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शुक्रवार, 20 नवंबर 2020

मुकम्मल

 मुझे कुछ बात कहनी थी लेकिन मन कहीं ठहरे तो कहूँ


मुझे कुछ काम करने थे
लेकिन मन कहीं रुके तो करूँ

मुझे कुछ पहाड़ चढ़ने थे
लेकिन मन कहीं चले तो चलूँ

ये प्रान्त प्रान्त से निकलतीं नदियाँ
गंतव्य तक पहुँचने को आतुर
नहीं जानतीं
हर राह अंततः स्वयं तक पहुंचकर ही मुकम्मल होती है

9 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 21 नवंबर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 22 नवंबर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (22-11-2020) को  "अन्नदाता हूँ मेहनत की  रोटी खाता हूँ"   (चर्चा अंक-3893)   पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    --   
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    --
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --

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