Wednesday, August 6, 2008
virhan का दर्द
virhan का दर्द sawan क्या जाने
कैसे कटते हैं दिन और कैसे कटती हैं रातें
बदल तो आकर बरस गए
चहुँ ओर हरियाली कर गए
मगर virhan का सावन तो सुखा रह गया
पीया बीना अंखियों से सावन बरस गया
सावन तो मन को उदास कर गया
बीजली बन कर दिल पर गिर गया
कैसे सावन की फुहार दिल को जलाती है
इस दर्द को तो एक virhan ही जानती है
कैसे कटते हैं दिन और कैसे कटती हैं रातें
बदल तो आकर बरस गए
चहुँ ओर हरियाली कर गए
मगर virhan का सावन तो सुखा रह गया
पीया बीना अंखियों से सावन बरस गया
सावन तो मन को उदास कर गया
बीजली बन कर दिल पर गिर गया
कैसे सावन की फुहार दिल को जलाती है
इस दर्द को तो एक virhan ही जानती है
khub, bahut khub
जवाब देंहटाएंआपने भी बात तो सही कही है
जवाब देंहटाएंपर अभी सावन तो आया ही नहीं है
दर्द-दर्द है जिसको होता,
जवाब देंहटाएंवो ही पीर पराई जाने।
जिसको कभी नही होता,
वो इसको क्या पहचाने।।