पृष्ठ

मंगलवार, 2 अक्टूबर 2018

चौराहे हमारी आरामस्थली हैं

आजकल हम उस चौराहे पर खड़े हैं
जिससे किसी भी ओर
कोई भी रास्ता नहीं जाता

एक दिशाहीन जंगल में
भटकने के सिवा
जैसे कुछ हाथ नहीं लगता
वैसे ही
अब न कोई पथ प्रदर्शक मिलता
यदि होता भी तो
हम नहीं रहे सभ्य
जो उसकी दिखाई दिशा में बढ़ लें आगे

लम्पटता में प्रथम स्थान पाने वाले हम
आजकल ईश्वर को भी
कटघरे में खड़ा कर देते हैं
तो कभी
उसके मंदिर के लिए लड़ लेते हैं
ऐसे सयानों के मध्य
कहाँ है सम्भावना किसी पथ प्रदर्शक की

पथ आजकल हम बनाते हैं
और हम ही जानते हैं
कितने घर चलेगा इस बार घोड़ा अपने कदम
बदल चुकी है चाल
आज घोड़े के ढाई घर की
फिर किस रीत पर रीझ
कोई बनेगा पथ प्रदर्शक

आज प्रासंगिक हो या नहीं
तुम स्वयं ही तय कर लेना
तुम और तुम्हारे विचारों से किसी को क्या लेना देना
हाँ, नोटों पर चमकती तुम्हारी तस्वीर
तोडती है आज प्रासंगिकता के हर कायदे को
जिसके दम पर
पैदा कर लिए जाते हैं आज
चवन्नी चवन्नी में बिकने वाले पथ प्रदर्शक

और हम
न इस ओर होते हैं न उस ओर
हम एक मोहरे से खड़े हैं
राजनीति के चौराहे पर
जिन्हें दशा का ज्ञान है न दिशा का
फिर चलना या जाना
जैसी क्रियायों से कैसे हो सकते हैं अवगत

चौराहे हमारी आरामस्थली हैं



हम कौन हैं -----तुमसे बेहतर कौन जानता होगा बापू !!!

©वन्दना गुप्ता vandana gupta 

3 टिप्‍पणियां:

आपके विचार हमारे प्रेरणा स्त्रोत हैं …………………अपने विचारों से हमें अवगत कराएं ………शुक्रिया