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मंगलवार, 27 जनवरी 2015

इक लड़की गली के मोडपर

कुंवारी हसरतों के अन्जाने लिहाफ ओढ़कर 
वो देखो बैठी है इक लड़की गली के मोडपर

इश्क प्यार मोहब्बत लफ़्ज़ों से 
खेलेगी खिलखिलाएगी मुस्कुराएगी 
फिर काँच सी जब बिखर जायेगी
हर टूटे हिस्से में अपना ही अक्स पाएगी
बस यूं उसकी हर हसरत कुंवारी ही रह जायेगी 
कहीं टूटेंगे कुछ शाख से गुंचे 
कहीं बिखरेंगे आरजुओं के कंचे 
वो समेट समेट सहेजेगी आँचल में 
वो फिसल फिसल जायेंगे रेत की मानिंद 
इक रात की तफसील नहीं है ये 
उम्र के जोड़ों पर खुदे मिलेंगे किस्से 


बरसातों में भीगे बिना भी 
रूह में भीगे मिलेंगे हिस्से 
ऋतु के बदलने से नहीं बदलते मौसम 
यूं उसे रोज तकलीफ दिया करेंगे किस्से 
एक दिन की खता नहीं थी जो 
उम्र के उस पायदान पर रुके मिलेंगे 
अधूरे प्यार की अधूरी दास्ताँ बन 
उम्र से इश्क किया करेंगे वो हिस्से 

कुंवारी हसरतों के अन्जाने लिहाफ ओढ़कर 
वो देखो बैठी है इक लड़की गली के मोडपर

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