पृष्ठ

गुरुवार, 7 अगस्त 2014

अनावश्यक हस्तक्षेप

ज़िन्दगी में किसी का भी अनावश्यक हस्तक्षेप नागवार गुजरता है , सबकी एक निजी ज़िन्दगी होती है जिसे वो अपने हिसाब से जीना चाहता है । संबंधों की जटिलता से हर कोई जूझता है तो क्या जरूरी है उसमें अनावश्यक हस्तक्षेप ? और यदि गलती से ऐसा हो जाए तो कुछ चढ दौडते हैं आपके ही ऊपर .……अरे नागवारी की फ़सल तो उसके और मेरे बीच है तुम कौन होते हो मिटाने वाले ।

दो पक्षों , दो संबंधों ,दो दोस्तों ,दो रिश्तों के बीच जाने कितनी पेचीदगियाँ होती हैं और कोई बेचारा यदि कोशिश करे सुलझाने की तो वो ही बन जाता है तोहमत का शिकार या बलि का बकरा । कितना मुश्किल है संबंधों को सहेजना जब आप दोनो ही पक्षों के आत्मीय हों या दोनो ही तुम्हारे अपने हों जिसका पक्ष लोगे उसी के बुरे और यदि दोनो मे सुलह कराना चाहो तो भी बुरे ।

उफ़ ! भयावह स्थिति तो दूसरी तरफ़ यदि आप अपने मन मुताबिक कुछ करते हो बिना दोनो की मध्यस्थता करे तो भी धमकाए जाते हो या खडे कर दिए जाते हो सूली पर कि तुम तो उसके खास हो गए मेरे नहीं …………बाबा , बडा गडबडझाला है संबंधों को निभाने में फिर वो दोस्ती के हों या रिश्तों के …………तुम नही हो स्वतंत्र खुद की इच्छानुसार कुछ करने के नहीं तो देनी होगी सफ़ाई कि ऐसा तुमने क्यों किया ………अब ये कोई बात हुई भला आप अपनी मर्ज़ी से जी भी नहीं सकते, अपनी मर्ज़ी से अपनी खुशी के लिए कुछ कर भी नहीं सकते जबकि अब तुम नही कर रहे किसी भी संबंध मे हस्तक्षेप तो फिर क्यों किया जाता है तुम्हारी ज़िन्दगी मे अनावश्यक हस्तक्षेप ?

क्या अपनी बारी मापदंड बदल गए होते हैं दुनिया के ?
 

3 टिप्‍पणियां:

आपके विचार हमारे प्रेरणा स्त्रोत हैं …………………अपने विचारों से हमें अवगत कराएं ………शुक्रिया