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रविवार, 29 मार्च 2009

टुकडियां

एक कल
कल आया था
एक कल
आज आया है
एक कल
कल आएगा
ये कल कल
में जीवन
यूँ ही गुजर जाएगा



इस बार
मौसम की तरह
मैं भी बदली
कभी कली सी खिली
कभी पतझड़ सी मुरझाई
कभी बदली सी बरसी
कभी कुहासे सी शरमाई


बिना कहे भी बात होती है
बिना मिले भी मुलाक़ात होती है
जब बंधे हो दिल के तार दिल से
तब बिन सावन भी बरसात होती है


दिल ने दिल से पूछा
दिल ने दिल से बात की
दिल ने दिल को आवाज़ दी
दिल से दिल की आवाज़ आई
दिल को न ढूंढ यारा
अब दिल दिल न रहा


अपनी बेबसी को बयां करती हो
ज़ख्म दिल के छुपा लेती हो
अंखियों तुम हो कमाल की
नज़रों में ठहरे मोतियों को भी
पलकों के कोरों में दबा लेती हो

10 टिप्‍पणियां:

  1. पहली टुकड़ी गजब की बनी है । सभी भिन्नताएं सुन्दर स्वरूप लिये हैं । तीसरी टुकड़ी मुझे बेहद पसंद आयी ।

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  2. कविता के माध्यम से,

    उदगारों को खूब सँवारा है।

    सागर के खारे पानी का,

    हर मोती मुझको प्यारा है।।


    कल की अच्छी परिभाषा है।

    छिपी हुई सच्ची भाषा है।।

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  3. अपनी बेबसी को बयां करती हो
    ज़ख्म दिल के छुपा लेती हो
    अंखियों तुम हो कमाल की
    नज़रों में ठहरे मोतियों को भी
    पलकों के कोरों में दबा लेती हो

    bahut khoob vandana ji, aankhon ki haqiqat kya khoob bayan ki hai. badhai.

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  4. हर टुकडों में अपनी पहचान है ,पर इसमें एक अलग सी जान है.....
    बिना कहे भी बात होती है
    बिना मिले भी मुलाक़ात होती है
    जब बंधे हो दिल के तार दिल से
    तब बिन सावन भी बरसात होती है

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  5. aapki kavita nikhar par.padte padte saanse tham jaati hain. badhaai.

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  6. वाह क्या बात है। आनंद आ गया।

    बिना कहे भी बात होती है
    बिना मिले भी मुलाक़ात होती है
    जब बंधे हो दिल के तार दिल से
    तब बिन सावन भी बरसात होती है
    वाह बहुत ही उम्दा।

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  7. इस बारमौसम की तरहमैं भी बदलीकभी कली सी खिलीकभी पतझड़ सी मुरझाईकभी बदली सी बरसीकभी कुहासे सी शरमाई.....वाह तुमने तो कमाल कर दिया मौसम ही बदल गया ....बधाई

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