ये है सुशासन
तुम्हें पता नहीं
ये हैं अच्छे दिन
ये है विकास का मूल मन्त्र
घर बाहर
गाँव नगर
चुप रहना है तुम्हारी नियति
सिर्फ सिर झुकाने की अदा तक ही
तुम्हारी कर्मस्थली
गर बोलोगे
घर से बाहर कदम रखोगे
मिलोगे एक दूसरे से
हम तालिबानी बन जायेंगे
तुम चीखते रहना
कहीं न सुनवाई होगी
न्याय की दहलीज पर ही
तुम्हारी हजामत होगी
चुप हो जाओ नहीं तो करवा दिए जाओगे
धर्म के नाम पर चिनवा दिए जाओगे
कब चुपके से हालाक कर दिए जाओगे
पता भी न चलेगा
फिर चाहे कलबुर्गी हों या पानसरे या आम आदमी .........
कुछ भी कहने और करने की आज़ादी
सिर्फ उन्हें और उनके गुर्गों को है ......तुम्हें नहीं
क्या इतना सा तथ्य भी नहीं जानते
देश में अराजकता हो या धार्मिक उन्मादी माहौल
यही तो है हमारी पहली पहल
किसी भी कीमत पर खुद को साबित कर दें
और दुनिया हमें सबसे ताकतवर इंसान की श्रेणी में स्थान दे दे ..............
मुफ्त में कुछ नहीं मिला करता
इसलिए प्यारों
सुशासन और अच्छे दिन की कुछ तो कीमत तुम भी चुकाओ
उनके दिखाया चश्मा ही लगाओ
तभी सहज जीवन जी पाओगे
फिर सिर झुकाए सिर्फ यही चिल्लाओगे
ये हैं अच्छे दिन
ये हैं अच्छे दिन
ये हैं अच्छे दिन
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (06-11-2015) को "अब भगवान भी दौरे पर" (चर्चा अंक 2152) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मुफ्त में कुछ नहीं मिला करता,
जवाब देंहटाएंइस लिये प्यारों........
संकेतों का अद्वितीय प्रयोग। सुन्दर तस्वीर... सटीक अभिव्यक्ति।
बहुत बधाई वन्दना जी।
खूब लिखा है दी
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