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गुरुवार, 8 जनवरी 2015

गोलियों का तांडव आखिर कब तक ???


आओ सिर जोडें और रो लें 
आओ दो आंसू बहा लें 
दुःख प्रकट कर दें 
कैंडल मार्च निकाल लें 
हम साथ हैं समूचे विश्व में होते संहार के 
और कर दें इतिश्री अपने कर्तव्यों की 
बस यहीं तक है हमारी संवेदनाएं दुःख और पीडाएं 

क्या सिर्फ यहीं तक सीमित रहेंगे हम ?
क्या यही है अंतिम विकल्प ?
सिर्फ रोना और श्रद्धांजलि प्रकट करना 
आखिर कब तक चलेगा ये सब ......... कभी सोचा है ?
आखिर कब तक हमारी सहिक्ष्णुता का मोल हम यूं चुकायेंगे 
जान दे देकर कौन सा इतिहास अमर बनायेंगे ?

वक्त आ गया है 
केवल जागने का नहीं 
जागे हुए तो हैं हम 
वक्त आ गया है 
एकजुट होने का 
आतंकवाद को शिकार बनाने का .......इस बार शिकार बनने का नहीं 

जानती हूँ 
कहने भर से कुछ नहीं होना 
फिर भी कह रही हूँ 
दिल का गुबार निकाल रही हूँ 
जबकि पता है 
यहाँ भी राजनीति ने सिर जोड़ा है 
सब अपने अपने घर बचाए हैं 
बिखरी तीलियों से नज़र आये हैं 
जानते हुए इस सत्य को 
अंधियारे वक्त में साये भी राजदार नहीं होते 
फिर कौन सी उम्मीद के दीप रौशन होंगे 

सब अपने अपने स्वार्थों से ग्रसित 
खड़े हैं अलग अलग दिशाओं में मुंह करे 
बिना सोचे समझे इस तथ्य को 
आज मेरी तो कल तेरी बारी है 

राजनीति की बिसात पर गोलियों का तांडव आखिर कब तक ???

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