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गुरुवार, 5 मार्च 2009

zakhm: एक कतरा खुशी

Wednesday, August 6, 2008

virhan का दर्द

virhan का दर्द sawan क्या जाने
कैसे कटते हैं दिन और कैसे कटती हैं रातें
बदल तो आकर बरस गए
चहुँ ओर हरियाली कर गए
मगर virhan का सावन तो सुखा रह गया
पीया बीना अंखियों से सावन बरस गया
सावन तो मन को उदास कर गया
बीजली बन कर दिल पर गिर गया
कैसे सावन की फुहार दिल को जलाती है
इस दर्द को तो एक virhan ही जानती है

3 टिप्‍पणियां:

  1. आपने भी बात तो सही कही है
    पर अभी सावन तो आया ही नहीं है

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  2. दर्द-दर्द है जिसको होता,
    वो ही पीर पराई जाने।
    जिसको कभी नही होता,
    वो इसको क्या पहचाने।।

    जवाब देंहटाएं

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