मंथन किसी का भी करो
मगर पहले तो
विष ही निकलता है
शुद्धिकरण के बाद ही
अमृत बरसता है
सागर के मंथन पर भी
विष ही पहले
निकला था
विष के बाद ही
अमृत बरसा था
विष को पीने वाला
महादेव कहलाया
अमृत को पीने वालों ने भी
देवता का पद पाया
आत्म मंथन करके देखो
लोभ , मोह , राग ,द्वेष
इर्ष्या , अंहकार रुपी
विष ही पहले निकलेगा
इस विष को पीना
किसी को आता नही
इसीलिए कोई
महादेव कहलाता नही
आत्म मंथन के बाद ही
सुधा बरसता है
इस गरल के निकलते ही
जीवन बदलता है
पूर्ण शुद्धता पाओगे जब
तब अमृत्व स्वयं मिल जाएगा
उसे खोजने कहाँ जाओगे
अन्दर ही पा जाओगे
आत्म मंथन के बाद ही
स्वयं को पाओगे
मंथन किसी का भी करो
पहले विष तो फिर
अमृत को भी
पाना ही होगा
लेकिन मंथन तो करना ही होगा
जीवन के अनुभवों से लबरेज कविता। बधाई।
जवाब देंहटाएंवाह क्या बात है।
जवाब देंहटाएंआत्म मंथन की बात को कितने साधाहरण रुप से समझा दिया।
बहुत ही बेहतरीन।
manthan kisi ka bh kari...............manthan to karna hi hoga. bahut khoob.sach atm gyaan ke liye apne saare vish baahar nikaalne padte hain. tabhi amrit milta hai.
जवाब देंहटाएंवाह , शुभकामनाएं ,सीधे ही लख दिया आपने
जवाब देंहटाएंअपनी अपनी डगर
jawan hai to manthan karna hi hoga.
जवाब देंहटाएंachchhi kavita.
मंथन कविता हम सब का मंथन है । बहुत खूब
जवाब देंहटाएंसुरों और असुरों ने रत्नाकर का मंथन कर डाला।
जवाब देंहटाएंरत्न-समुच्चय और गरल-अमृत भी खोज निकाला।
अमृत-रस को पीने वाला , केवल देव कहाया।
जिसने विष को पिया उसी ने महादेव पद पाया।
पहले बोना पड़ता फिर, उसको काटा जाता है।
कर्मों के अनुसार, पुण्य-फल को बाँटा जाता है।
सुरों और असुरों ने रत्नाकर का मंथन कर डाला।
जवाब देंहटाएंरत्न समुच्चय और गरल-अमृत भी खोज निकाला।
अमृत-रस को पीने वाला , केवल देव कहाया।
जिसने विष को पिया उसी ने महादेव पद पाया।
पहले बोना पड़ता फिर, उसको काटा जाता है।
कर्मों के अनुसार, पुण्य-फल को बाँटा जाता है।
बहुत सटीक बातें ... सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंbilkul sahi farma rahi hai aap ....
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया आपके चिठ्ठे की चर्चा समयचक्र में आज
जवाब देंहटाएंजीवन और अध्यात्म एक साथ खूबसूरती से समझा दिया आपने ।
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति ।
जीवन और अध्यात्म एक साथ खूबसूरती से समझा दिया आपने ।
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति ।
अत्यन्त सुन्दर रचना!
जवाब देंहटाएं---
चाँद, बादल और शाम
गुलाबी कोंपलें
bahut acha taal mail prastut kiya hai aapne adhyatam aur naitik jeevan mein...badhai ho aapko :)
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंBahut Khoob.....
जवाब देंहटाएंapni post me aapne sahi baat kahi hai ... well done its nice post
जवाब देंहटाएंप्रिय वंदना...सही कहा तुमने शुद्धिकरण के बाद ही अमृत मिलता है ...जिन्दगी का फलसफा इतना ही गहरा है
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंमंथन का ऐसा अहसास मुझे भी प्रायः होता रहा, पर उसे इतने सुन्दर शब्द न दे पाया.................
अति सुन्दर प्रस्तुति पर हार्दिक आभार.
चन्द्र मोहन गुप्त
अच्छा लिखतीं हैं आप
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना
आप हमारे नए ब्लॉग पर सादर आमंत्रित हैं-
पता है up4bhadas,blogspot.com
आत्म मंथन को कविता का रूप देने के लिए बधाई.
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति.
काफी सशक्त,प्रभावशाली रचना..........
जवाब देंहटाएंvery true...a strong statement...bahut sunder likhti hain aap.
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