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मंगलवार, 29 जुलाई 2014

दो बहनें

तीज और ईद अक्सर 
गलबहियाँ डाल 
प्रेम के हिंडोलों पर 
पींग बढ़ा 
सौहार्द का प्रतीक 
बनने की कोशिश करती हैं दो बहनों सा 
जाने कौन से खुदा का 
फ़रमान तारी हो जाता है 
जो बो जाता है नफ़रत की नागफ़नियाँ 
और हो जाती हैं दोनो बहनें जुदा 
और करती हैं 
अपने अपने अस्तित्व की तलाश 
गंगा जमुनी तहजीब में 

और मिट्टियों में चाहे कितनी सेंध लगा लो 
समा ही लेती है अपने आकार में हर प्रकार को 
क्योंकि 
सुना है जन्मदात्री तो एक ही है दोनों की 

7 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति बुधवारीय चर्चा मंच पर ।।
    साया बापू का उठा, *रूप-चन्द ग़मगीन :चर्चा मंच 1690

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  2. सुना है जन्मदात्री तो एक ही है दोनों की
    ...सच तीज और ईद हमारी एकता की दोनों सगी बहने ही है....
    बहुत बढ़िया सामयिक प्रस्तुति
    ईद मुबारक!

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  3. आपकी इस पोस्ट को ब्लॉग बुलेटिन की आज कि बुलेटिन ईद मुबारक और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  4. वाह रे दो बहनें .......... ऐसे ही भाईचारा बना रहे !!

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