कर
विजय रथ पर सवार हो
ख्वाब के प्रेम क्षितिज पर
मिलना चाहता हूँ
जानता हूँ तुम हकीकत नहीं
ख्वाब हो मेरा फिर भी
ख्वाब को पकड़ना चाहता हूँ...........
जैसे आकाश का
धरती को तकना
पूजन , अर्चन,वंदन बन
आई हो मेरे जीवन में
जब से दीदार किया तेरी
रिमझिम सी इठलाती ,
मुस्काती चितवन का
होशोहवास सब गुम हो गए
तुम्हारे ही ख्यालों में
ना जाने कहाँ खो गए
ये कैसी मदहोशी छाई है
तुम्हें पाने की चाह
दिल में समायी है
जानता हूँ छू नहीं सकता
फिर भी आस की लौ
जलाई है
ख्वाबों को तुम्हारे प्रेम की
पैरहन पहनाई है
तुम पैरों में महावर लगाये
आओगी इक दिन जीवन में
इसी आस की रंगोली रोज
दिल की चौखट पर सजाता हूँ
तुम्हारी चूड़ियों की खनक
जब दरवाज़ा मेरा खड्काएगी
तब कैसे दिल को सम्हालूँगा
ये सोच -सोच घबराता हूँ
जब भी तस्वीर निहारा करता हूँ
अधरामृत पान की
लालसा मुखर हो जाती है
जब सामने तुम्हारा वजूद होगा
तब कैसे खुद को सम्हालूँगा
ये सोच -सोच शरमाता हूँ
मगर फिर भी प्रेम का
प्रतिकार तुम ही से चाहता हूँ
ख्वाब में ही सही मगर
अपने इंतज़ार के मंदिर में
तुझे अपने ख्वाब की देवी बना
तेरी वंदना कर
विजय रथ पर सवार हो
ख्वाब के प्रेम क्षितिज पर
मिलना चाहता हूँ
जानता हूँ तुम हकीकत नहीं
ख्वाब हो मेरा फिर भी
ख्वाब को पकड़ना चाहता हूँ...........
गुरुवार, 13 मई 2010
मैं भीग जाता हूँ
जब भी
तेरे गेसुओं से
टपकती बूँदें
गिरती हैं मेरे
ह्रदय नभ पर
मैं भीग जाता हूँ
जब भी तेरे अधरों पर
कुछ कहते -कहते
लफ्ज़ रुक जाते हैं
मैं भीग जाता हूँ
जब भी तेरी
पेशानी पर
चुहचुहाती बूँदें
चाँदनी सी आभा
बिखेरती हैं
मैं भीग जाता हूँ
जब भी तेरे
दिल की धडकनें
मौसम - सी
बदलती हैं
मैं भीग जाता हूँ
जब भी तेरा
मुखड़ा
ओस की बूँद सा
सतरंगी आभा
बिखेरता है
मैं भीग जाता हूँ
तेरे गेसुओं से
टपकती बूँदें
गिरती हैं मेरे
ह्रदय नभ पर
मैं भीग जाता हूँ
जब भी तेरे अधरों पर
कुछ कहते -कहते
लफ्ज़ रुक जाते हैं
मैं भीग जाता हूँ
जब भी तेरी
पेशानी पर
चुहचुहाती बूँदें
चाँदनी सी आभा
बिखेरती हैं
मैं भीग जाता हूँ
जब भी तेरे
दिल की धडकनें
मौसम - सी
बदलती हैं
मैं भीग जाता हूँ
जब भी तेरा
मुखड़ा
ओस की बूँद सा
सतरंगी आभा
बिखेरता है
मैं भीग जाता हूँ
शनिवार, 8 मई 2010
हाँ , मैंने खुशबू को क़ैद कर लिया
हाँ , मैंने
खुशबू को
क़ैद कर लिया
तेरी सोमरस
छलकाती बातों को
मीठी -मीठी
मुस्कानों को
हिरनी से चंचल
नैनों की चितवन को
बिजली से मचलते
पैरों की थिरकन को
तेरे मिश्री घुले
मधुर अल्फाजों को
मधुर- मधुर
गुंजार करते गीतों को
तेरे कभी दौड़ते ,
भागते ,कभी हाँफते
पलों को
हर पल
प्रफुल्लित
उल्लसित
पुलकित
जीवन को भरपूर
जीने की तमन्ना को
तेरे छोटे -छोटे
तारों में सिमटे
रंगीन ख्वाबों को
मेरे दर्द में
तड़पकर
तेरी अंखियों में
उभरे मोतियों को
तेरे भीने -भीने
अहसास की महक को
तेरा उछलकर
बादलों को
छूने की चाह को
तेरा मचलकर
मेरी गोद में
सिर रखकर
रूठने की अदा को
अपनी यादों में
समेट लिया
हाँ , लाडली
मेरे आँगन
की गोरैया
मैंने खुशबू को
क़ैद कर लिया
खुशबू को
क़ैद कर लिया
तेरी सोमरस
छलकाती बातों को
मीठी -मीठी
मुस्कानों को
हिरनी से चंचल
नैनों की चितवन को
बिजली से मचलते
पैरों की थिरकन को
तेरे मिश्री घुले
मधुर अल्फाजों को
मधुर- मधुर
गुंजार करते गीतों को
तेरे कभी दौड़ते ,
भागते ,कभी हाँफते
पलों को
हर पल
प्रफुल्लित
उल्लसित
पुलकित
जीवन को भरपूर
जीने की तमन्ना को
तेरे छोटे -छोटे
तारों में सिमटे
रंगीन ख्वाबों को
मेरे दर्द में
तड़पकर
तेरी अंखियों में
उभरे मोतियों को
तेरे भीने -भीने
अहसास की महक को
तेरा उछलकर
बादलों को
छूने की चाह को
तेरा मचलकर
मेरी गोद में
सिर रखकर
रूठने की अदा को
अपनी यादों में
समेट लिया
हाँ , लाडली
मेरे आँगन
की गोरैया
मैंने खुशबू को
क़ैद कर लिया
मंगलवार, 4 मई 2010
बस एक बार आजा जानाँ..................
तेरी मेरी मोहब्बत
खाक हो जाती
गर तू वादा ना करती
इसी जन्म में मिलने का
एक अरसा हुआ
तेरे वादे पर ऐतबार
करते - करते
पल- छिन्न युगों से
लम्बे हो गए हैं
मगर तेरे वादे की
इन्तिहाँ ना हुई
आज जान जाने को है
आस की हर लौ
बुझने को है
तुझे पुकारता है प्यार मेरा
याद दिलाता है वादा तेरा
क्या भूल गयी हो जानाँ
मोहब्बत की तपिश से
वादे को जलाना
मेरी आवाज़ की
स्वर लहरी पर
हर रस्मो- रिवाज़ की
जंजीरों को तोड़कर
आने के वादे को
क्या भूल गयी हो
धड़कन के साथ
गुंजार होते मेरे नाम को
देख , मुझे तो
तेरी हर कसम
हर वादा
आज भी याद है
ज़िन्दगी की आखिरी
साँस तक सिर्फ
तुझे चाहने का
वादा किया था
और आज भी
उसे ही निभा रहा हूँ
इसी जन्म में
मिलन की बाट
जोह रहा हूँ
तेरे वादे की लाश
को ढोह रहा हूँ
अब तो आजा जानाँ
यारा
मुझे मेरे यार से
मिला जा जानाँ
मेरे प्यार को
मेरे इंतज़ार को
अमर बना जा जानाँ
बस एक बार
आजा जानाँ
बस एक बार…………
खाक हो जाती
गर तू वादा ना करती
इसी जन्म में मिलने का
एक अरसा हुआ
तेरे वादे पर ऐतबार
करते - करते
पल- छिन्न युगों से
लम्बे हो गए हैं
मगर तेरे वादे की
इन्तिहाँ ना हुई
आज जान जाने को है
आस की हर लौ
बुझने को है
तुझे पुकारता है प्यार मेरा
याद दिलाता है वादा तेरा
क्या भूल गयी हो जानाँ
मोहब्बत की तपिश से
वादे को जलाना
मेरी आवाज़ की
स्वर लहरी पर
हर रस्मो- रिवाज़ की
जंजीरों को तोड़कर
आने के वादे को
क्या भूल गयी हो
धड़कन के साथ
गुंजार होते मेरे नाम को
देख , मुझे तो
तेरी हर कसम
हर वादा
आज भी याद है
ज़िन्दगी की आखिरी
साँस तक सिर्फ
तुझे चाहने का
वादा किया था
और आज भी
उसे ही निभा रहा हूँ
इसी जन्म में
मिलन की बाट
जोह रहा हूँ
तेरे वादे की लाश
को ढोह रहा हूँ
अब तो आजा जानाँ
यारा
मुझे मेरे यार से
मिला जा जानाँ
मेरे प्यार को
मेरे इंतज़ार को
अमर बना जा जानाँ
बस एक बार
आजा जानाँ
बस एक बार…………
सोमवार, 3 मई 2010
मौन मुखर हो जाये
अश्कों का बहना
कोई बड़ी बात नहीं
मज़ा तब है जब
अश्क बहें भी और
नज़र भी ना आयें
और जहाँ मौन भी
नज़रों में मुखर हो जाये
कोई बड़ी बात नहीं
मज़ा तब है जब
अश्क बहें भी और
नज़र भी ना आयें
और जहाँ मौन भी
नज़रों में मुखर हो जाये
शनिवार, 1 मई 2010
आज्ञाकारी पुत्र ?
पिता ने पुत्र
को उपदेश दिया
जीवन का
सन्देश दिया
बेटा, काम कुछ
ऐसा कर जाना
दुनिया की यादों
में बस जाना
पशुवत जीवन तो
सब जीते हैं
ज़हर का घूँट
तो सब पीते हैं
तुम राम -सा
जीवन जी जाना
नाम अपना रौशन
कर जाना
अब पुत्र ने
चिंतन- मनन किया
राम के जीवन का
अवलोकन किया
इक गहन चिंता
में डूब गया
आज के युग में
कहाँ से लाउँगा
भारत- सा
त्यागी भाई
लक्षमण -सा
आज्ञाकारी भाई
सीता हर किसी को
मिला नहीं करती
राम अगर बन जाऊँगा
केकैयी तो बहुत
मिल जाएँगी पर
कौशल्या- सी माँ
कहाँ से लाऊँगा
जहाँ माँ ही
स्वार्थ की खातिर
बेटो की बलि
चढ़ा देती है
पत्नी भी प्रेमी
के साथ
भाग जाती है
जन्म भर का बंधन
इक पल में
भुला देती है
भाई ही भाई का
गला उतार देते हैं
जहाँ पग -पग पर
मर्यादाएँ टूटा करती हैं
कैसे मर्यादा पुरुषोत्तम
बन पाऊँगा
कैसे राम- सा जीवन
जी पाऊँगा
बहुत चिंतन -मनन के बाद
पुत्र निष्कर्ष पर पंहुचा
सिर्फ नाम ही तो करना है
लोगों के ज़ेहन में
अपनी छवि अंकित
ही तो करनी है
काम ही तो
ऐसा करना है
जिससे नाम
रौशन हो जाये
राम बनना आसान
नहीं इस युग में
इसलिए वो
"रावण"बन गया
को उपदेश दिया
जीवन का
सन्देश दिया
बेटा, काम कुछ
ऐसा कर जाना
दुनिया की यादों
में बस जाना
पशुवत जीवन तो
सब जीते हैं
ज़हर का घूँट
तो सब पीते हैं
तुम राम -सा
जीवन जी जाना
नाम अपना रौशन
कर जाना
अब पुत्र ने
चिंतन- मनन किया
राम के जीवन का
अवलोकन किया
इक गहन चिंता
में डूब गया
आज के युग में
कहाँ से लाउँगा
भारत- सा
त्यागी भाई
लक्षमण -सा
आज्ञाकारी भाई
सीता हर किसी को
मिला नहीं करती
राम अगर बन जाऊँगा
केकैयी तो बहुत
मिल जाएँगी पर
कौशल्या- सी माँ
कहाँ से लाऊँगा
जहाँ माँ ही
स्वार्थ की खातिर
बेटो की बलि
चढ़ा देती है
पत्नी भी प्रेमी
के साथ
भाग जाती है
जन्म भर का बंधन
इक पल में
भुला देती है
भाई ही भाई का
गला उतार देते हैं
जहाँ पग -पग पर
मर्यादाएँ टूटा करती हैं
कैसे मर्यादा पुरुषोत्तम
बन पाऊँगा
कैसे राम- सा जीवन
जी पाऊँगा
बहुत चिंतन -मनन के बाद
पुत्र निष्कर्ष पर पंहुचा
सिर्फ नाम ही तो करना है
लोगों के ज़ेहन में
अपनी छवि अंकित
ही तो करनी है
काम ही तो
ऐसा करना है
जिससे नाम
रौशन हो जाये
राम बनना आसान
नहीं इस युग में
इसलिए वो
"रावण"बन गया