पृष्ठ

रविवार, 23 मई 2010

तेरे मन का मंदिर

तेरे मन की 
खुली खिड़की 
में झाँकता 
अक्स मेरा 
तेरे मनोभावों 
की हर तह 
को खोलता
परत- दर- परत
तेरे अहसासों
को छूता 
ज्यों चाँदनी का
स्पर्श हो 
तेरे मन की 
हर तह में
प्रेम के अथाह
सागर की
अनगिनत
उछलती 
मचलती
टकराती 
और टूट कर
बिखरती 
लहरों का
खामोश 
रुदन
तेरे सूखे 
हुए आँसुओं
की कहानी 
सुनाता है
किसी परत में
दबे तेरे
असफल प्रेम 
की पुकार
का करुण 
क्रन्दन
तेरी आत्मा की
बेकली का
दीदार कराता है
और किसी 
परत में
तेरे दर्द की
पराकाष्ठा मिली 
जहाँ तूने
प्रेम की 
कब्रगाह में
वो बुत बनाया 
जिसकी खुशबू
के आगे 
पुष्प भी 
महकना छोड़ दे 
जिसकी 
शिल्पकारी में
शिल्पकार भी
मूर्ती गढ़ना 
छोड़ दे
बुतपरस्ती
का ऐसा 
मक़ाम बनाया
मुझे वहाँ 
खुदा ना मिला
बस तूने
मुझे ही 
खुदा बनाया
ये तेरे प्रेम
का नगर
तेरी मोहब्बत 
का मंदिर बना
जहाँ आकर
मेरा अक्स भी 
हार गया
और तेरे प्रेम के
बुत में समां गया

22 टिप्‍पणियां:

  1. मेरा अक्स भी
    हार गया
    और तेरे प्रेम के
    बुत में समां गया
    Vandana bahuthi sundar! Apna blog nahi khol paa rahi hun...tumtak e-mail ke zarye pahunchi!

    जवाब देंहटाएं
  2. bahut hi khubsurat rachna...
    achha laga padhkar..
    yun hi likhte rahein.....

    जवाब देंहटाएं
  3. अच्छी रचना. आपके ब्लॉग में आपकी रचनाएं पढना अच्छा लगा.

    जवाब देंहटाएं
  4. शिल्पकार भी
    मूर्ती गढ़ना
    छोड़ दे
    बुतपरस्ती
    का ऐसा
    मक़ाम बनाया
    मुझे वहाँ
    खुदा ना मिला
    बस तूने
    मुझे ही
    खुदा बनाया
    ये तेरे प्रेम
    का नगर
    तेरी मोहब्बत
    का मंदिर बना
    जहाँ आकर
    मेरा अक्स भी
    हार गया
    और तेरे प्रेम के
    बुत में समां गया
    BHUT KHUB VANDAN JI BEHTREEN RACHNA
    SAADAR
    PRAVEEN PATHIK
    9971969084

    जवाब देंहटाएं
  5. वंदनाजी !

    बहुत ही सुंदर पाठ ! आपकी रचनाओं कों पढने के बाद मन कों शुकून सा मिल जाता है.

    मुझे कई दिनों बाद आपकी कविता कों पढने का अवसर मिला ! थोड़ा व्यस्त था!

    तेरे मन की


    खुली खिड़की

    में झाँकता

    अक्स मेरा

    तेरे मनोभावों

    की हर तह

    को खोलता

    परत- दर- परत

    तेरे अहसासों

    को छूता

    ज्यों चाँदनी का

    स्पर्श हो

    एक बार पुन धन्यवाद सुंदर प्रेममय रचना के लिए!

    जवाब देंहटाएं
  6. वंदना मैम.. अंतस में कहीं बहुत भीतर तक असर छोड़ गई ये रचना.

    जवाब देंहटाएं
  7. प्रेम की पराकाष्ठा का अनुभव कराती एक उत्कृष्ट रचना ! बहुत सुन्दर !

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत ही ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना! दिल को छू गयी हर एक पंक्तियाँ!

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत नाजुक भाव हैं। कविता तीन बार पढ़नी पड़ी।
    बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  10. vandana ji !!
    kya baat hai
    kahan se bhavon ka sailav umad raha hai,
    bahut khoob

    जवाब देंहटाएं
  11. प्रेम रस लिए अच्छी रचना है .... आपकी हर रचना दिल से लिखी होती है ...

    जवाब देंहटाएं
  12. अच्छी रचना के लिए वधाई .. एक खुलापन लिए हुए भाव और उनके रंग एक अलग किस्म की छटा बिखेर रहे हैं

    जवाब देंहटाएं

आपके विचार हमारे प्रेरणा स्त्रोत हैं …………………अपने विचारों से हमें अवगत कराएं ………शुक्रिया