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गुरुवार, 22 जनवरी 2015

चुनावी मौसम की बरसातों में

सुना है एक बार फिर 
चुनाव का मौसम लहलहा रहा है 
निकल पड़े हैं सब दल बल सहित 
अपने अपने हथियारों के साथ 

शब्दबाणों का करके भयंकर वार 
करना चाहते हैं पूरी सेना को धराशायी 
भूलकर इस सत्य को 
चुनाव है भाई 
यहाँ साम दाम दंड भेद की नीतियां अपनाकर ही 
जीती जा सकती है लड़ाई 

जी हाँ 
न केवल तोड़े जायेंगे दूसरे दलों के शीर्ष नेता 
बल्कि जरूरी है आज के समय में 
मीडिया पर भी शिकंजा 

जिसकी जितनी चादर होगी 
उतने पाँव पसारेगा 
मगर जिसका होगा शासन 
वो ही कमान संभालेगा 
करेगा मनमाने जोड़ तोड़ 
विरोधियों को करने को ख़ारिज 
जरूरी है आज 
अपनी जय जयकार स्वयं करनी 
और सबसे करवानी 

बस यही है सुशासन 
यही है अच्छे दिन की चाशनी 
जिसमे जनता को एक बार फिर ठगने का मौका हाथ लगा है 

फिर क्या फर्क पड़ता है 
बात पांच साल की है 
भूल जाती है जनता 
याद रहता है उसे सिर्फ 
अंतिम समय किया काम 

चुनावी मौसम की बरसातों में भीगने को 
कुछ ख़ास मुखौटों की जरूरत होती है 
जो बदले जा सकें हर घात प्रतिघात पर 
जहाँ बदला जा सके ईमान भी बेईमान भी 
और चल जाए खोटा सिक्का भी टंच सोने के भाव 

बस यही है अंतिम मौका 
करो शब्दों से प्रहार 
करो भीतरघात 
येन केन प्रकारेण जरूरी है आज 
बस चुनाव जीतना..........और कुर्सी हथियाना  

"भरोसा शब्द टूटने के लिए ही बना है ........सभी जानते हैं ........हा हा हा "

10 टिप्‍पणियां:

  1. चुनाव महोत्सव में सब कुछ चलता है ..
    बहुत सुन्दर सामयिक रचना

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  2. सुन्दर रचना !
    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है !
    मगर पोस्ट्स पसंद आये तो कृपया फॉलोवर बनकर हमारा मार्गदर्शन करे

    जवाब देंहटाएं
  3. सुन्दर रचना !
    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है !
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  4. सही और करार व्यंग्य है वंदना
    मेरे ब्लोग्स पर आपका स्वागत है .
    धन्यवाद.
    विजय

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  5. सच,यह एक दंगल ही है.
    टी.वी.चैनल खबरें कम,दंगली अधिक हो
    रहे हैं.

    जवाब देंहटाएं
  6. सच,यह एक दंगल ही है.
    टी.वी.चैनल खबरें कम,दंगली अधिक हो
    रहे हैं.

    जवाब देंहटाएं
  7. सच,यह एक दंगल ही है.
    टी.वी.चैनल खबरें कम,दंगली अधिक हो
    रहे हैं.

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  8. है वाकई जोड़ तोड़ का मौसम...बहुत अच्‍छी लगी कवि‍ता

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  9. भरोसा शब्द टूटने के लिए ही बना है, तो चलो आज फिर टूट ही जाने देते हैं.. :)

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  10. भरोसा शब्द टूटने के लिए ही बना है, तो चलो आज फिर टूट ही जाने देते हैं..

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