तीज और ईद अक्सर
गलबहियाँ डाल
प्रेम के हिंडोलों पर
पींग बढ़ा
सौहार्द का प्रतीक
बनने की कोशिश करती हैं दो बहनों सा
जाने कौन से खुदा का
फ़रमान तारी हो जाता है
जो बो जाता है नफ़रत की नागफ़नियाँ
और हो जाती हैं दोनो बहनें जुदा
और करती हैं
अपने अपने अस्तित्व की तलाश
गंगा जमुनी तहजीब में
और मिट्टियों में चाहे कितनी सेंध लगा लो
समा ही लेती है अपने आकार में हर प्रकार को
क्योंकि
सुना है जन्मदात्री तो एक ही है दोनों की
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति बुधवारीय चर्चा मंच पर ।।
जवाब देंहटाएंसाया बापू का उठा, *रूप-चन्द ग़मगीन :चर्चा मंच 1690
सुना है जन्मदात्री तो एक ही है दोनों की
जवाब देंहटाएं...सच तीज और ईद हमारी एकता की दोनों सगी बहने ही है....
बहुत बढ़िया सामयिक प्रस्तुति
ईद मुबारक!
आपकी इस पोस्ट को ब्लॉग बुलेटिन की आज कि बुलेटिन ईद मुबारक और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
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जवाब देंहटाएंबेहतरीन ...
वाह रे दो बहनें .......... ऐसे ही भाईचारा बना रहे !!
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंउम्दा और बेहतरीन ...
जवाब देंहटाएंनयी पोस्ट@जब भी सोचूँ अच्छा सोचूँ