एक कल
कल आया था
एक कल
आज आया है
एक कल
कल आएगा
ये कल कल
में जीवन
यूँ ही गुजर जाएगा
इस बार
मौसम की तरह
मैं भी बदली
कभी कली सी खिली
कभी पतझड़ सी मुरझाई
कभी बदली सी बरसी
कभी कुहासे सी शरमाई
बिना कहे भी बात होती है
बिना मिले भी मुलाक़ात होती है
जब बंधे हो दिल के तार दिल से
तब बिन सावन भी बरसात होती है
दिल ने दिल से पूछा
दिल ने दिल से बात की
दिल ने दिल को आवाज़ दी
दिल से दिल की आवाज़ आई
दिल को न ढूंढ यारा
अब दिल दिल न रहा
अपनी बेबसी को बयां करती हो
ज़ख्म दिल के छुपा लेती हो
अंखियों तुम हो कमाल की
नज़रों में ठहरे मोतियों को भी
पलकों के कोरों में दबा लेती हो
पृष्ठ
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रविवार, 29 मार्च 2009
शनिवार, 21 मार्च 2009
मंथन
मंथन किसी का भी करो
मगर पहले तो
विष ही निकलता है
शुद्धिकरण के बाद ही
अमृत बरसता है
सागर के मंथन पर भी
विष ही पहले
निकला था
विष के बाद ही
अमृत बरसा था
विष को पीने वाला
महादेव कहलाया
अमृत को पीने वालों ने भी
देवता का पद पाया
आत्म मंथन करके देखो
लोभ , मोह , राग ,द्वेष
इर्ष्या , अंहकार रुपी
विष ही पहले निकलेगा
इस विष को पीना
किसी को आता नही
इसीलिए कोई
महादेव कहलाता नही
आत्म मंथन के बाद ही
सुधा बरसता है
इस गरल के निकलते ही
जीवन बदलता है
पूर्ण शुद्धता पाओगे जब
तब अमृत्व स्वयं मिल जाएगा
उसे खोजने कहाँ जाओगे
अन्दर ही पा जाओगे
आत्म मंथन के बाद ही
स्वयं को पाओगे
मंथन किसी का भी करो
पहले विष तो फिर
अमृत को भी
पाना ही होगा
लेकिन मंथन तो करना ही होगा
मगर पहले तो
विष ही निकलता है
शुद्धिकरण के बाद ही
अमृत बरसता है
सागर के मंथन पर भी
विष ही पहले
निकला था
विष के बाद ही
अमृत बरसा था
विष को पीने वाला
महादेव कहलाया
अमृत को पीने वालों ने भी
देवता का पद पाया
आत्म मंथन करके देखो
लोभ , मोह , राग ,द्वेष
इर्ष्या , अंहकार रुपी
विष ही पहले निकलेगा
इस विष को पीना
किसी को आता नही
इसीलिए कोई
महादेव कहलाता नही
आत्म मंथन के बाद ही
सुधा बरसता है
इस गरल के निकलते ही
जीवन बदलता है
पूर्ण शुद्धता पाओगे जब
तब अमृत्व स्वयं मिल जाएगा
उसे खोजने कहाँ जाओगे
अन्दर ही पा जाओगे
आत्म मंथन के बाद ही
स्वयं को पाओगे
मंथन किसी का भी करो
पहले विष तो फिर
अमृत को भी
पाना ही होगा
लेकिन मंथन तो करना ही होगा
मंगलवार, 17 मार्च 2009
क्या मैं इंसान हूँ ?
क्या मैं इंसान हूँ?
क्या मुझमें
संवेदनाएं हैं ?
जब किसी का दर्द
मुझे विचलित नही करता
किसी के दुःख से
मैं द्रवीभूत नही होता
किसी की खुशी से
मैं खुश नही होता
किसी के लिए भी
मेरे दिल में
अहसास नही होते
मैं अपनी ही धुन में
बेखबर ,
अपने सुख के लिए ही
जीना चाहता हूँ
क्या मैं इंसान हूँ?
ना अपना देखता हूँ
ना पराये को
जो हूँ बस मैं हूँ
मैं किसी भी
हादसे को देखकर भी
अनदेखा कर देता हूँ
मगर अपने साथ हुए
हर हादसे के प्रति
मैं दुखित हो जाता हूँ
कभी बोध नही कर पाता
दुख तो सबका बराबर है
क्या मैं इंसान हूँ?
एक धमाके से
घरों को बरबाद करता हूँ
घरों के सूने आँगन से
सिसकती आहों से
मुझे कोई सरोकार नही
बस मैं जो चाहता हूँ
वो पाना चाहता हूँ
फिर चाहे किसी का
आँगन सूना हो
या मांग सूनी हो
कोई अनाथ हो या
किसी के सर से ही
बाप का साया उठे
मुझे तो सिर्फ़ अपना
आँगन सजाना है
अपने दर्द से निजात पाना है
क्या मैं इंसान हूँ?
संवेदनहीन ,संवेदनाशून्य,
निर्मम ,निष्ठुर
क्या मैं इंसान हूँ ?
क्या मुझमें
संवेदनाएं हैं ?
जब किसी का दर्द
मुझे विचलित नही करता
किसी के दुःख से
मैं द्रवीभूत नही होता
किसी की खुशी से
मैं खुश नही होता
किसी के लिए भी
मेरे दिल में
अहसास नही होते
मैं अपनी ही धुन में
बेखबर ,
अपने सुख के लिए ही
जीना चाहता हूँ
क्या मैं इंसान हूँ?
ना अपना देखता हूँ
ना पराये को
जो हूँ बस मैं हूँ
मैं किसी भी
हादसे को देखकर भी
अनदेखा कर देता हूँ
मगर अपने साथ हुए
हर हादसे के प्रति
मैं दुखित हो जाता हूँ
कभी बोध नही कर पाता
दुख तो सबका बराबर है
क्या मैं इंसान हूँ?
एक धमाके से
घरों को बरबाद करता हूँ
घरों के सूने आँगन से
सिसकती आहों से
मुझे कोई सरोकार नही
बस मैं जो चाहता हूँ
वो पाना चाहता हूँ
फिर चाहे किसी का
आँगन सूना हो
या मांग सूनी हो
कोई अनाथ हो या
किसी के सर से ही
बाप का साया उठे
मुझे तो सिर्फ़ अपना
आँगन सजाना है
अपने दर्द से निजात पाना है
क्या मैं इंसान हूँ?
संवेदनहीन ,संवेदनाशून्य,
निर्मम ,निष्ठुर
क्या मैं इंसान हूँ ?
शुक्रवार, 13 मार्च 2009
टीस
खुशियाँ भी कभी
खुशी से न मिलीं
जब भी मिली
कोई खुशी
अपने साथ
लाखों ग़मों की
सौगात लेकर मिली
दामन था छोटा
किस किस को सँभालते
जो था ज्यादा
उससे ही दामन भर गया
और खुशी जा जाने
कब फिसल गई
हर खुशी ऐसे ही
फिसल जाती है
दामन में न समाती है
ये तो वो अमृत की बूँद है
जो ज़हर में पड़ जाती है
फिर भी असर न दिखाती है
खुशी से न मिलीं
जब भी मिली
कोई खुशी
अपने साथ
लाखों ग़मों की
सौगात लेकर मिली
दामन था छोटा
किस किस को सँभालते
जो था ज्यादा
उससे ही दामन भर गया
और खुशी जा जाने
कब फिसल गई
हर खुशी ऐसे ही
फिसल जाती है
दामन में न समाती है
ये तो वो अमृत की बूँद है
जो ज़हर में पड़ जाती है
फिर भी असर न दिखाती है
बुधवार, 11 मार्च 2009
ये कैसी होली
कहीं तो रंग ,अबीर ,गुलाल उडाते
रंगों की बोछार उडाते
होली लोग मनाते
और
कहीं कोई जिंदगी को
जीने की जुगाड़ लगाता
होली के इस हुडदंग में
शाम की रोटी के जुगाड़ में
गुब्बारों की खाली
पन्नियाँ बटोरता जीवन
क्या उनमें उमंग नही
होली की वो तरंग नही
हाय ! यह कैसी होली है
यह कैसी होली है ?
रंगों की बोछार उडाते
होली लोग मनाते
और
कहीं कोई जिंदगी को
जीने की जुगाड़ लगाता
होली के इस हुडदंग में
शाम की रोटी के जुगाड़ में
गुब्बारों की खाली
पन्नियाँ बटोरता जीवन
क्या उनमें उमंग नही
होली की वो तरंग नही
हाय ! यह कैसी होली है
यह कैसी होली है ?
रविवार, 8 मार्च 2009
श्यामा श्याम की होरी का रंग
श्याम रंग में रंग गई राधे
श्यामल श्यामल हो गई राधे
एक रंग हैं , एक रूप हैं
होरी का हर रंग खूब है
प्रीत के रंग में रंग गई राधे
श्यामल श्यामल हो गई राधे
श्याम प्रीत में सुध बुध भूली
प्रेम की तो खान है राधे
श्याम के रंग की दीवानी राधे
श्यामल श्यामल हो गई राधे
कौन श्याम है कौन है राधे
कैसे कोई पहचाने राधे
प्रेम के रंग में रंग गई राधे
श्यामल श्यामल हो गई राधे
श्याम रंग में रंग गई राधे.
श्यामल श्यामल हो गई राधे
एक रंग हैं , एक रूप हैं
होरी का हर रंग खूब है
प्रीत के रंग में रंग गई राधे
श्यामल श्यामल हो गई राधे
श्याम प्रीत में सुध बुध भूली
प्रेम की तो खान है राधे
श्याम के रंग की दीवानी राधे
श्यामल श्यामल हो गई राधे
कौन श्याम है कौन है राधे
कैसे कोई पहचाने राधे
प्रेम के रंग में रंग गई राधे
श्यामल श्यामल हो गई राधे
श्याम रंग में रंग गई राधे.
शुक्रवार, 6 मार्च 2009
गर किसी को मिले मेरा पता
मन की घुटन अश्कों में बह नही पाती
शब्दों में बयां हो नही पाती
अजीब मुकाम पर है जिंदगी
जो न रुक् पाती है
और
न आगे चल पाती है
यादों के बवंडर में घिर गई है जिंदगी
ख़ुद को ढूंढ रही हूँ
न जाने कहाँ खो गई हूँ
जिसमें ख़ुद को खो दिया
उसे तो पता भी न चला
मैं उसके लिए कुछ नही
मगर वो मेरे लिए सब कुछ है
मेरा दिन ,मेरी रात
मेरी खुशी ,मेरा गम
मेरा हँसना मेरा रोना,
मेरा प्यार मेरी लडाई
मेरा दोस्त,मेरा परिवार,
मेरा आज, मेरा कल,
मेरा आदि , मेरा अंत,
उसके बिना अस्तित्व ही नही मेरा
उसके बिना जिंदगी की कल्पना ही नही
अब ऐसे में कहाँ खोजूं अपने आप को
जहाँ खुदी को मिटा दिया मैंने
उसमें ख़ुद को समां दिया मैंने
वहां कैसे अलग करुँ ख़ुद को
मुझे मेरा 'मैं' कहीं मिलता नही
अपने आप से पल पल लड़ रही हूँ मैं
अपना पता पूछ रही हूँ मैं
गर किसी को मिले तो बता देना
मुझे मुझसे मिला देना
शब्दों में बयां हो नही पाती
अजीब मुकाम पर है जिंदगी
जो न रुक् पाती है
और
न आगे चल पाती है
यादों के बवंडर में घिर गई है जिंदगी
ख़ुद को ढूंढ रही हूँ
न जाने कहाँ खो गई हूँ
जिसमें ख़ुद को खो दिया
उसे तो पता भी न चला
मैं उसके लिए कुछ नही
मगर वो मेरे लिए सब कुछ है
मेरा दिन ,मेरी रात
मेरी खुशी ,मेरा गम
मेरा हँसना मेरा रोना,
मेरा प्यार मेरी लडाई
मेरा दोस्त,मेरा परिवार,
मेरा आज, मेरा कल,
मेरा आदि , मेरा अंत,
उसके बिना अस्तित्व ही नही मेरा
उसके बिना जिंदगी की कल्पना ही नही
अब ऐसे में कहाँ खोजूं अपने आप को
जहाँ खुदी को मिटा दिया मैंने
उसमें ख़ुद को समां दिया मैंने
वहां कैसे अलग करुँ ख़ुद को
मुझे मेरा 'मैं' कहीं मिलता नही
अपने आप से पल पल लड़ रही हूँ मैं
अपना पता पूछ रही हूँ मैं
गर किसी को मिले तो बता देना
मुझे मुझसे मिला देना
गुरुवार, 5 मार्च 2009
zakhm: एक कतरा खुशी
Wednesday, August 6, 2008
virhan का दर्द
virhan का दर्द sawan क्या जाने
कैसे कटते हैं दिन और कैसे कटती हैं रातें
बदल तो आकर बरस गए
चहुँ ओर हरियाली कर गए
मगर virhan का सावन तो सुखा रह गया
पीया बीना अंखियों से सावन बरस गया
सावन तो मन को उदास कर गया
बीजली बन कर दिल पर गिर गया
कैसे सावन की फुहार दिल को जलाती है
इस दर्द को तो एक virhan ही जानती है
कैसे कटते हैं दिन और कैसे कटती हैं रातें
बदल तो आकर बरस गए
चहुँ ओर हरियाली कर गए
मगर virhan का सावन तो सुखा रह गया
पीया बीना अंखियों से सावन बरस गया
सावन तो मन को उदास कर गया
बीजली बन कर दिल पर गिर गया
कैसे सावन की फुहार दिल को जलाती है
इस दर्द को तो एक virhan ही जानती है
आत्मकथा-----------प्रेम की
मैं प्रेम हूँ,प्यार हूँ,इश्क हूँ,मोहब्बत हूँ,इक अहसास हूँ,खुदा हूँ और न जाने क्या क्या हूँ.हर किसी के लिए अलग.किसी के दिल का चैन हूँ तो किसी के दिल का दर्द,किसी के लिए ख्वाब हूँ तो किसी के लिए हकीकत,किसी का जीवन हूँ तो किसी के लिए मौत...........................सबके अहसास , सबके दायरे, सबकी सोच सब अलग मगर फिर भी एक अलग पहचान लिए मैं हर दिल में पलता हूँ किसी न किसी रूप में.कभी प्रेमी के प्रेम में तो कभी माँ के दुलार में,कभी पिता के अहसास में तो कभी बेटी के जज़्बात में,कभी बहन के रूप में तो कभी भाई के रूप में,कभी पत्नी के खवाबों में तो कभी पति के दिल में,न जाने कितने ही असंख्य रूपों में लोग मुझे जानते हैं और मेरे साथ जीते हैं अपने हर गम और खुशी के पलों को.किसी ने मुझे इंसान में देखा तो किसी ने भगवान में , मगर पूरा किसी ने न जाना। जब जाना नही तो पाना कैसा?
मेरा रूप-सौंदर्य शाश्वत है। मैं कभी नही मरता,हमेशा हर हाल में जीवित रहता हूँ.मैं गीतों में , रंगों में,रूपों में जो भी जैसा चाहे ,हर हाल में ढल जाता हूँ.जिस बंधन में भी कोई बांधना चाहे बंध जाता हूँ। मेरा मुझमें कुछ नही है,जो कुछ है वो सामने वाले के मन में ,उसके विचारों में , उसकी सोच में , उसकी आंखों में ,उसके दिल में है, जैसा भी चाहता है मुझे रूप दे लेता है।
मेरे आनंद में सराबोर हर प्राणी मुझमें ही खुदा ढूंढता है और सच मानो तो खुदा बसता भी तो प्रेम में ही है.प्रेम को जानना क्या इतना आसान है.प्रेम को तो सिर्फ़ कुछ लोगों ने जाना और जिन्होंने जाना उन्होंने ही पाया.प्रेम हो तो राधा सा,मीरा सा -------जहाँ शरीर तो थे ही नही। था तो सिर्फ़ ---------प्रेम.प्रेम के अलावा वहां कुछ न था। क्या रस था , क्या आनंद था। इसे कहते हैं ----------प्रेम।
शाश्वत सत्य ,चिरंतन,दिव्यता के पार। मुझे जानना और पाना हर किसी के बस की बात कहाँ!मैं तो रस का महासागर हूँ जहाँ प्रेमी डूबते ही हैं-------बहुत गहरे अनंत में.
बहुत से लोगों ने मेरे बारे में न जाने सदियों से कितना लिखा और आज भी लिख रहे हैं और आगे भी लिखते रहेंगे मगर फिर भी मैं किसी की भी कविता में ,किसी भी लेख में क़ैद न हो पाया क्यूंकि मैं अनंत हूँ मैं भी शायद अपने बारे में पूरा सच नही बता सकता क्यूंकि मैं क्या हूँ -------------ये तो सिर्फ़ मुझमें डूबने वाला ही बता सकता है । जिसने इस रस में डुबकी लगायी है वो ही जानता है कि -----------मैं प्रेम हूँ.
मेरा रूप-सौंदर्य शाश्वत है। मैं कभी नही मरता,हमेशा हर हाल में जीवित रहता हूँ.मैं गीतों में , रंगों में,रूपों में जो भी जैसा चाहे ,हर हाल में ढल जाता हूँ.जिस बंधन में भी कोई बांधना चाहे बंध जाता हूँ। मेरा मुझमें कुछ नही है,जो कुछ है वो सामने वाले के मन में ,उसके विचारों में , उसकी सोच में , उसकी आंखों में ,उसके दिल में है, जैसा भी चाहता है मुझे रूप दे लेता है।
मेरे आनंद में सराबोर हर प्राणी मुझमें ही खुदा ढूंढता है और सच मानो तो खुदा बसता भी तो प्रेम में ही है.प्रेम को जानना क्या इतना आसान है.प्रेम को तो सिर्फ़ कुछ लोगों ने जाना और जिन्होंने जाना उन्होंने ही पाया.प्रेम हो तो राधा सा,मीरा सा -------जहाँ शरीर तो थे ही नही। था तो सिर्फ़ ---------प्रेम.प्रेम के अलावा वहां कुछ न था। क्या रस था , क्या आनंद था। इसे कहते हैं ----------प्रेम।
शाश्वत सत्य ,चिरंतन,दिव्यता के पार। मुझे जानना और पाना हर किसी के बस की बात कहाँ!मैं तो रस का महासागर हूँ जहाँ प्रेमी डूबते ही हैं-------बहुत गहरे अनंत में.
बहुत से लोगों ने मेरे बारे में न जाने सदियों से कितना लिखा और आज भी लिख रहे हैं और आगे भी लिखते रहेंगे मगर फिर भी मैं किसी की भी कविता में ,किसी भी लेख में क़ैद न हो पाया क्यूंकि मैं अनंत हूँ मैं भी शायद अपने बारे में पूरा सच नही बता सकता क्यूंकि मैं क्या हूँ -------------ये तो सिर्फ़ मुझमें डूबने वाला ही बता सकता है । जिसने इस रस में डुबकी लगायी है वो ही जानता है कि -----------मैं प्रेम हूँ.
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