आस का बादल
गर झूम के बरसा
इस बरस तो
उग आएँगी खेत में
सरला के ब्याह की किलकारियाँ
माँ की दवा
छोटे के ऑपरेशन का खर्च
दो जून की रोटी
और एक अदद धोती
सरला की माँ के लिए
टकटकी लगाये
तपते आकाश से
बुझा रहा था जीवन की पहेलियाँ
आज फिर सुखिया अपना नाम सार्थक करने को
गुजर गयी उम्र जिसकी
फटी मैली कुचैली धोती में
ओ रे बदरवा आवत हो का !!!
गूँज रहा था स्वर कम्पायमान ध्वनि में
आस विश्वास और अविश्वास के मध्य ...
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति आज शनिवासरीय चर्चा मंच पर ।।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंवाह,उत्कृष्ट
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबुझी आँखों में विश्वास /अविश्वास जीवन देता है या निराशा !
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना !
pyaaraaa.....
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