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शनिवार, 10 मई 2014

और मुझे चाहिए मखमली पैबंद रहित रिश्ता

ना जाने रिश्ता किसका किससे होता है
बदन का बदन से
या रूह का रूह से
या सिर्फ पानी की सतह पर तैरती
कागज़ की किश्ती सा
जिसकी जडें ही नहीं होतीं
तो सींचा किसे जाये
खोखले आईनों के अक्स
भी तो खोखले ही होते हैं ना
फिर किस बाज़ार में जाएँ
बोली लगायें
मोल भाव करें
और खरीद लायें
मनपसंद रिश्ता
भावनात्मक गर्माहट वाला
जिस्म से किलोल करने वाला नहीं
जिस्म को तहों में लपेटने वाला
और ओढ़ना ना पड़े उस पर
कोई जादुई कम्बल
क्योंकि
खरीदी हुई चीजें तो प्रदर्शनी के लिए होती हैं ना ...........
हाँ .........प्रदर्शनी जरूरी है
निस्वार्थता की , अपनेपन की , रूह के मिलन की
जानते हो क्यों
आज का ज़माना ही ऐसा है
जो रिश्तों पर पैबंद लगाये बिना नहीं छोड़ता
और मुझे चाहिए
मखमली पैबंद रहित रिश्ता
जिसमे हाथ पकड़ लूं तो भी स्पर्श ना हो जिस्म का जिस्म से
सिर्फ आत्मिक अनुभूति सा सात्विक स्पर्श हो कोई और जीवन गुलफाम हो जाये ........

8 टिप्‍पणियां:

  1. सच है बेशक ऐसे रिस्ते नहीं मिलते मगर इन्हें बनाया जा सकता है और ये ताकत स्त्री मे निहित है की वो रिस्तों मे मखमली एहसास भर दे। खूबसूरत पंक्तियाँ॥ बधाई

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  2. umda panktiyaan aapki kalam se vandana jee


    kabhi hamare blog par bhi aaye http://thoughtpari.blogspot.in/

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  3. हर अहसास से गुजरती हुई रचना

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  4. वाह…!
    अब चाहिए, तो चाहिए… :)

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  5. आज का ज़माना ही ऐसा है
    जो रिश्तों पर पैबंद लगाये बिना नहीं छोड़ता
    सुन्दर अभिव्यक्ति रिश्तों को बनाना आसान है पर निभाना बहुत कठिन और जब उन्हें ढोने लगते हैं तब यह हालात आ जाते हैं

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  6. रिश्तों में मखमली पैबंद नहीं मखमली एहसास चाहिए. बहुत सुन्दर रचना, बधाई.

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